Sharad Purnima on 19 october 2021, there will be nectar rain from sky : शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 को, होगी अमृत वर्षा। आश्विन माह के पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। वह सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है। लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने और धन-धान्य से पूर्ण होने का यह अत्यंत अनुकूल समय माना जाता है। मान्यता है कि इस रात धन की देवी लक्ष्मी पृथ्वी के भ्रमण पर निकलती हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। इसलिए इस दिन व्रत, लक्ष्मी पूजन और खीर का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही घर और आस-पास को साफ-सुथरा रखा जाता है। मध्य रात्रि में चंद्रमा का पूजन कर उन्हें खीर चढ़ाया जाता है। थाली में रखे उस प्रसाद को चांदनी में छोड़कर अगले दिन ग्रहण करना कल्याणकारी होता है।
इस तरह करें व्रत, पूजन और चढ़ाएं भोग
शरद पूर्णिमा के दिन अर्थात इस मंगलवार को तड़के उठकर स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं। इसी दौरान दिन भर व्रत का संकल्प लें। हालांकि इसके बिना भी पूजन किया जा सकता है। ध्यान रहे कि इस दिन पूर्ण सात्विक आहार ही ग्रहण करें। तामसिक भोजन, नशा आदि पूर्णतः वर्जित है। दिन भर माता का भजन, मंत्र जप आदि करें। उनके पूजन का विधान शाम को है। इस दिन प्रसाद में अन्य वस्तुओं के साथ ही खीर चढ़ाना शुभ माना जाता है। आधी रात में जब चंद्रमा आकाश के मध्य में हो, तब उनका पूजन कर उन्हें भी खीर का भोग लगाएं। फिर उसे खुले आकाश के नीचे रख दें ताकि भरपूर चांदनी उसे मिल सके। तड़के उसे उठाकर घर के अंदर ले आएं। फिर प्रसाद के रूप में सभी को वितरित करें। वह प्रसाद अमृत स्वरूप माना जाता है।
शुभ मुहूर्त और सावधानी
शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर को संध्या 7 बजे से प्रारंभ होगा। यह 20 अक्टूबर को रात 8.20 बजे समाप्त होगा। इस तरह देखें तो सूर्योदय के साथ ही पूर्णिमा का अधिक समय 20 अक्टूबर को रहेगा। लेकिन चंद्रमा का संबंध रात से माना जाता है और 19 अक्टूबर की पूरी रात पूर्णिमा है, इसलिए शरद पूर्णिमा उसी दिन माना गया है। इस दिन भक्तों को ध्यान रखना है कि उनका घर साफ-सुथरा रहे। संभव हो तो आसपास का क्षेत्र से साफ रखें। स्वयं परिवार सहित स्वच्छ वस्त्र पहनें। माता को स्वच्छता ही पसंद है। माता को लाल और सफेद रंग पसंद है। अतः प्रसाद और वस्त्र चयन में उसका ध्यान रखें। उन्हें काले वस्त्र, काला रंग, गंदगी, कलह और स्त्री का अपमान पसंद नहीं है। अतः उसका भी ध्यान रखें।
श्रीकृष्ण और कामदेव से भी जुड़ा है यह दिन
यह पवित्र दिन श्रीकृष्ण और कामदेव से भी जुड़ा है। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि के बाद महादेव का तप भंग करके कामदेव में अहंकार आ गया था। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को चुनौती दे डाली। कामदेव का अहंकार तोड़ने के लिए भगवान ने उसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने शक्ति परीक्षण का समय शरद पूर्णिमा की रात का चुना, जब चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण रोशनी बिखेरता है। भगवान ने उस वातावरण में बंसी बजाकर क्लीं बीज मंत्र की धुन फूंकी। श्रीकृष्ण की वंशी की धुन और मंत्र के आकर्षण की वशीभूत गोपियां राधा सहित घर से बाहर निकल कर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन्हें घेर कर सभी नृत्य में मग्न हो गईं। हजारों गोपियों के बीच उनके साथ नृत्य करते श्रीकृष्ण पर कामदेव ने हर दांव आजमा लिए लेकिन विफल रहे। उनका अहंकार टूट गया। उसी कामदेव कालांतर में भगवान के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लिया।
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