‘माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्तवा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥’
मकर संक्रांति पर गंगा स्नान अत्यंत शुभ
इस अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। तीर्थराज प्रयाग व गंगासागर में स्नान को महास्नान कहा गया है। सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। लेकिन कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। इसे संक्रमण भी कहा जाता है। यह संक्रमण क्रिया छह-छह महीनों के अंतराल पर होती है। अर्थात साल में दो बार आती है मकर संक्रांति जैसी संक्रांति। भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं। मकर संक्रान्ति से उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू होता है। इस कारण भारत में रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। इससे अंधकार कम और प्रकाश अधिक होता है। इसी कारण इसे अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने का पर्व भी कहते हैं।
अत्यंत शुभ समय है ये
मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहां अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार। वैसे संक्रांति साल में 12 बार आती है। दूसरे शब्दों में कहें तो साल के हर माह का संबंध ही संक्रांति से है।
यह भी पढ़ें- दैनिक उपयोग में आने वाले मंत्र, करे हर समस्या का समाधान