दीपावली महापर्व से जुड़े पांच पर्वों के दौरान कुछ विधि की जानकारी दे रहा हूं जिसे अपना कर लोग सुख, समृद्धि के साथ ही अपमृत्यु, रोग, शोक दरिद्रता एवं भय आदि से काफी हद तक मुक्त रह सकते हैं। यह विधि ऐसे लोगों के लिए है जो लंबी-चौड़ी साधना नहीं कर पाते हैं, वे कम समय में भी इसके प्रयोग से भौतिक बाधाओं को दूर कर सकते हैं। इस कड़ी में पहला पर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को पडऩे वाली धन्वंतरि जयंती है। हालांकि इसी दिन यम दीपदान, धन त्रयोदशी एवं गोत्रिरात्र भी मनाया जाता है। इसके बारे में अगले अंक में जानकारी दूंगा।
धन्वंतरि जयंती : कुछ लोग धन्वंतरि को सिर्फ स्वास्थ्य ज्ञान के जनक के रूप में मानते हैं लेकिन सच यह है कि उनका वास्तविक स्वरूप बहुत विराट है। विश्व को रोगों से मुक्त कर स्वास्थ्य और सुंदर जीवन देने के लिए भगवान विष्णु ने धन्वंतरि के रूप में जन्म लिया था। उनका पूजन, कथा का श्रवण, व्रत आदि सब कुछ बेहद कल्याणकारी होता है। इस दिन धन्वंतरि के उपासक को सुबह उठने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान धन्वंतरि का ध्यान कर निम्न मंत्र का जप करते हुए व्रत शुरू करना चाहिए।
मंत्र–
करिष्यामि व्रतं देव! त्वद् भक्तस्त्वत् परायण:। श्रियं देहि जयं देहि, आरोग्यं देहि मे प्रभो।
इसके बाद विधिवपूर्वक (पंचोपचार या षोडषोपचार) उनकी पूजा-अर्चना करें। यदि संभव हो (आवश्यक नहीं है) तो सिर्फ अधिकतम दस मिनट लगने वाला धन्वंतरि का पाठ कर लें। पूजा के बाद तेरह धागों का सूत्र लेकर तेरह गांठ वाला दोरक बनाएं। इसकी भी भक्तिपूर्वक पूजा करें। और निम्न मंत्र पढ़कर स्त्री के बाएं और पुरुष के दाएं हाथ में बांधें। यह दोरक साल भर के लिए एक तरह के रक्षा सूत्र होने के साथ ही कल्याणकारी भी होता है।
मंत्र—
धन्वंतरे! महाभाग! जरा रोग निवारक!
दोर रूपेण मा पाहि, स कुटुंबं दया निधे!
आधि व्याधि जरा मृत्यु भयादस्मादहर्निशम्।
पीड्यमानं देव देव! रक्ष मां शरणागतम्।।
सूत्र बंधन के बाद भगवान धन्वंतरि को भक्तिपूर्वक निम्न मंत्र से अर्घ्य प्रदान करें—
जातो लोक हितार्थाय, आयुर्वेदाभिवृद्धये।
जरा मरण नाशाय, मानवानां हिताय च।।
दुष्टानां निधनायाथ, जात्त धन्वंतरे प्रभो।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं, देव देव कृपा कर।।
इसके बाद ब्राह्मणों को बा.न दान करें। इसके तहत गेहूं के आटे में दूध और घी को डालकर पकाएं। पकने पर शक्कर डालें। फिर ऊपर से केसर, कपूर, इलायची, लौंग एवं जावित्री डालकर इस सिद्ध नैवेद्य को भगवान धन्वंतरि को अर्पित करें। इसमें से आधा प्रसाद ब्राह्मण को एवं शेष में खुद व परिवारीजन मिलकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
धन्वंतरि जयंती : कुछ लोग धन्वंतरि को सिर्फ स्वास्थ्य ज्ञान के जनक के रूप में मानते हैं लेकिन सच यह है कि उनका वास्तविक स्वरूप बहुत विराट है। विश्व को रोगों से मुक्त कर स्वास्थ्य और सुंदर जीवन देने के लिए भगवान विष्णु ने धन्वंतरि के रूप में जन्म लिया था। उनका पूजन, कथा का श्रवण, व्रत आदि सब कुछ बेहद कल्याणकारी होता है। इस दिन धन्वंतरि के उपासक को सुबह उठने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान धन्वंतरि का ध्यान कर निम्न मंत्र का जप करते हुए व्रत शुरू करना चाहिए।
मंत्र–
करिष्यामि व्रतं देव! त्वद् भक्तस्त्वत् परायण:। श्रियं देहि जयं देहि, आरोग्यं देहि मे प्रभो।
इसके बाद विधिवपूर्वक (पंचोपचार या षोडषोपचार) उनकी पूजा-अर्चना करें। यदि संभव हो (आवश्यक नहीं है) तो सिर्फ अधिकतम दस मिनट लगने वाला धन्वंतरि का पाठ कर लें। पूजा के बाद तेरह धागों का सूत्र लेकर तेरह गांठ वाला दोरक बनाएं। इसकी भी भक्तिपूर्वक पूजा करें। और निम्न मंत्र पढ़कर स्त्री के बाएं और पुरुष के दाएं हाथ में बांधें। यह दोरक साल भर के लिए एक तरह के रक्षा सूत्र होने के साथ ही कल्याणकारी भी होता है।
मंत्र—
धन्वंतरे! महाभाग! जरा रोग निवारक!
दोर रूपेण मा पाहि, स कुटुंबं दया निधे!
आधि व्याधि जरा मृत्यु भयादस्मादहर्निशम्।
पीड्यमानं देव देव! रक्ष मां शरणागतम्।।
सूत्र बंधन के बाद भगवान धन्वंतरि को भक्तिपूर्वक निम्न मंत्र से अर्घ्य प्रदान करें—
जातो लोक हितार्थाय, आयुर्वेदाभिवृद्धये।
जरा मरण नाशाय, मानवानां हिताय च।।
दुष्टानां निधनायाथ, जात्त धन्वंतरे प्रभो।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं, देव देव कृपा कर।।
इसके बाद ब्राह्मणों को बा.न दान करें। इसके तहत गेहूं के आटे में दूध और घी को डालकर पकाएं। पकने पर शक्कर डालें। फिर ऊपर से केसर, कपूर, इलायची, लौंग एवं जावित्री डालकर इस सिद्ध नैवेद्य को भगवान धन्वंतरि को अर्पित करें। इसमें से आधा प्रसाद ब्राह्मण को एवं शेष में खुद व परिवारीजन मिलकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।