प्रेरक प्रसंग : प्रेम का महत्व

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प्रेम के भूखे होते हैं भगवान।
प्रेम के भूखे होते हैं भगवान।

लीला की समाप्ति के पश्चात बैकुंठ लोक में कृष्ण और राधा अचानक एकदूसरे के सामने आ गए।

विचलित से कृष्ण-

प्रसन्नचित सी राधा…

कृष्ण सकपकाए,

राधा मुस्काई

इससे पहले कि कृष्ण कुछ कहते

राधा बोल उठी-

“कैसे हो द्वारकाधीश?”

जो राधा उन्हें कान्हा-कान्हा कह के बुलाती थी

उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया।

फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया

और बोले…

“राधे, मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ

तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!

आओ बैठते हैं….

कुछ मै अपनी कहता हूँ

कुछ तुम अपनी कहो

सच कहूँ राधा

जब जब भी तुम्हारी याद आती थी

इन आँखों से आँसुओं की बूंदें निकल आती थी..।”

बोली राधा –

“मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ

ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा

क्यूंकि मैं तुम्हे कभी भूली ही कहाँ थी जो तुम याद आते

इन आँखों में सदा तुम रहते थे

कहीं आँसुओं के साथ निकल न जाओ

इसलिए रोती भी नहीं थी

द्वारकाधीश, प्रेम के अलग होने पर आपने क्या खोया

इसका इक आइना दिखाऊं?

कुछ कड़वे सच, कुछ कड़वे प्रश्न, सुन पाओ तो सुनाऊं?

कभी सोचा कि इस तरक्की में तुम कितने पिछड़़ गए

क्या क्या गंवाया और कहां से कहां पहुंच गए?

आपने यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की

और समुद्र के खारे पानी तक पहुंच गए?

एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया

और दसों उँगलियों पर चलने वाली बांसुरी को भूल गए?

कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ….

जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी

प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली

क्या क्या रंग दिखाने लगी?

सुदर्शन चक्र विनाश के काम आने लगी

कान्हा और द्वारकाधीश में

क्या फर्क होता है बताऊँ?

कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते

सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता

युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है

युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं

और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं

कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी

दुखी तो रह सकता है

पर किसी को दु:ख नहीं देता

आप तो कई कलाओं के स्वामी हो

स्वप्नद्रष्टा, भविष्यद्रष्टा हो

गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो

पर तुमने क्या निर्णय किया?

अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी

और खुद को पांडवों के साथ कर लिया?

सेना तो आपकी प्रजा थी

राजा तो पालक होता है

उसका रक्षक होता है

आप जैसा महाज्ञानी

उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन

आपकी प्रजा को ही मार रहा था

आपनी प्रजा को मरते देख

आपमें करूणा नहीं जगी।

क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे

आज भी धरती पर जाकर देखो

अपनी द्वारकाधीश वाली छवि को

ढूंढते रह जाओगे

हर घर हर मंदिर में

मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे

लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं

उसके महत्व की बात करते है

मगर धरती के लोग

युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं,

प्रेम वाले कान्हा की पूजा करते हैंं

गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है,

पर आज भी लोग उसके समापन पर “राधे राधे” करते हैं।

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