भाई दूज और यम द्वितीया (पर्व त्योहार)

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कार्तिक शुक्ल दिव्तीय की यह तिथि साधकों और गृहस्थों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साधकों के लिए जहां पांच दिनी संकल्प के समापन के साथ ही आध्यात्मिक ऊंचाई पाने का अवसर है, वहीं सामान्य गृहस्थों के लिए भी इस दिन कई उपयोगी कार्य होते हैं। यह अवसर यम पूजन से लेकर भाई-बहन के पर्व तक कई मामलों के लिए विख्यात है। इसके अलावा व्यापारियों के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण होता है। वे लोग इस दिन मसिपात्रादि का पूजन करते हैं। इस कारण इसको कलमदान पूजा भी कहा जाता है। हेमाद्रि मतानुसार यह द्वितीया मध्याह्नवाहिनी पूर्वविद्धा उत्तम होती है। स्मार्त मतानुसार आठ भाग के दिन में पांचवां भाग श्रेष्ठ माना जाता है।  स्कंद के अनुसार अपराह्नव्यापी तिथि सर्वश्रेष्ठ होती है। यही उचित भी है।
इस दिन सुबह चंद्रदर्शन करना अत्यंत शुभ होता है। यदि यमुना के पास हों तो उसमें स्नान करना चाहिए, अन्यथा तेल लगाकर स्नान करें। स्नानादि कर व्रती को अष्टदल कमल पर गणेश की स्थापना कर- मम यमराज प्रीतये यमपूजनम्— व्यवसाये व्यवहारे वा सकलार्थसिद्धये मसिपात्रादीनां पूजनम्। मंत्र से संकल्प करके पहले गणेश जी का फिर यमराज, चित्रगुप्त, यमदूतों एवं यमुना का पूजन करना चाहिए। इसमें यमराज की पूजा और प्रार्थना–  धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज। पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोस्तुते।।-  मंत्र से, यमुना की पूजा – यमस्वसर्नमस्तेस्तु यमुने लोकपूजिते। वरदा भव में नित्यं सूर्यपुत्रि नमोस्तुते।। मंत्र से करें। चित्रगुप्त की पूजा और प्रार्थना–  मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्। लेखनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।। मंत्र से करें।
इसके बाद शंख या तांबे के अर्घ्यपात्र में जल, पुष्प, अक्षत एवं गंधादि लेकर— एह्येहि मार्तण्डज पाशहस्त यमांतकालोकधरामरेश। भ्रातृद्वितीयकृतदेवपूजां गृहाण चार्घ्यं भगवन्नमोस्तुते।।मंत्र से यमराज को अर्घ्य दें। फिर उसी स्थान पर दवात, कलम और राजमुद्रा की स्थापना करके मसिपात्राय नमः, लेखन्यै नमः एवं राजमुद्रायै नमः से क्रमशः इनकी पूजा करें। अंत में सफेद कागज पर श्रीरामो जयति, गणपतिर्जयति, शारदायै नमः और लक्ष्म्यै नमः आदि लिखें। शाम को घर में दीपक, बिजली आदि जलाने से पूर्व यमराज के लिए चार बत्तियों से युक्त नया दीपक जलाकर दीपदान करना चाहिए। मान्यता है कि इससे साल भर तक अकाल मृत्यु एवं उससे जुड़े यमपाश एवं यमलोक की यातना का खतरा टल जाता है।
मध्याह्न काल में बहन के घर जाकर भोजन करें और उसे वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर संतुष्ट करें। अपनी बहन न हो तो चाचा, मौसी, मामी आदि की पुत्री, मित्र की बहन या महिला आश्रम में जाकर किसी को बहन मानकर वस्त्र एवं दान-दक्षिणा दें। बहन को चाहिए कि वह भाई को आसन पर बैठाकर अपने हाथ से हाथ-पैर धुलाए। फिर गंध, पुष्पादि से उसका पूजन कर यथासाध्य उत्तम भोजन कराए। इसके बाद – भ्रातस्तवानुजाताहं भुंक्ष्व भक्तिमिमं शुभम्। प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः।। मंत्र से अभिनंदन करें। मान्यता है कि जो पुरुष ऐसा करते हैं, उन्हें वर्ष भर कलह, अपकीर्ति, शत्रु भय, आदि का भय नहीं रहता है। उनके धन, आयु, यश और बल में वृद्धि होती है। इसी तरह भाई को यथाविधि पूजन व सुंदर भोजन कराकर संतुष्ट कराने वाली बहन के सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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