मनोकामना पूर्ति का सुनहरा मौका
वेदों में प्रकृति को ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति का आधार कहा गया है। प्रकृति की इसी आधार शक्ति को याद करने, उनका उत्सव मनाने, उसकी पूजा एवं साधना से शांति, संपन्नता, ऊर्जा आदि को प्राप्त करने का सुअवसर प्रदान करने वाला पर्व है नवरात्र। इस अवसर का सर्वश्रेष्ठ उपयोग है- तन और मन की शुद्धि के साथ ही अपनी सोई पड़ी शक्तियों को जगाने के लिए व्रत-उपवास, मंत्र जप, साधना आदि करना। नवरात्र के नौ दिनों के दौरान प्रकृति अपनी ऊर्जा के सारे इंद्रधनुषी रंगों के साथ व्यक्त होती है। यह व्यक्ति की पात्रता पर निर्भर करता है कि वह ब्रह्मांड में बिखरे रंगों में किस-किस रंगों को कितनी मात्रा में खुद में समेट कर अपनी शक्तियों को जगा पाता है। मेरा मानना है कि नवरात्र के नौ दिन माता के गर्भ में बिताए नौ माह की ही तरह होते हैं जिसमें संतान की उत्पत्ति की प्रक्रिया पूरी होती है। नवरात्र में साधक के पास इस बात की पूरी गुंजाइश रहती है कि वह नौ दिन में माता के नौ रूपों की साधना कर अपने अंदर की सारी नकारात्मक शक्तियों व कमजोरियों पर विजय पाकर जीवन में सुप्त पड़ी ऊर्जा को पुन: जागृत कर उसे ऊर्जा के इंद्रधनुष के सारे रंगों से भर लें। यदि कोई भौतिक इच्छा या मनोकामना हो तो उसकी पूर्ति के लिए भी यह सुनहरा अवसर है। तैयार हो जाएं अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। इसके लिए अपनी रूचि के अनुसार व्रत, उपवास, प्रार्थना, मौन, जप, अनुष्ठान जैसी ढेरों विधियों में से किसी का चयन कर सकते हैं। अगले लेखों में उसकी प्राप्ति के बारे में जानकारी दी जाएगी।
हमारे अंदर निहित है शक्ति
संसार का प्रत्येक कार्य किसी न किसी शक्ति के माध्यम से ही संचालित और नियंत्रित होता है। ये शक्तियां हमारे अंदर भी तीन रूपों-इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति के रूप में स्थित है। इन्हीं तीनों शक्तियों को महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के नाम से जाना जाता है। इनकी सम्मिलित शक्ति ही दुर्गा कहलाती हैं। नवरात्र इन्हीं शक्तियों को जागृत कर एक करने का पावन अवसर प्रदान करता है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि जो शक्ति के साथ होता है वह शिव समान होता है। जो शक्तिविहीन होता है वह शव की तरह हो जाता है। अत: शक्ति की साधना सर्वोपरि है। हर व्यक्ति को इसकी साधना करनी चाहिए। नवरात्र में यूं तो किसी भी शक्ति की पूजा-साधना की जा सकती है लेकिन माता दुर्गा की साधना सबसे महत्वपूर्ण और कल्याणकारी मानी जाती है। कहा जाता है कि नवरात्र के दौरान प्रकृति की शक्तियां स्वयं जागृत स्थिति में रहती है, अत: व्यक्ति यदि थोड़ी भी योजना के साथ अपनी शक्ति को जगाने और उसे मूल शक्ति से मिलाने के प्रयास करे तो उत्साहवर्द्धक सफलता मिलती है।
प्रकृति की शक्ति है मां दुर्गा
माता की उत्पत्ति सभी देवताओं के संयुक्त तेज (शक्ति) से हुई है। वास्तव में माता इन देवताओं के शरीर में पहले से ही थीं लेकिन सुसुप्तावस्था में। इसलिए शक्ति रहते हुए भी देवता बेबस थे। महिषासुर के उत्पात और मानवताविरोधी कार्यों ने देवताओं को क्रुद्ध कर दिया और उनके शरीर से शक्तिपुंज निकल कर एक जगह एकत्रित होकर नारी का रूप धारण कर लिया। यही नारी माता दुर्गा के नाम से विख्यात हुई। ध्यान देने की बात है कि अनियंत्रित शक्ति से कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए देवताओं ने शांत चित्त होकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र और आभूषणों से सुशोभित किया और फिर प्रार्थना की। इसके बाद माता ने कठिन संग्राम के बाद राक्षसों का विनास किया। वास्तव में मां दुर्गा प्रकृति की ही शक्ति है। प्रकृति का हिस्सा होने के कारण वह हम सबमें भी स्थित हैं। माता की उत्पत्ति व संग्राम की कथा को प्रतीक रूप में देखें तो यह पूरा प्रसंग इस बात का संकेत है कि हम सबके अंदर शक्तियां निहित हैं लेकिन सोई हुई होने के कारण हम निर्बल बने रहते हैं। क्रोध में शक्तियां उभरती तो हैं लेकिन बेकार जाती हैं। उन्हें शांत चित्त होकर अस्त्र-शस्त्र एवं आभूषणों (साधना) से युक्त कर ही संपूर्ण बनाया जा सकता है।
नौ दिनों का महत्व
नवरात्र में साधना में इसके नौ दिनों का भी खास महत्व और उपयोगिता है जिसे जानना अतिआवश्यक है। मोटे रूप में नवरात्र को तीन भागों-तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण के रूप में बांटा जाता है। यह मन, कर्म और विचारों का मंथन और आध्यात्मिक चेतना को जगाने के लिए है। इसे और स्पष्ट करने एवं साधक की सुविधा के लिए माता की प्रतिदिन अलग-अलग रूप में पूजा का विधान है। इनमें पहले दिन- शैलपुत्री, दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन- चंद्रघंटा, चौथे दिन- कुष्मांडा, पांचवें दिन-स्कंदमाता, छठे दिन- कात्यायनी, सातवें दिन- कालरात्रि, आठवें दिन- महागौरी तथा नौवें दिन- सिद्धिदात्री की पूजा होती है। पाठकों की सुविधा के लिए इन सभी के मंत्रों व साधना की संक्षिप्त जानकारी पूजा से एक दिन पहले के लेख में देने का प्रयास करूंगा।
व्रत हेतु योग्य आहार/भोजन के लिए Imperial Inn जायें |
व्रत हेतु योग्य आहार/भोजन के लिए Imperial Inn जायें |