भगवान विष्णु के दस नहीं बल्कि 24 अवतार

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देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं
देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को, चतुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं।

Not ten but 24 incarnations of lord vishnu : भगवान विष्णु के दस नहीं बल्कि 24 अवतार हैं। 24 वां अवतार कल्कि अभी होना है। 23 अवतार हो चुके हैं। आमतौर पर विष्णु के दस अवतार का ही जिक्र आता है। यह अर्ध सत्य नहीं है। सच्चाई तो यह है कि विष्णु के मुख्य अवतार दस ही हैं। वे हैं- मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि (यह अभी होना है) अवतार। दरअसल धरती पर जब-जब संकट आता है, भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। इस क्रम में वे अब तक कुल 23 बार अवतार ले चुके हैं। आइए जानें उनके सभी 24 अवतारों के बारे में।

पहला अवतार सनकादिक मुनि

परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के लिए घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये प्राकट्य काल से ही ध्यान में रत होकर मोक्ष मार्ग में तल्लीन हो गए। वे नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। उनका यह अवतार जगत को सही राह दिखाने वाला है।

पृथ्वी को बचाने के लिए वाराह अवतार

पृथ्वी को बचाने के लिए विष्णु ने वाराह के रूप में दूसरा अवतार लिया। प्राचीन काल में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया। तब ब्रह्मा समेत सभी देवताओं की स्तुति करने पर वराह रूप में भगवान हुए। वे समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर पृथ्वी को बाहर ले आए।  यह देख हिरण्याक्ष दैत्य ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया।

लोक कल्याण के लिए नारद अवतार

कम लोगों को मालूम होगा कि देवर्षि नारद भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है। धर्म प्रचार व लोक कल्याण के लिए उन्होंने ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में अवतार लिया। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में उनको विष्णु का मन भी कहा गया है। भगवान विष्णु के दस से ये अलग हैं। श्रीमद्भगवत गीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में श्रीकृष्ण ने कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।

नर-नारायण के दो रूपों में लिया अवतार

भगवान विष्णु ने मानव सभ्यता को दिशा देने के लिए नर और नारायण के रूपो में अवतार लिया। इसमें वे मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिह्न थे। उनका वेष तपस्वियों की तरह था। दो रूप होने के बाद भी प्रयोजन एक होने के कारण उनके अवतार को एक ही माना जाता है।

भगवान कपिल के शाप से सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हुए

कपिल मुनि को भी विष्णु का अवतार माना जाता है। उनके क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। बाद में इसी वजह से गंगा स्वर्ग से धरती पर आई। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। उन्हें भागवत धर्म के बारह आचार्यों में से एक माना जाता है।

दत्तात्रेय के रूप में विष्णु ने अवतार लिया

दत्तात्रेय को भी भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। सती अनुसूईया ने जब त्रिदेव को पहले शिशु और बाद में पूर्ववत बना दिया तब तीनों ने उन्हें अपने-अपने अंश से पुत्र होने का वरदान दिया। इसके बाद विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। शिव के अंश से दुर्वासा और ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा का जन्म हुआ। ये भी भगवान विष्णु के दस अवतार में नहीं माने जाते हैं।

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यज्ञ है भगवान विष्णु का सातवां अवतार

विष्णु का सातवां अवतार यज्ञ है। यज्ञ के रूप में उनका जन्म स्वयंभु मन्वन्तर में मनु की पुत्री आकूति के गर्भ से हुआ था। आकूति रूचि प्रजापति की पत्नी थीं। बाद में भगवान यज्ञ के अत्यंत तेजस्वी 12 पुत्र हुए। वे ही स्वयंभु मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाए।

भगवान ने ऋषभदेव के रूप में जन्म लिया

ऋषभदेव को विष्णु का आठवां अवतार कहा जाता है। निःसंतान महाराज नाभि पुत्र की कामना से यज्ञ किया। विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उन्होंने वरदान दिया कि वे ही पुत्र रूप में जन्म लेंगे। इसके बाद उन्होंने महाराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। वे सुंदर सुगठित, कीर्ति, तेल, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम से भरपूर थे। यह देख नाभि ने उसका नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) रखा।

नौवें अवतार में विष्णु का नाम आदिराज पृथु

आदिराज पृथु को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है। मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ था। उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इन्कार कर दिया। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर अपनी पूजा करने के लिए कहा।  तब ऋर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। वंश चलाने के लिए ऋषियों ने ही पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया। उससे पृथु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने कहा कि स्वयं श्रीहरि ने अवतार लिया है।

जल प्रलय से रक्षा के लिए मत्स्य अवतार

भगवान विष्णु के दस में भगवान का मत्स्य अवतार आता है। सृष्टि को जल प्रलय से बचाने के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था। उन्होंने जल प्रलय के समय मछली रूप में नाव पर बैठे लोगों की रक्षा की और किनारे तक पहुंचाया। फिर राजा सत्यव्रत को उसी रूप में तत्व ज्ञान दिया। वह मत्स्य पुराण के नाम से प्रसिद्ध है। उनके बारे में सभी जानते हैं। अतः यहां विवरण नहीं दे रहा हूं।

विष्णु के मुख्य अवतारों में कूर्म भी

भगवान ने कूर्म (कच्छप) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। उनकी पीठ पर मंदराचल पर्वत को रखकर समुद्र का मंथन हुआ। उसमें असंख्य दुर्लभ वस्तुओं में माता लक्ष्मी, अमृत, ऐरावत, कामधेनु, हलाहल (विष) आदि निकला था। इस अवतार की भी कई बार काफी चर्चा हो चुकी है।

औषधियों के स्वामी धन्वंतरि भी विष्णु के अवतार

देवताओं और दैत्यों के समुद्र मंथन में सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यही धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है। उन्हें आयुर्वेद का भगवान भी कहा जाता है। वैसे आयुर्वेद का पहला ज्ञान ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को दिया था। उसके प्रचार-प्रसार में धन्वंतरि की प्रमुख भूमिका रही है। विष्णु के दस अवतारों में इन्हें स्थान नहीं दिया गया है। लेकिन ये उनके अवतार माने जाते हैं।

(विष्णु के शेष 12 अवतारों की जानकारी अगले अंग में)

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