दीपों का पर्व दीपावली पर ऐसे करें लक्ष्मी पूजन साधना

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deepawali is festival of lights : दीपों का पर्व दीपावली रौशनी का त्योहार है। इस मौके को माता लक्ष्मी की पूजा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। उनकी पूजा व साधना का शीघ्र फल मिलता है। मनुष्य तो क्या इंद्र भी उनके उपासक हैं। लक्ष्मी को प्रसन्न करने की कई विधियां बताई गई हैं। वे प्रसन्न होने पर भक्तों को धन व मोक्ष समेत हर मनोरथ पूर्ण करती हैं। माता लक्ष्मी की महिमा अपरंपार है। मैं उनका परिचय और संक्षिप्त पूजा विधि दे रहा हूं। इस अवसर पर माता काली की भी उपासना की जाती है। इसे मंत्रों के सिद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी समय माना जाता है। उस पर अगले अंक में। फिलहाल लक्ष्मी पूजन पर दे रहा हूं।

माता लक्ष्मी का ध्यान मंत्र

अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनु कुंडिकां दण्डं शक्तिमसिं च धर्म जलजं घंटां सुराभाजनम।
शूलं पाशसुदर्शने च दघतीं हस्तै प्रसन्नाननां सेवे सैभिमर्दिनीमिह महालक्ष्मी सरोजस्थिताम।

अर्थ : जिनके हाथ में अक्षमाला, परशु, गदा, वाण, वज्र, कमल, धनुष, कुण्डिका, शक्ति, खडग़, पर्म, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और सुदर्शनचक्र धारण करने वाली कमलस्थित महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी का ध्यान करता हूं।

लक्ष्मी के तीन रूप

दीपों का पर्व दीपावली में लक्ष्मी पूजन का विधान है। उसमें मां के तीन स्वरूप की चर्चा की गई है। इनका पूजन भिन्न कामनाओं के लिए किया जाता है। मां की पूजा स्थिर लग्न में किया जाता है। अर्थात- जब लग्न में कुंभ, सिंह, वृष और वृश्चिक का प्रवेश हो। इस काल में पूजा सौ फीसद फलदायी होता है। मार्कंडेय पुराण में तीन रात्रि का जिक्र है। ये हैं- कालरात्रि, महारात्रि और महोरात्रि। महोरात्रि के स्थिर लग्न के समय लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ है। इसलिए उसी समय देवी की आराधना करते हैं।

श्री कनकधारा

माता का पहला रूप श्री कनकधारा का है। इस रूप में माता गज की सवारी करती हैं। वह धन, ऐश्वर्य व वैभव प्रदान करने वाली वैभव स्वरूपा हैं। उनका साधक सदबुद्धि वाला होता है।

देवी कनकधारा की आराधना इस मंत्र से करें।

अड़्गं हरे पुलकभूषणमाश्रयन्ती, भृड़्गाड़्गनेव मुकुलाभरणं तमालम।

अड़्गीकृताखिल विभूतिरपाड़्ग लीला, माड़्गल्यदास्तु मम मंगल देवताया।

श्री लक्ष्मी

माता का दूसरा रूप श्री लक्ष्मी का है। इनका वाहन उल्लू है। उसे रात में ही दिखाई देता है। प्रसन्न होने पर माता साधक को प्रचूर धन देती हैं।
श्री लक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से करें।

जय पद्मपलाशक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये। जय मातर्महालक्ष्मि संसारर्णवतारिणि।।

श्री महालक्ष्मी 

यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके आसपास स्वागत की मुद्रा में गज रहते हैं। इनका साधक धनी और ऐश्वर्यशाली होता है। वह वैभव से पूर्ण होता है। उसकी दूर-दूर तक कीर्ति फैलती है।

श्री महालक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से करें।

सिंहासनगत: शक्र: सम्प्राप्य त्रिदिवं पुन:। देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां तत:।

इन स्त्रोतों से मां लक्ष्मी का ध्यान व पूजा करें। माता वैभव और धान्य-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। ऐसा पुराणों में वर्णित है। दीपों का पर्व दीपावली पर इनका पूजा महत्वपूर्ण होती है।

श्रीयंत्र का है महत्व

मां लक्ष्मी की पूजा में श्रीयंत्र का बहुत महत्व है। पहले इस यंत्र की स्थापना करें। फिर महोरात्रि में उसकी पूजा-आराधना करें। ऐसा करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।

पूजन सामग्री

माता की पूजा के लिए लाल कमल पुष्प अवश्य हो। इसके साथ रोली, अक्षत, स्वर्णधातु, जल, धूप, केला, दीपक, लाल वस्त्र आदि की आवश्यकता होती है। जप स्फटिक की माला या कमलाक्ष से करें।

लक्ष्मी की संक्षिप्त पूजन विधि

शाम को स्नान करें। पूजन सामग्री सामने रखें। फिर शुद्ध आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। पूजा शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर उस पर रंगोली बनाएं। चौकी के चारों कोने पर चार दीपक जलाएं। जहां गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ अक्षत रखें। उस पर गणेश और मां लक्ष्मी की मूर्ति रखें। माता की पूर्ण प्रसन्नता के लिए विष्णु की मूर्ति उनकी बायीं ओर रखें। फिर उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आसन पर मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। गंगा जल से स्वयं,आसन,भूमि व समस्त सामग्री को शुद्ध करें।

शुद्धि मंत्र

ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यास्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर शुचि।

इसके बाद हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ें। ऊं केशवाय नम:। ऊं माधवाय नम:। ऊं नारायणाय नम:। इस मंत्र से आचमन करें। शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाएं। तब इस मंत्र का उच्चारण करें।

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

इसके बाद घड़े या लोटे पर मोली बांधें। फिर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत व मुद्रा रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आवाहन करें। इसके बाद माता लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें।

हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र पढ़ें।

ऊं भूर्भुव: स्व: महालक्ष्मी इहा गच्छ इहा तिष्ठ।

इसके बाद कहें

 

एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम महालक्ष्मी देव्यै नमः।

प्रतिष्ठा के बाद प्रतिमा को स्नान कराएं। रक्त चंदन लगाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कह कर लाल वस्त्र पहनाएं। फिर लक्ष्मी देवी की अंग पूजा करें। ततपश्चात देवी को इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। फिर एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं। तब मंत्र पढ़ें- एष पुष्पांजलि ऊं महालक्ष्मियै नम:। लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए। फिर बक्से, सेफ, अलमीरा आदि की पूजा करें। पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें। दीपों का पर्व दीपावली पर लक्ष्मी के किसी एक रूप का पूजन अवश्य करें। दीपों का पर्व दीपावली पर माता के मंत्रों का यथासंभव जप भी करें।

साभार : डॉ. राजीव रंजन ठाकुर

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