महाकाली साधना करने वाले जातक को निम्न लाभ स्वत: प्राप्त होते हैं-
(1) जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त रोग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।
(2) श्री महाकाली स्तोत्र एवं मंत्र को धारण करने वाले धारक की वाणी में विशिष्ट ओजस्व व्याप्त हो जाने के कारणवश गद्य-पद्यादि पर उसका पूर्व आधिपत्य हो जाता है।
(3) महाकाली साधक के व्यक्तित्व में विशिष्ट तेजस्विता व्याप्त होने के कारण उसके प्रतिद्वंद्वी उसे देखते ही पराजित हो जाते हैं।
(4) काली साधना से सहज ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
(5) काली का स्नेह अपने साधकों पर सदैव ही अपार रहता है। तथा काली देवी कल्याणमयी भी है।
(6) जो जातक इस साधना को संपूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पूर्वक करता है वह निश्चित ही चारों वर्गों में स्वामित्व की प्राप्ति करता है व माँ का सामीप्य भी प्राप्त करता है।
(7) साधक को माँ काली असीम आशीष के अतिरिक्त, श्री सुख-सम्पन्नता, वैभव व श्रेष्ठता का भी वरदान प्रदान करती है। साधक का घर कुबेरसंज्ञत अक्षय भंडार बन जाता है।
(8) काली का उपासक समस्त रोगादि विकारों से अल्पायु आदि से मुक्त हो कर स्वस्थ दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है।
(9) काली अपने उपासक को चारों दुर्लभ पुरुषार्थ, महापाप को नष्ट करने की शक्ति, सनातन धर्मी व समस्त भोग प्रदान करती है।
समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम गुरु द्वारा दीक्षा अवश्य प्राप्त करें, चूंकि अनंतकाल से गुरु ही सही दिशा दिखाता है एवं शास्त्रों में भी गुरु का एक विशेष स्थान है।
श्रीमहाकाली पाठ -पूजन विधि
सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें।
1. श्री मन्महागणाधिपतये नम:।।
अर्थात्-बुद्धि के देवता श्री गणेश को हमारा नमस्कार है।
2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।।
अर्थात्- सृष्टि के अस्तित्व व अनुभवकर्ता श्री लक्ष्मी व नारायण को हमारा शत-शत नमस्कार है।
3. उमामहेश्वरा्भ्यां नम:।।
अर्थात्- श्री महादेव व माँ पार्वती को हमारा नमस्कार है।
4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:।।
अर्थात्-वाणी और उत्पत्ति के कारक माँ सरस्वती व परम ब्रह्म तुम्हें सादर नमस्कार है।
5. शचीपुरन्दराभ्यां नम:।।
अर्थात्- देवराज इन्द्र व उनकी भार्या शची देवी को हमारा नमस्कार है।
6. मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:।।
अर्थात्- माता और पिता को हमारा सादर नमस्कार है।
7. इष्टदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्- मेरे इष्ट देवता को मेरा सादर नमस्कार है।
8. कुलदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-हमारे कुल (खानदान) के देवता तुम्हें नमस्कार है।
9. ग्रामदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्- जिस गहर (ग्राम) से मेरा संबंध है उस स्थान के देवता तुम्हें नमस्कार है।
10. वास्तुदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात- हे वास्तु पुरुष देवता तुम्हें नस्कार है।
11. स्थानदेवताभ्यो नम:।
अर्थात्- इस स्थान के देवता को सादर नमस्कार है।
12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
अर्थात्- समस्त देवताओं को नेरा नमस्कार है।
13. सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नम:।।
अर्थात्- उन सभी को जिन्हें ब्रह्म का ज्ञान है, मेरा सादर नमस्कार है।
अर्थात्- वह जो असीम परिकल्पना के पार हैं, जिनकी देह सकल, कुशाग्र व कारणात्मक है, हम उस ज्ञान के प्रकाश का ध्यान करते हैं जो समस्त देवों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किए हुए है। हे प्रभु ! हमारे ध्यान में व चिन्तन में तुम सदैव व्याप्त हो।
ॐ भू: अर्थात् सकल देवी को नमन
ॐ भुव: अर्थात् कुशाग्र देवी को नमन
ॐ स्व: अर्थात् कारणात्मक देवी को नमन
ॐ मह: अर्थात् जिसे अस्तित्व सा स्वामीत्व प्राप्त है उसे नमस्कार है।
ॐ जन: अर्थात् ज्ञान की देवी को नमस्कार
ॐ तप: अर्थात् प्रकाश की देवी को नमस्कार
ॐ सत्यम् अर्थात् सत्य की देवी को नमस्कार
एते गन्धपुष्पे पुष्प अर्पण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ॐ गं गणपतये नम:।
अर्थात्- इन पुष्पों व विशिष्ट गंधो को समर्पित करते हुए गणों के ईश अर्थात् श्री गणेश को ज्ञान का प्रकाश है व बहुसंयोजक हैं, उन्हें हमारा नमस्कार है।
ॐ आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए सूर्य सहित नवग्रहों को नमस्कार है।
ॐ शिवादिपंचदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए महादेव सहित पंच देवताओं क्रमश: शिव, शक्ति, विष्णु, गणेश व सूर्य को नमस्कार है।
ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए देवराज इन्द्र सहित दसों दिशाओं के रक्षकों को नमस्कार है।
ॐ मत्स्यादिदशावतारेभ्यो नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए उन परम विष्णु को नमस्कार है, जिन्होंने मत्स्य सहित दस अवतार धारण किए थे।
ॐ प्रजापतये नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों द्वारा सृष्टि के रचयिता को नमस्कार है।
ॐ नमो नारायणाय नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों द्वारा संपूर्ण ज्ञान की चेतना को नमस्कार है।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों द्वारा समस्त देवों को नमस्कार है।
ॐ श्री गुरुवे नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों द्वारा गुरु को नमस्कार है।
ॐ ब्रह्माणेभ्यो नम:।।
अर्थात्- सुगंधित पुष्पों द्वारा ज्ञानके समस्त परिचितों (ब्राह्मणों) को सादर नमस्कार है।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की मध्यमा में या कलाई पर घास को बांधें-
ॐ कुशासने स्थितो ब्रह्मा कुशे चैव जनार्दन:।
कुशे ह्याकाशवद् विष्णु: कुशासन नमोऽस्तुते।।
अर्थात्- इस कुश (घास) में परम ब्रह्म का प्रकाश स्थित है तथा इसी में निवास करते हैं श्री जनार्दन भी। इसी कुश के प्रकाश में स्वयं परम विष्णु का प्रकाश भी विद्यमान है, अत: मैं इस कुश के आसन को नमस्कार करता हूं।
आचमन करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ॐ केशवाय नम:।
अर्थात्- विष्णुरूप केशव को नमस्कार है।
ॐ माधवाय नम:।।
अर्थात्- श्री विष्णु रूप माधव को नमस्कार है।
ॐ गोविन्दाय नम:।।
अर्थात्- श्री विष्णु रूप गोविन्दा प्रभु को नमस्कार है।