सीता-लोष्ट-सहा-युक्त: सकंटक दलान्वित:।
हर पापमपामार्ग! भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
अर्थात्- हे अपामार्ग! मैं कांटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूं। तुम मेरे पाप हर लो।
स्नान के बाद यम के चौदह नामों (यमाय नम:, धर्मराजाय नम:, मृत्युवे नम:, अंतकाय नम:, वैवस्वताय नम:, कालाय नम:, सर्वभूतक्षयाय नम:, ओदुंबराय नम:, दघ्नाय नम:, नीलाय नम:, परमेष्ठिने नम:, वृकोदराय नम:, चित्राय नम:, चित्रगुप्ताय नम:) का तीन-तीन बार उच्चारण करके जलअंजलि देकर तर्पण करें। इसके साथ ही भीष्म को भी तीन अंजलियां जलदान देकर तर्पण करना चाहिए। परंपरा के अनुसार जिनके पिता जीवित हों, उन्हें तर्पण नहीं करना चाहिए लेकिन इसमें वह बंधन भी नहीं है। सभी लोग देव, पितर और पूज्यजनों (जिनका निधन हो गया हो) को यह तर्पण कर सकते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
शाम को घर के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार बत्तियों वाला दीपक यम देवता के नाम पर जलाना चाहिए। इसके साथ ही गोशाला, देव वृक्षों के नीचे, रसोईघर, स्नानागार आदि में दीप जलाएं। घर को भी रोशनी से सजा सकते हैं। यम देवता के लिए दीप जलाते और उसे दान करते समय निम्न मंत्र को पढ़ें—
दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसमायुक्त: सर्वपापापनुत्तये।।
इसके बाद आतिशबाजी आदि की बनी हुई प्रज्ज्वलित उल्का लेकर निम्न मंत्र से उसका भी दान करें। मान्यता है कि इससे कुल में पहले मरे लोगों को सदगति मिलती है। मंत्र है—-
अग्नदग्धाश्च ये जीवा येप्यदग्धा: कुले मम।
उज्ज्वलज्योतिषा दग्धास्ते यांतु परमां गतिम्।।
रूप चतुर्दशी
जिस कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को चंद्रोदय के समय चतुर्दशी हो, उस दिन सुबह इस पर्व को मनाया जाता है। इससे सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इसके तहत सुबह मुंह धोने के बाद – यमलोकदर्शनाभावकामोहमभ्यंस्नानं करिष्ये मंत्र से संकल्प लें। फिर शरीर में तिल के तेल से उबटन करके हल से उखड़ी मिट्टी का ढेला, तुंबी, और अपामार्ग (चिड़चिड़ी) को मस्तक के ऊपर घुमाकर स्नान करें। यहां यह उल्लेखनीय है कि शास्त्रों में कार्तिक स्नान करने वालों के लिए सामान्य स्थिति में तेल लगाना वर्जित है लेकिन इस दिन नरकस्य चतुर्दश्यां तैलाभ्यंग च कारयेत्। अन्यत्र कार्तिकस्नायी तैलाभ्यंग विवर्जयेत् मंत्र के माध्यम से छूट की व्यवस्था है। यदि रूप चतुर्दशी दो दिन तक चंद्रोदयव्यापिनी हो तो चतुर्दशी को चौथे प्रहर में स्नान करना चाहिए। इस क्रिया को चार दिन तक करना अत्यंत शुभ और सुखद माना गया है।