
महायोगी गोरखनाथ और संत कबीरदास के कालखंड को लेकर विद्वानों की राय अलग-अलग है। अधिकतर विद्वान गुरु गोरखनाथ को कबीरदास से सदियों पहले का मानते हैं। अपने दावे के पक्ष मेंं ठोस सबूत भी पेश करते हैंं। इसके साथ ही दोनों के बीच के संबंध और घटनाओं के बारे मेंं कई दंतकथाएं भी प्रचलित हैं। उन कथाओं के माध्यम से आमलोगों को प्रेरणा देने की कोशिश की गई है। बिना उसकी सत्यता के विवाद मेंं पड़े मैं एक प्रेरक प्रसंग दे रही हूं।
एक बार महायोगी गोरखनाथ अचानक संत कबीरदास से मिलने गए। वहां कबीर की मुंहबोली बेटी कमाली भी थी। कमाली की कथा भी दिलचस्प है। वस्तुत: कमाली किसी और की बेटी थी और कबीर ने उसे जीवनदान दिया था। तब से कमाली में आध्यात्मिक अभिरूचि जग गई और वह कबीर की बेटी की तरह रहने लगी थी। कबीर भी उसे बेटी की तरह ही मानते थे और समय-समय पर आध्यात्मिक ज्ञान देते रहते थे। जब गोरखनाथ संत कबीर के पास पहुंचे, उस समय वह संत रैदास के पास जाने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने गोरखनाथ से भी संत रैदास के पास जाने का आग्रह किया। यह सुनकर पहले तो गोरखनाथ यह सोचकर हिचकिचा गए कि आए थे कबीर से अध्यात्मिक चर्चा करने और अब कहां किसी और के पास जाएं। लेकिन कबीर के इस आग्रह कि वहीं अध्यात्मिक चर्चा होगी, उन्होंने जाना स्वीकार कर लिया।
कबीर, कमाली और गोरखनाथ तीनों संत रैदास के पास पहुंचे। जिस समय तीनों पहुंचे, रैदास जूते सी रहे थे। गोरखनाथ और कबीर को देखते ही संत रैदास भाव-विह्वल हो गए। उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा कि धन्यभाग मेरे कि मेरे जैसे साधारण आदमी के घर कबीर और गोरखनाथ आए हैं। उन्होंने तीनों को बैठने के लिए कह कर घर के अंदर से दो गिलास पानी ले आए। एक उन्होंने कबीर को दिया और दूसरा गोरखनाथ को। कबीर ने तुरंत वह पानी पी लिया। लेकिन, गोरखनाथ ने इच्छा न होने के कारण पानी नहीं पिया। उन्होंने सोचा कि बिना हाथ धोए रैदास ने चमड़े वाले हाथ से ही उन्हें पानी दे दिया। तब रैदास ने वह पानी कमाली को दे दिया।
इस घटना को काफी दिन हो गए। गोरखनाथ जी अक्सर अदृश्य होकर आकाश मार्ग से विचरते थे। उनके पास इतनी सिद्धियां थीं कि उन्हें इस हालत में विचरते हुए देवता तक नहीं देख सकते थे। उड़ते हुए वे मुल्तान के पास पहुंचे तो उन्हें नीचे से एक स्त्री की आवाज सुनाई पड़ी…आदेश गुरुजी। नाथ पंथ में इसी से एक-दूसरे को प्रणाम किया जाता है। गोरखनाथ जी को काफी आश्चर्य हुआ कि मैं अदृश्य होकर आसमान में विचर रहा हूं। ऐसा कौन है जो मुझे प्रणाम कर रहा है। उसने कैसे जाना कि मैं यहां हूं। उससे भी बढ़ कर आश्चर्य की बात यह है कि एक स्त्री ने मुझे पहचान लिया। गोरखनाथ जी नीचे आए। तब उस स्त्री ने कहा कि मैं तो रोज आपको प्रणाम करती थी लेकिन, आप बहुत ऊंचाई पर होते थे। आज आप कम ऊंचाई पर थे तो आपको मेरी आवाज सुनाई दे गई। गोरखनाथ ने कहा कि मुझे आकाश मार्ग से विचरण करते हुए देखने की शक्ति तो देवताओं के पास भी नहीं है, फिर तुम मुझे कैसे देख लेती हो। तब उस स्त्री ने कहा कि आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं कबीर की बेटी कमाली हूं। जब से मैंने संत रैदास के हाथ का पानी पिया है, तब से मुझे सारी अदृश्य चीजें दिखाई देती हैं। भूत-प्रेत, जलचर, नभचर सब कुछ दिखाई देते हैं। मैं शादी के बाद यहां मुल्तान आ गई। यह सब रैदास के पानी का ही कमाल है। कमाली की इस अद्भुत शक्ति के बारे में सुनकर गोरखनाथ जी तत्काल पानी के चक्कर मेंं कबीर के पास पहुंचे। वे कबीर को लेकर रैदास के पास गए। उनकी समझ में आ चुका था कि क्यों इतना आग्रह कर कबीर उन्हें रैदास के पास लेकर गए थे। रैदास ने दोनों को बिठा कर सत्संग की बातें शुरू कर दी। गोरखनाथ जी सोच रहे थे कि आज रैदास पानी के लिए पूछ ही नहीं रहे हैं। यह सब भांप कर रैदास ने कहा, गोरखनाथ जी हर चीज का एक निश्चित मुहूर्त होता है। अब वह मुहूर्त फिर नहीं आएगा। अब मैं चाह कर भी आपको वह पानी नहीं पिला सकता। वह पानी तो मुल्तान गया। तभी से यह कहावत मशहूर हो गई।