मंत्रमुग्ध करता है कोणार्क का भव्य सूर्य मंदिर

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मंत्रमुग्ध करता है कोणार्क का भव्य सूर्य मंदिर
कोनार्क का भव्य सूर्य मंदिर।

magnificent sun temple of konark : मंत्रमुग्ध करता है कोणार्क का भव्य सूर्य मंदिर। इसकी छटा निराली है। दुनिया में कुछ गिने-चुने ही सूर्य मंदिर हैं। इनमें ओडिशा के कोणार्क का सूर्य मंदिर अद्भुत है। अत्यंत प्राचीन और अनूठा यह मंदिर यूनोस्को की विश्व विरासत में शामिल है। इसे देश के सात अजूबों में गिना जाता है। इस मंदिर को देखते हुए मन नहीं भरता। हर बार खास लगता है। लगता है कि काश इसे देखने के लिए कुछ और समय निकाल पाता। ये मंदिर कलिंग वास्तुकला का अदभुत नमूना है। मंदिर का परिसर 857 फीट लंबा 540 फीट चौड़ा है। कोणार्क मतलब कोण धन अर्क। कोण माने कोना और अर्क माने सूर्य। इसके हर कोण पर सूर्य की रोशनी पड़ती है। यह मंदिर चंद्रभागा नदी के तट पर बना था। हालांकि अब नदी मंदिर से दूर चली गई है।

कोणार्क एक अधूरी कहानी

13वीं सदी में बने इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा भी कहते हैं। इस मंदिर का निर्माण 1250 में किया गया था। गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने निर्माण करवाया था। मंदिर का निर्माण 12 साल में 12 हजार शिल्पियों ने मिलकर किया। इसके बाद भी मंदिर पूर्ण नहीं हो सका। इससे राजा नाराज थे। हालांकि कहा जाता है कि बिसू महाराणा मंदिर का छत्र स्थापित करने में सफल नहीं हो सके थे। यह कार्य उनके बेटे 12 साल के धर्मपाद ने कर दिखाया। बाद में उनकी रहस्यमय मौत हो गई। मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बनाया गया था। दो मंडप ढह चुके हैं। तीसरे को अंग्रेजों ने खस्ताहाल के कारण बंद करा दिया। उनमें अब पूजा नहीं होती है। मंदिर में भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां थीं। पहली बाल्यावस्था अर्थात उदित सूर्य। दूसरी युवावस्था अर्थात मध्याह्न सूर्य और तीसरी प्रौढ़ावस्था अर्थात अपराह्न सूर्य।

विशाल रथ के जैसा है मंदिर का आकार

मंदिर एक विशाल रथ के आकार का है। ये रथ सूर्य देव का है। इसमें पत्थरों से बने विशाल पहिए लगे हैं। पहियों पर शानदार नक्काशी देखी जा सकती है। रथ रूपी मंदिर में कुल 12 पहिए लगे हैं। इन पहियों का व्यास तीन मीटर का है। रथ का यह पहियों समय चक्र का प्रतीक है। इन पहियों से समय का सही मापन किया जा सकता है। दिन हो या रात घंटा मिनट का पता लग जाता है। सूर्य के इस रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं। इनमें चार घोड़े एक तरफ हैं। बाकि तीन घोड़े दूसरी तरफ हैं। सन 1837 में मंदिर का मुख्य हिस्सा ध्वस्त हो गया। वह 229 फीट ऊंचा था। इसके ध्वस्त होने को लेकर अलग अलग कथाएं हैं। मंदिर का बड़ा हिस्सा खंडहर बन चुका है। जगमोहन हाल (दर्शक दीर्घा) बेहतर हालत में है। इसके बाद भी मंत्रमुग्ध करता है कोणार्क मंदिर।

इंसानी भाषा पर भारी पत्थरों की भाषा

मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह आक्रामक रूप में रक्षा करते हुए हैं। वे दो हाथियों पर आक्रमण कर रहे हैं। दोनों हाथी एक-एक मनुष्य पर स्थित हैं। खास बात यह है कि सारी कारीगरी एक ही पत्थर पर की गई है। मतलब की ये सारी प्रतिमाएं एक पत्थर पर है। कोनार्क में वर्तमान सूर्य मंदिर से पहले भी सूर्य मंदिर था। ओडिसा के लोग सूर्य को बिरंचि नारायण कहते हैं। सांब पुराण मुताबिक कृष्ण के पुत्र सांब को कुष्ठ रोग हो गया था। उन्होंने ऋषि की सलाह पर 12 साल तक चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन में सूर्य की तपस्या की। उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया। तब सांब ने यहां सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। पुराणों के मुताबिक तब तीन सूर्य मंदिर थे। पहला कोणार्क, दूसरा मुल्तान में और तीसरा मथुरा में। इस मंदिर में फिलहाल पूजा नहीं होती है।

देवी-देवता व नृत्य से लेकर कामुक मुद्रा की आकृतियां

मंदिर की दीवारों पर भव्य आकृतियां हैं। पत्थर पर उकेरी गई इन आकृतियों में देवी-देवता हैं। इसके साथ ही नृत्य की आकर्षक मुद्राएं भी हैं। इनमें राजसभा, युद्ध के दृश्य और पशु-पक्षी भी हैं। कामुक आकृतियों की चर्चा के बिना यह पूरी नहीं हो सकतीं। सारी आकृतियां स्पष्ट हैं। फिर भी कहीं भोंडापन या अश्लीलता का अहसास नहीं होता है। कुछ मामलों में ये अजंता-एलोरा की याद दिलाती हैं। इन आकृतियों को क्रम से काम, ध्यान और देवत्व का प्रतीक भी माना जाता है। सारी आकृतियां मनमोहक हैं। क्षतिग्रस्त होने के बाद भी अपने भाव को पूरी तरह से स्पष्ट करती हैं। महीन और पेचीदा बेलबूटे किसी को भी मंत्रमुग्ध करने में सक्षम है। यह ओड़िसा शिल्पकला का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसलिए मंत्रमुग्ध करता है कोणार्क का सूर्य मंदिर।

कैसे पहुंचें कोनार्क

कोणार्क ओड़िसा का प्रमुख केंद्र है। यहां जगन्नाथ पुरी या भुवनेश्वर से पहुंच सकते हैं। यह अपेक्षाकृत पूरी से निकट है। पुरी से 35 किलोमीटर दूर है। भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर सुबह छह बजे से रात आठ बजे तक खुला रहता है। भारतीय के और सार्क देशों के लोगों के लिए प्रवेश शुल्क 10 रुपये है। विदेशी नागरिकों के लिए 250 रुपये है। पुरी से चलने वाली पर्यटक बसें कोणार्क का भ्रमण कराती हैं।

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