
धन त्रयोदशी (धनतेरस) मनाने वालों को व्रतोत्सव के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की शाम के समय तेल से भरे मिट्टी के दीए को जलाना चाहिए। ध्यान रहे कि यह दीपक रात भर जलना है, उसे बुझना नहीं चाहिए। अतः तदनुसार उसका आकार, तेल की मात्रा एवं बाती आदि का निर्धारण करें। दीपक को जलाने के बाद उसका गंधादि से पूजन कर अन्न के ढेर पर रात भर के लिए सावधानी से रखें। इसके बाद घर में पूजनादि करें। इससे पूर्व दिन में स्वर्णाभूषण एवं बर्तन आदि की खरीद करें। यह घर की संपन्नता के लिहाज से शुभ माना जाता है। विभिन्न इलाकों में इस दिन घर के बाहर रंगोली बनाने एवं सजाने की भी परंपरा है। दीपावली पर्व के मद्देनजर घर को सजाना हर लिहाज से बेहतर है। अतः अन्य लोग भी ऐसा कर सकते हैं।
यमराज के लिए दीपदान
शाम को सन्धोयपासना के बाद अपमृत्यु से बचने और निर्विघ्न रूप से पूर्ण आयु पाने के निमित्त यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। इसके लिए पहले मिट्टी के नए दीपक (चार मुंह वाला हो तो बेहतर हालांकि यह आवश्यक नहीं है) में तिल का तेल भर लें। फिर नई रूई की बत्ती रखकर उसे रोशन करें। इसके बाद उसकी पूजा करें। अंत में दक्षिण की ओर मुंह करके निम्न मंत्र का जप करते हुए घर के बाहर दीपदान कर रखें–
मृत्युना पाश-हस्तेन कालेन भार्याया सह।
त्रयोदश्यां दीप-दानात् सूर्यजः प्रियताम्।।
इससे यमराज प्रसन्न होते हैं। प्रदोषव्यपिनी त्रयोदशी अत्यंत शुभ होती है। यदि वह दो दिन हो तो दोनों दिन अवश्य करें। यदि न भी हो तो भी इस क्रिया को दो दिन किया जा सकता है। इससे शुभ फल ही मिलता है।
गोत्रिरास
स्कंदपुराण के अनुसार गोत्रिरास व्रत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से दीपावली तक किया जाता है। इसे करने से पुत्र, सुख और संपत्ति का लाभ होता है। इसमें गोवर्द्धन भगवान एवं उनके पूरे परिवार की पूजा की जाती है। फिर फल, फूल, पक्कान्न एवं रसादि से पूजन के पश्चात सौभाग्यवती स्त्रियों को बांस के पात्र में सात मिठाई भरकर दें। इसके साथ ही गाय को भक्तिपूर्वक ग्रास दें। तीन दिन तक व्रत कर चौथे दिन सुबह स्नान कर गायत्री मंत्र से तिल की 108 आहूूतियां देकर व्रत का विसर्जन करें।
स्कंदपुराण के अनुसार गोत्रिरास व्रत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से दीपावली तक किया जाता है। इसे करने से पुत्र, सुख और संपत्ति का लाभ होता है। इसमें गोवर्द्धन भगवान एवं उनके पूरे परिवार की पूजा की जाती है। फिर फल, फूल, पक्कान्न एवं रसादि से पूजन के पश्चात सौभाग्यवती स्त्रियों को बांस के पात्र में सात मिठाई भरकर दें। इसके साथ ही गाय को भक्तिपूर्वक ग्रास दें। तीन दिन तक व्रत कर चौथे दिन सुबह स्नान कर गायत्री मंत्र से तिल की 108 आहूूतियां देकर व्रत का विसर्जन करें।