देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं

110
देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं
देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं।

Devshayani Ekadashi on July 20, no auspicious work in Chaturmas : देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस दिन विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा होगी। फिर वे चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे। देवोत्थान एकादशी के दिन पुनः जगेंगे। मान्यता के अनुसार इस समय सभी देवी-देवता शयन करते हैं। इसलिए आश्विन नवरात्र में दुर्गा पूजा के समय माता को महालया के माध्यम से पहले जगाया जाता है। इसलिए इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं करने का विधान है। हालांकि रुटीन के सारे काम यथावत चलते रहेंगे। हालांकि कुछ विद्वानों की मान्यता इससे अलग है। उनका दावा है कि चतुर्मास में जगत के पालन व संचालन की जिम्मेदारी भोलेनाथ पर आ जाती है। हेमाद्रि और वामन पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को शिव शयन को जाते हैं। उस दिन शिवशयन व्रत करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है।

व्रत और विष्णु पूजा का बड़ा महत्व

साल भर सभी एकादशी में विष्णु पूजा का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी के दिन व्रत कर विष्णु पूजा अत्यंत कल्याणकारी होती है। पीली वस्तुओं और तुलसी के पौधे का दान का विशेष महत्व है।  इस दिन शालिग्राम रूप में उनकी पूजा का विधान है। वह न मिले तो धातु की प्रतिमा या चित्र की भी पूजा कर सकते हैं। वैसे शालिग्राम की पूजा श्रेष्ठ है। उन्हें पंचामृत से स्नान कराने के बाद पीले वस्त्र, पीले फूल और पीला प्रसाद चढ़ाया जाता है। उसके बाद उन्हें चार माह के लिए शयन कराया जाता है। केले के वृक्ष की पूजा भी शुभ मानी जाती है। पूजा के बाद यथासाध्य ऊं नमो वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम और विष्णु चालीसा का पाठ भी फलदायी होता है। इस अवधि में मांगलिक कार्य बंद होते हैं। मात्रा नियमित पूजा चलती रहती है। अनुष्ठान और विशेष पूजा उचित नहीं है।

जानें तिथि और शुभ मुहूर्त 

देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को है। तिथि के अनुसार यह 19 जुलाई की रात 09.59 बजे शुरू होकर 20 जुलाई को रात 07.17 बजे तक रहेगी। सूर्योदय के कारण व्रत और पूजा 20 जुलाई को ही होगी। 20 जुलाई को ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04.14 से 04.55 बजे तक है। उचित होगा कि इस समय हर हाल में उठ जाएं। पूजा के लिए इस समय के साथ अमतकाल और अभिजीत मुहूर्त भी उपयुक्त है। अमृत काल दिन में 10.58 बजे से 12.27 बजे तक है। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.00 बजे से 12.55 बजे तक है। आप चाहें तो विजय मुहूर्त में दिन के 02.45 से 03.39 बजे के बीच भी पूजा, जप, पाठ आदि कर सकते है। गोधूलि मुहूर्त शाम को 07.05 बजे से 07.29 बजे तक है। उचित होगा कि शाम तो 07.17 बजे तक ही संध्या आरती पूरी कर लें। जप और पाठ बाद में कर सकते हैं।

ऐसे करें व्रत, पूजा और दान

एकादशी तिथि 19 जुलाई की रात में ही शुरू हो जाएगी। अतः उस दिन भी सात्विक भोजन करना चाहिए। 20 जुलाई को व्रत कर रात में समापन के बाद भी सात्विक भोजन करें। हालांकि कई विद्वानों का मानना है कि व्रत का परायण 21 जुलाई को प्रातः करना चाहिए। इस बारे में व्रती अपनी श्रद्धा के अनुसार करें। उचित होगा कि 20 जुलाई को ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर स्नान कर लें। शुभ समय में ही पूजा, जप, पाठ, दान आदि करें। एकादशी व्रत करने वाले को पूर्ण सात्विक रहना चाहिए। जब भी अवसर मिले भगवान का नाम लेते रहें। उनका ध्यान करते रहें। पीले वस्त्र धारण करना, पीली चादर पर सोना और पीली वस्तु का सेवन करना शुभ माना जाता है। ध्यान रहे कि देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को है। उसके बाद चार माह अर्थात 14 नवंबर तक मांगलिक कार्य बंद रहेंगे।

यह भी पढ़ें- गणेश के अद्भुत मंत्र और उसकी प्रयोग विधि

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here