Yogi of mahabharat period : महाभारत काल के योगी थे देवराहा बाबा। वे आज भी किसी पहचान के मोहताज नहीं। उनकी आध्यात्मिक शक्ति अद्भुत थी। उनके चमत्कार व रहस्य के कई किस्से प्रचलित हैं। उनकी उम्र और जन्म का रहस्य भी काफी चर्चित है। उन्होंने हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। वे हवा से मेवे व बताशे ला भक्तों को देते थे। उन्हें तस्वीरें खिंचवाना पसंद नहीं था। वे कौन थे, कहां से आए यह कोई नहीं जानता। वे देवरिया में एक मचान पर काफी दिनों तक रहे थे। इसलिए लोग उन्हें देवराहा बाबा कहने लगे।
बाबा के जन्म की जानकारी नहीं
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। उनकी उम्र की जानकारी भी किसी को नहीं है। उनका मूल निवास भी कोई नहीं जानता है। वे सालों देवरिया जिले में मचान पर रहे। वे सिर्फ स्नान करने मचान से उतरते थे। भगवान राम के अनन्य भक्त थे। कहते हैं कि उन्होंने मां के गर्भ से नहीं, जल से जन्म लिया था। उन्होंने 19 जून 1990 को देह त्याग किया। पूरे जीवन निर्वस्त्र रहे।
देवराहा बाबा के मंत्र
भक्तों को वे हमेशा राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे।”
कहते थे-
‘एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।‘
बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि मानते थे। लोगों को जनसेवा व गोमाता की रक्षा करने को कहते थे। साथ ही भगवान की भक्ति की प्रेरणा देते थे। वे राम और कृष्ण को एक मानते थे। देवराहा बाबा भक्तों को कृष्ण मंत्र भी देते थे। कहते थे कि इसके जप से कष्ट दूर होंगे।
‘ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:। ‘
बाबा ने कई जिज्ञासुओं को योग का प्रशिक्षण दिया। हठयोग की दसों मुद्राओं का भी ज्ञान दिया। उनका योग की साधन पद्धतियों का विवेचन अद्भुत था। बड़े-बड़े धर्माचार्य महाभारत काल के योगी के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे। बाबा ने वृंदावन में यमुना तट पर साधना की। इस दौरान वे चार वर्ष मचान पर रहे। उन्हें लोगों ने कभी कुछ खाते नहीं देखा। सिर्फ दूध और शहद पीते देखे गए। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। वे हर व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे। सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे। लोगों को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है।
खेचरी मुद्रा की भी थी सिद्धि
महाभारत काल के योगी ने कभी कोई सवारी नहीं ली। उन्हें खेचरी मुद्रा की सिद्धि थी। इस कारण वे तत्काल कहीं भी चले जाते। कई लोगों ने पानी पर चलते हुए भी देखा। उनकी मचान के पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होती थी।