नकारात्कता पर सकारात्मकता की जीत का पर्व मकर संक्रांति

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जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क
जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क।

festival of victory of positivity over negativity : नकारात्कता पर सकारात्मकता की जीत का पर्व है मकर संक्रांति। मकर संक्रांति के नाम से तो सभी परिचित हैं। इसकी महिमा व रहस्य कम लोग जानते हैं। यह पर्व धरती से सूरज के रिश्ते को परिभाषित करने वाला है। इसी दिन भगवान विष्णु ने देवासुर संग्राम की समाप्ति की थी। उन्होंने असुरों के सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इसी कारण मकर संक्रांति को नकारात्मकता पर सकारात्मकता की जीत का पर्व माना जाता है।

सूरज व धरती का रिश्ता पिता-पुत्री सा

सूरज से धरती का वही रिश्ता है जो एक पिता-पुत्री का होता है। सूरज नहीं होता तो धरती भी नहीं होती। सूरज से ही धरती पर जीवन पनपता है। ऐसा नहीं होता तो धरती पर हिमयुग रहता। यहां जीवन संभव नहीं होता। सूरज के प्रकाश को ही चांद धरती पर परावर्तित करता है। चंद्रमा के प्रकाश से धरती पर अमृतमयी औषधियां पनपती हैं। धरती से सूरज के रिश्ते पर कई लोक कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि पहले आसमान में सात सूर्य थे। जैसे ही सूरज उगता, लोग गर्मी से बेहाल हो जाते थे। उसे बुरा-भला कहना शुरू कर देते। इससे नाराज होकर एक दिन सूरज छिप गया। जब सवेरा नहीं हुआ तो लोग परेशान होने लगे। तब लोगों ने सूरज की काफी मनुहार की। इसके बाद सूरज का दिल पसीजा। फिर एक सूरज बाहर निकल आया। इसके बाद से लोगों को उसकी महत्ता समझ में आई।

दिन बढ़ने लगता है, प्रकृति में होता नवसंचार

मकर संक्रांति को नकारात्कता पर सकारात्मकता की जीत पर्व कहने के पीछे एक और ठोस कारण है। इस दिन से दक्षिणाायन सूर्य उत्तरायन होने लगते हैं। मान्यता है कि उत्तरायण में देवता जगे रहते हैं। इस समय उनका दिन होता है। इसलिए इस दौरान शरीर त्याग करने वालों का पुनर्जन्म नहीं होता। ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। शुभ कार्य के लिए भी यह समय उपयुक्त होता है। सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश करने को सूर्य का उत्तरायण होना माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन तिल-तिल कर बढ़ता है। ठंड में कमी आने लगती है। प्रकृति में नवसंचार होता है। मनुष्य ही नहीं, वनस्पति तक नए रूप-रंग में आता है। इसके तत्काल बाद वसंत का आगमन होता है। प्रकृति नए रंग और उमंग में रंग जाती है।

ऐसे समझें पुण्यकाल को

धर्मग्रंथ हेमाद्रि के अनुसार संक्रांति से 12 दिन पूर्व पुण्यकाल होता है। इसलिए धार्मिक कार्य उससे 12 दिन पूर्व भी किए जा सकते हैं। हालांकि पुण्यकाल को लेकर कई मत हैं। कुछ विद्वानों ने संक्रांति के पहले व बाद में 16 घटिकाओं का पुण्यकाल माना है। देवीपुराण व वशिष्ठ ने 15 घटिकाओं के पुण्यकाल की व्यवस्था दी है। विरोध यह कहकर दूर किया कि लघु अवधि केवल अधिक पुण्य फल देने के लिए है। पूरी संक्रांति शुभ काम के लिए अनुकूल है। संक्रांति दिन या रात्रि दोनों में होती है। इस पर भी कई मत हैं। एक मत यह है कि मकर व कर्कट को छोड़कर पुण्यकाल दिन में होता है। बाकी में रात्रि में पड़ता है। पुण्यकाल शुभ कार्य के लिए बहुत अच्छा होता है। सारे विवादों के बाद भी इस पर सभी एक मत हैं कि मकर संक्रांति नकारात्कता पर सकारात्मकता की जीत का पर्व है।

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