साष्टांग प्रणाम सर्वश्रेष्ठ लेकिन स्त्रियां नहीं कर सकतीं, जानें क्यों

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Prostration best but women can’t : साष्टांग प्रणाम सर्वश्रेष्ठ लेकिन स्त्रियां नहीं कर सकतीं। जानें इस रहस्य को कि स्त्रियों पर रोक क्यों है? वैसे आजकल लोग पैर को छूकर ही प्रणाम की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। कभी-कभी तो घुटने को छूकर काम चला लेते हैं। यहां तक कि मंदिर में भगवान की मूर्ति को भी प्रणाम करने में कोताही बरतते हैं। खैर ये आधुनिक समय की देन है। अभी भी कई ऐसे लोग दिख जाते हैं जो जमीन पर पूरा लेटकर माथा टेकते हैं। इसे ही साष्टांग दंडवत या साष्टांग प्रणाम कहा जाता है। वास्तव में यह एक योगासन है। इसमें शरीर का हर भाग भूमि को स्पर्श करता है। यह स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। आध्यात्मिक रूप से तो अत्यंत महत्वपूर्ण है। जानें इसकी खूबियां।

जानें दंडवत प्रणाम का मतलब

दंडवत का मतलब आठ अंगों को भूमि में स्पर्श कर प्रणाम करना है। हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि से किया हुआ प्रणाम ही अष्टांग प्रणाम है। इसमें यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पेट का भूमि पर स्पर्श न हो। यहां आठ अंग से मतलब दो हाथ, दो पैर, दो घुटने, मस्तक और सिर से है। इसका मतलब पूर्ण समर्पण है। इसमें व्यक्ति को अपना अहंकार खत्म करना पड़ता है। ऐसे दंडवत से शरीर की मांसपेशियां भी खुलती हैं। इससे स्वास्थ्य संबंधी फायदा भी मिलता है। इसके माध्यम से खुद को ईश्वर या प्रणाम करने वाले की शरण में ले जाना है। यह भक्ति मार्ग की ऊंची स्थिति है। इसमें जिसे प्रणाम किया जाता है, उसका भावपूर्ण आशीर्वाद सिर पर उनके हाथ के माध्यम से मिलता है। इसमें प्रणाम करने वाले के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

पुरुष ही कर सकते दंडवत, स्त्रियों पर रोक

साष्टांग प्रणाम सर्वश्रेष्ठ लेकिन स्त्रियां क्यों नहीं कर सकतीं, अब इसे जानें। शास्त्रों के अनुसार पुरुष को ही दंडवत करने की छूट है। स्त्रियों पर ऐसा करने की रोक है। इसका कारण स्त्री का मातृ शक्ति रूप होना है। उसका गर्भ सृष्टि का आधार है। वह जीवन को धारण करता है और सृष्टि को चलाता है। उसका वक्ष संतति का पालन-पोषण का आधार होता है। उस अमृत से नवजीवन की रक्षा होती है। इसलिए किसी दूसरे को सम्मान देने के लिए उन दोनों अंगों के भूमि स्पर्श पर रोक लगाई गई है। इसका कारण गर्भावस्था एवं दुग्ध पान कराने वाली स्त्रियों को विशेष छूट देना भी कहा जा सकता है। वैसे भी देखें तो स्त्रियों को अध्यात्म में सहज ही उच्च पद प्राप्त है। उनमें भाव की प्रधानता होती है। अत्यंत संवेदनशील होने के कारण सहज ही श्रद्धेय (प्रणाम करने योग्य) के प्रति भाव से भरी रहती हैं।

छह प्रकार के होते हैं शारीरिक अभिवादन

शारीरिक अभिवादन छह प्रकार के होते हैं। ये हैं- सिर झुकाना, हाथ जोड़ना, सिर झुकाना और हाथ जोड़ना, दोनों घुटने झुकाकर हाथ जोड़ना और दोनों घुटने व सिर झुकाकर हाथ जोड़ना। इसमें साष्टांग प्रणाम सर्वश्रेष्ठ लेकिन स्त्रियां नहीं कर सकतीं हैं। दंडवत प्रणाम को भक्ति का 25वां अंग है। इसमें संपूर्ण आत्मसमर्पण की भावना होती है। भक्त अपने को असहाय मानकर शरीर, इंद्रिय और मन को भगवान के अर्पण करता है। दंडवत को वास्तुशास्त्र में “षण्महांति” या “छ: महामर्म” स्थान माना जाता है। क्योंकि ये शरीर के अति संवेदनशील अंग होते हैं। योग शास्त्र में इन्हीं छह अंगों को षड्चक्र कहा गया है। इसमें व्यक्ति की सभी पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों को समेट कर प्रभु को समर्पित किया जाता है। ऐसी स्थिति देखकर जिसे दंडवत किया जाता है उसके मन में प्रणाम करने वाले के प्रति उच्च सकारात्मक संवेदना का संचार होता है।

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