सारनाथ में है महात्मा बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा

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Buddha Purnima

बिहार और उत्तर प्रदेश की धरती और महात्मा बुद्ध का संबंध शुरू से ही रहा है। इसी इलाके में उनका जन्म हुआ, यहीं उन्हें ज्ञान मिला और यहीं उनकी असली कर्मभूमि रही। बाद में भी बौद्ध धर्म के प्रचार में बिहार और उत्तर प्रदेश, खासकर वारणसी से आसपास के इलाके ने ही सबसे प्रमुख भूमिका निभाई। बात चाहे महात्मा बुद्ध के प्रथम ज्ञान देने की हो, धर्म प्रचार के लिए सम्राट अशोक के समर्पण की हो या विक्रमशिला विश्वविद्यालय विद्वानों की हो, बौद्ध धर्म के विकास की बात हो तो उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। साल 2011 में इसी वाराणसी के पास स्थित सारनाथ में एक और आकर्षण जुड़ गया है वह है विशाल बुद्ध प्रतिमा। वाराणसी के पास स्थित दर्शनीय स्थल सारनाथ में वैसे तो सैलानियों के लिए कई आकर्षण है। यह वही स्थान है, जहां बुद्ध ने सबसे पहले लोगों को अपना ज्ञान बांटा था। सारनाथ के इतिहास में अब एक नया अध्याय जुड गया है। अब जब आप सारनाथ जाएंगे तो वहां भगवान बुद्ध की चलायमान अभय मुद्रा में बनी देश की सबसे ऊंची लगभग 80 फीट प्रतिमा देखने को मिलेगी। हालांकि सारनाथ में पहले से ही बुद्ध की प्रतिमा है लेकिन बुद्ध की चलायमान प्रतिमा अनूठी है।


ये प्रतिमा सारनाथ संग्रहालय के पास ही थाई बौद्ध विहार में स्थापित की गई है। इसके निर्माण में कुल 14 साल का वक्त लगा है। प्रतिमा के निर्माण का कार्य 1997 में आरंभ हुआ था। हालांकि इसके निर्माण की योजना 1970 में ही बनी थी। इसका निर्माण भारत और थाईलैंड के सहयोग से हुआ है। ये प्रतिमा थाई बौद्ध विहार के ढाई एकड़ के परिसर में स्थित है। इसके निर्माण में 2 करोड़ की राशि खर्च हुई है। इसके निर्माण में कई बौद्ध संस्थाओं ने दान दिया है। प्रतिमा के आसपास खूबसूरत पार्क है। इसे वाराणसी के पास चुनार से लाए गए पत्थरों से बनाया गया है। इसमें कुल 815 पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इस प्रतिमा का अनावरण 16 मार्च 2011 को किया गया।


सबसे ऊंची प्रतिमा : हैदराबाद के हुसैनसागर झील में भी गौतम बुद्ध की ग्रेनाइट से बनी प्रतिमा लगी है लेकिन ये प्रतिमा 60 फीट के आसपास की है। लेकिन सारनाथ में लगी गौतम बुद्ध की प्रतिमा 80 फीट की होने के कारण देश में सबसे ऊंची मानी जा रही है। बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ ही वह जगह है जहां गौतम बुद्ध ने अपना पहला संदेश उन पांच शिष्यों को दिया था जो कभी गौतम बुद्ध का साथ छोड़कर चले गए थे। इस घटना को धर्म चक्र परिवर्तन की संज्ञा दी गई थी। गौतम बुद्ध के जीवन में और बौद्ध धर्म के इतिहास में सारनाथ का खास महत्व है।


कैसे पहुंचे : वाराणसी जंक्शन से छह किलोमीटर दूर सारनाथ पहुंचना आसान है। यहां पर धमेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, मूलगंध कुटी मंदिर, संग्रहालय, सारनाथ के खंडहर, सुरंग, चिडिय़ाघर जैसी कई चीजें देखने लायक पहले से ही हैं। अब सारनाथ में बौद्ध प्रतिमा बड़ा आकर्षण बन गई है। इसलिए जब आप अगली बार वाराणसी जाएं तो सारनाथ में गौतम बुद्ध की प्रतिमा के दर्शन करना न भूलें। हां सारनाथ को घूमने का सबसे बेहतर तरीका है कि ज्यादा से ज्यादा पैदल चलें।


संकल्प से बढ़कर कुछ भी नहीं

एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक विशाल पहाड़ मिला। आनंद ने पूछा, भगवन। क्या इस पहाड़ से अधिक शक्तिशाली कुछ है। तथागत ने उत्तर दिया, हां, लोहा। लोहा पहाड़ के अहंकार को चूर कर उसे धूल में बदलने में सक्षम है। तब आनंद ने कहा कि लोहा सबसे शक्शिाली है। तथागत बुद्ध ने उत्तर दिया, नहीं। अग्नि लोहे के अहंकार को पिघला देती है। जल अग्नि के अहंकार को समाप्त कर देता है। पवन बड़ी-बड़ी जलधाराओं का मार्ग मोडऩे में सक्षम है। इस संसार में एक से बढ़ कर एक शक्तिशाली हैं। सभी समय आने पर एक-दूसरे पर भारी पड़ते हैं। लेकिन, मनुष्य की संकल्पशक्ति से बढ़ कर कुछ नहीं है। सबसे अधिक शक्तिशाली मनुष्य की संकल्पशक्ति है।



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