तंत्र साधना में कूर्मचक्र का रहस्य जानें

267
तंत्र साधना में कूर्मचक्र का रहस्य जानें
तंत्र साधना में कूर्मचक्र का रहस्य जानें में देखें महान साधक रामकृष्ण परमहंस को।

Learn the secret of the kurmachakra in tantra sadhana : तंत्र साधना में कूर्मचक्र का रहस्य जानें। तंत्र साधना को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हैं। कुछ लोग इसे जादू-टोना या नकारात्मक विद्या मानते हैं। जबकि यह महान और अत्यंत तीव्र मार्ग है। इससे शरीर में असीम ऊर्जा स्रोतों जाग्रत किया जा सकता है। जो लोग इस ऊर्जा को संभाल पाते हैं, वे महान बन जाते हैं। जो नहीं संभाल पाते, तबाह हो जाते हैं। इसी कारण तंत्र साधना में गड़बड़ी होने से साधकों के पागल होने की बात कही जाती है। ऋषि-मुनि इसे जानते थे। इसलिए उन्होंने कूर्मचक्र की खोज की। इससे शरीर में ऊर्जा एक सर्किट के द्वारा बनती है। फिर वह ऊर्जा आज्ञा चक्र बनाती है। यदि यह ठीक से बन गया तो साधक सफल हो जाता है। इसी कारण इस मार्ग में योग्य गुरु का होना जरूरी माना जाता है।

प्राचीन ग्रंथों में कूर्मचक्र को विशेष महत्व

प्राचीन ग्रंथों में कूर्मचक्र को विशेष महत्व दिया गया है। आज भले लोग अधकचरे ज्ञान के आधार पर खुद को गुरु या तांत्रिक घोषित करते हों लेकिन अधिकतर इसके बारे में कुछ नहीं जानते। यह भी अहम है कि तंत्र साधना में कूर्मचक्र का रहस्य जाने बिना साधना अधूरी होती है। दरअसल यह चक्र किसी भी इकाई में बनने वाला ऊर्जा चक्र है। चूंकि तंत्र साधना में तेजी से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। अतः उसे समायोजित करने के लिए कूर्मचक्र अत्यावश्यक होता है। इसके साथ ही इस स्थिति में ब्रह्मांड के रहस्य खुलने लगते हैं। वे क्रमशः एक-एक कर सामने आने लगते हैं। देवी-देवता, यक्ष-गंधर्व, किन्नर, राक्षस, भूत-प्रेत आदि इसी चक्र में रहते हैं। इसलिए किसी भी तरह की सिद्धि के लिए साधक को इस चक्र का अभ्यास करना जरूरी होता है।

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से जुड़ा है यह चक्र

कूर्मचक्र को समझने के लिए भगवान के कूर्म अवतार को जानना होगा। भगवान ने समुद्र मंथन के समय यह अवतार लिया था। उनकी पीठ पर मंदार पर्वत को रखकर देव-दानव ने समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से ब्रह्मांड में छुपे एक से एक अद्भुत रत्न सामने आए। साथ ही असीम ऊर्जा भी निकली। इस ऊर्जा भगवान विष्णु ने कूर्म रूप में बने सर्किट के माध्यम से खुद में समाहित कर लिया। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो सृष्टि का विनाश हो सकता था। तंत्र साधना के पहले साधक को भी इसी कारण कूर्म चक्र बनाना चाहिए। ताकि वह न सिर्फ ब्रह्मांड के रहस्यों को समझे और उद्घाटित कर सके, बल्कि ऊर्जा को भी खुद में सही तरीके से समायोजित कर सके।

सबसे पहले आसन का करें निर्धारण

तंत्र साधना में कूर्मचक्र के लिए साधक सबसे पहले आसन का निर्धारण करते हैं। यह गुरु की देखरेख और निर्देशानुसार ही होता है। संक्षेप में इतना समझ लें कि साधना से पहले आसान बनाया जाता है। इस आसन के क्षेत्र को सवा हाथ गहरी व सवा हाथ चौड़ी खाई से घेर देते हैं। फिर उसमें जल भर देते हैं। कुछ लोग इसमें सवा हाथ ऊंचे स्थान को आसन के लिए चुनते हैं। इस आसान क्षेत्र के निर्माण के बाद कूर्मक्षेत्र को बनाया जाता है। उसमें ईष्ट देव का स्थान निश्चित किया जाता है। फिर साधना शुरू की जाती है। कूर्मक्षेत्र के निर्माण का यह एक सूत्र भर है। लेकिन इसके लिए पहले सिद्धांत को ठीक से समझना जरूरी है। इसके लिए गुरु का मार्गदर्शन ही सबसे उचित माध्यम है।

यह भी पढ़ें- समस्याएं हैं तो समाधान भी है, हमसे करें संपर्क

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here