शिव परिवार में विरोधाभाष लेकिन सभी सुखी
शिव परिवार के सभी सदस्यों के वाहन भी प्रकृति के हिसाब से एक-दूसरे के धुरविरोधी हैं। बावजूद शिव परिवार से सुखी परिवार कोई नहीं है। यह उदाहरण इसको अनेकता में एकता को प्रमाणित करने के लिए काफी है। साथ ही संदेश है कि कोई भी जीव यदि अपनी मानसिकता ठीक कर ले तो कहीं भी, कभी भी एक दूसरे से अलग होने की आवश्यकता नहीं है। वे एक-दूसरे के शत्रु नहीं, परम मित्र बनकर रह सकते हैं। आज की लोकतांत्रिक पद्धति के लिए भी यह सटीक उदाहरण है। जहां समाज जात-पात, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, विद्वान-मूर्ख आदि संवर्गों में बंटकर अहं की पूर्ति हेतु एक दूसरे से जूझ रहा है। इसीलिए शिव पुराण में कहा गया है कि शिव और पार्वती की कृपा पाने के लिए अपनी आत्मा को निर्विकार बनाना आवश्यक है। मन से अवगुणों को निकालने के बाद ही शरीर के अंदर अच्छे भाव उत्पन्न होंगे।
भेदभाव दूर कर ही शिव की कृपा पाना संभव
ओंकार के प्रतीक हैं शिव। मन से भेदभाव दूर करके ही उनकी कृपा पाना संभव है। भेदभाव खत्म होने से आत्मा निर्मल होती है। इससे अच्छे संस्कारों की ओर मन प्रवृत्त होता है। अच्छे संस्कारों की ओर मन प्रवृत्त होने से वसुधैव कुटुंबकम् की सोच मन-मस्तिष्क में उत्पन्न होगी। तभी सभी जीवों के लिए मंगल की कामना की जा सकेगी। सबके मंगल होने से स्वयं का मंगल भी हो सकेगा। गणित का एक सिद्धांत है कि एक यूनिवर्सल सेट के कई अवयव हो सकते हैं लेकिन एक अवयव का कोई यूनिवर्सल सेट नहीं हो सकता। अत: महादेव सबको न्याय दिलाने वाला होने के कारण विभिन्न नामों से पुकारे जाते हैं। वे प्रकृति के उद्भव और विनाश के कारक हैं। उन्हें प्रकृति की हर चीज प्यारी है। भगवान शिव की पूजा और अराधना से ही मानव अपनी इच्छापूर्ति के साथ-साथ विश्व के कल्याण का भागीदार बन सकता है।
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पापों से मुक्त करते हैं भोलेनाथ
कर्पूर के समान गौर और चंद्रमा के समान कांति वाले शांत स्वरूप भोलेनाथ प्राणियों को चारों पुरुषार्थ प्रदान करते हैं। भक्तिभाव से अर्पित किसी भी प्रकार के भोग को ग्रहण कर लेते हैं। उनके लिंग रूप को आठों प्रहर नमस्कार करके ही प्राणी भवबंधन से मुक्त हो उनका सान्निध्य प्राप्त कर सकता है। तीनों लोकों व समस्त देवों के स्वामी त्रिलोकीनाथ समस्त चराचर के लिए पूजनीय हैं। उनकी शरण में आया पतित भी इस भवसागर से पार उतर सकता है। सभी प्रकार के दैहिक, दैविक और भौतिक पापों से भी मानव को मुक्ति प्रदान करने में अगर कोई सक्षम हैं तो वह हैं महादेव। इसीलिए लिंग महापुराण में कहा गया है कि हजारों पाप करके तथा सैकड़ों विप्रों का वध करके भी जो भक्तिपूर्वक भगवान रूद्र का आश्रय ग्रहण करता है वह अवश्य ही इस संसार के बंधनों से मुक्त हो शिवत्व को प्राप्त हो जाता है।
शिवलिंग की पूजा से मिलता सभी की पूजा का फल
भगवान विष्णु ने कहा है कि समस्त लोक लिंगमय है। अत: कोई भी प्राणी अगर शाश्वत पद की इच्छा रखता हो तो उसे शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए। पुराणों के अनुसार ओंकार के प्रतीक हैं महादेव। वे ही सृष्टि, पालन और संहार के कारण भी हैं। तभी तो मात्र शिवलिंग की पूजा से ही समस्त देवी-देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार शिव को निराकार माना गया है उसी प्रकार भूतभावन भोलेनाथ अपने आचरण के अनुरूप अपने भक्तों को भी बिना किसी राग-द्वेष के चाहे वह देव हो, दानव हो, यक्ष हो, किन्नर हो, वनस्पति हो, नदी हो, पहाड़ हो, सभी को अपनाते हैं और अभय वरदान देते हैं। उन्होंने कभी भी किसी भक्त को निराश नहीं किया। समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष के प्रभाव से जब ब्रह्मांड दग्ध होने लगा तो उन्होंने उसे पी लिया और नीलकंठ बन गए।
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