
दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को तीन पर्व गोवर्धन पूजा, अन्नकूट एवं मार्गपाली मनाने की परंपरा है। इन तीनों पर्वों को मनाने का उद्देश्य सुख, शांति, रोग-शोक से मुक्ति तथा भगवान की कृपा प्राप्ति है। इस पर्व के माध्यम से भगवान कृष्ण ने लोगों को प्रेरणा दी कि वह व्यर्थ के आडंबरों में पडऩे के बदले उनकी पूजा करें जिनसे उन्हें सीधा फायदा मिलता है। इसलिए इस दिन गायों के साथ ही गोवर्धन पर्वत की पूजा का विधान बनाया गया। यह एक प्रतीक है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह हमें लगातार लाभन्वित करने वाले पालतु पशुओं और प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होने एवं उनका सम्मान करने की शिक्षा देने वाला पर्व है। आइए बारी-बारी से हम तीनों पर्वों व उनको मनाने के तरीके की संक्षिप्त जानकारी लें।
1-गोवर्धन पूजा
हेमाद्री के अनुसार दीपावली के दूसरे दिन मनाए जाने वाले इस पर्व को सुबह घर के मुख्य दरवाजे के पास गाय के गोबर से गोवर्धन बनाएं। उसे पूरी तरह से पहाड़ की तरह शिखर, वृक्ष, शाखा, पुष्प आदि से युक्त करने का विधान है। हालांकि कई जगहों पर गोवर्धन के मनुष्य की आकृति में बनाकर सजाया जाता है। दोनों ही स्थिति में उसका गंध-पुष्पादि करके- गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए। इसके पास ही सजी गायों का आवाहन कर उनका भी विधिपूर्वक पूजन करें और- लक्ष्मीर्या लोकपालानां धनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु से प्रार्थना करके रात में गाय से गोवर्धन का उपमर्दन कराएं। शाम को ही माता लक्ष्मी का पूजन कर घर को दीपों की माला से सजाना चाहिए।
2-मार्गपाली
यह पर्व भी एक तरह से साफ-सुथरा और रोगमुक्त रहने की प्रेरणा देने वाला है। इसके तहत सड़कों को साफ-सुथरा कर सजाने का विधान है। आदित्यपुराण के अनुसार कुशा या कांस का लंबा और मजबूत रस्सा बनाकर उसमें अशोक के पत्ते गूंथकर बंदनवार बनाना चाहिए और सड़क पर दोनों ओर दरवाजे के आकार के दो ऊंचे खंभों पर इस सिरे से उस सिरे तक बांध कर गंधृपुष्पादि से पूजन करना चाहिए। कई स्थानों पर अशोक के पत्ते के साथ नीम के पत्तों को भी बांधने का प्रचलन है। इसके बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए—
मार्गपालि नमस्तेस्तु सर्वलोक सुखप्रदे।
विधेयै: पुत्रदाराद्यै पुनरेहि व्रतस्य में।।
मान्यता है कि इस तोरणद्वार के नीचे से गुजरने वाले मनुष्य एवं पशु साल भर रोग-महामारी आदि से मुक्त रहते हैं और हर तरह की सुख-शांति बनी रहती है। इसी दिन राजा बलि ने भागवान के वामन रूप को तीनों लोक दान में दिया था। इसके बाद भगवान ने कहा था कि इसी तिथि को उनकी पूजा होगी। अत: इस तिथि को रात्रि में राजा बलि की पूजा करके निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए—–
बलिराज नमस्तुभ्यं विरोचन सुत प्रभो।
भविष्येंद्र सुराराते पूजेयं प्रतिगृह्यताम्।।
3-अन्नकूट
भागवत और व्रतोत्सव के अनुसार इस दिन भगवान की नियमित पूजा में नैवेद्य चढ़ाते समय तरह-तरह के भोज्य पदार्थ, पकवान, फल आदि भी चढ़ाएं और प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरण कर शेष गरीबों में बांट दें। यह वास्तव में गोवर्धन पूजा का ही विस्तार है। जब भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यकाल में इंद्र की पूजा बंद कराई और इंद्र के कोप से लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाकर रक्षा की, तभी से इंद्र को चढ़ाने वाले छप्पन भोग गोवर्धन एवं भगवान को अर्पित कर बांटे जाने का चलन शुरू हुआ। इसके माध्यम से भगवान ने लोगों को प्रकृति और आमजन के कल्याण एवं उससे जुडऩे की प्रेरणा दी है।