kanyakumari is a confluence of captivating views and spirituality : मनमोहक दृश्य और अध्यात्म का संगम है कन्याकुमारी। देश का यह दक्षिण सीमांत शहर। तीन ओर से यह अपार जलसमूह से घिरा है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिम में अरब सागर है। 51 शक्तिपीठों में एक यहां का माता का मंदिर श्रद्धा का बड़ा केंद्र है। श्रद्धालुओं की हमेशा भीड़ उमड़ी रहती है। मान्यता है कि यहां सागर में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। तीन सागर के मिलन स्थल होने के कारण यहां पानी का शोर अधिक रहता है। हालांकि यह शोर संगीत की तरह महसूस होता है। यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त भी अत्यंत मनोरम है।
शक्तिपीठ है कन्याकुमारी
इस स्थान पर मां सती के दांत गिरे थे। यहां माता की शक्ति को शर्वाणि/नारायणी कहा जाता है। इनके भैरव निमिष/स्थाणु हैं। वैसे देवी का प्रचलित नाम कन्याकुमारी है। मंदिर में माता की पूजा नारायणी के रूप में होती है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी प्रतिमाएं हैं। साथ ही नवग्रहों की भी स्थापना की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हनुमान की विशाल प्रतिमा है। यहां हिंदुओं के सभी प्रमुख त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस स्थान के दो अपने विशेष त्योहार हैं। वे हैं-शुचंद्रम मर्गली व रथयात्रा। इस दौरान मंदिर व उसके आसपास के क्षेत्र को भव्य रूप में सजाया जाता है। इस पर्व के दौरान कई श्रद्धालु व्रत रखते हैं।
एक अन्य कथा भी प्रचलित
मनमोहक दृश्य और अध्यात्म के इस केंद्र में एक अन्य कथा भी प्रचलित है। इसके अनुसार पौराणिक काल में असुर बानासुरन को वरदान था कि उसका वध सिर्फ कुमारी कन्या के हाथों होगा। उधर, राजा भरत ने अपनी पुत्री को इस क्षेत्र का राज्य सौंपा। वह मां शक्ति की अवतार थीं। उन्होंने शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। शिव भी विवाह के लिए तैयार थे। लेकिन बानासुरन की मृत्यु माता के कुमारी रूप से ही होनी थी, इसलिए विवाह न हो सका। उनकी सुंदरता अप्रतिम थी। यह जानकर बानासुरन ने विवाह का प्रस्ताव रखा। माता ने कहा कि वह उन्हें युद्ध में हरा दे तो वह विवाह कर लेंगी। वानासुरन उनसे युद्ध करने पहुंचा और उनके हाथों मारा गया।
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आस्था व पर्यटन के कई स्थान
कन्याकुमारी में भद्रकाली का मंदिर भी प्रसिद्ध है। मां पार्वती को समर्पित अम्मन मंदिर में मानो सागर देवता ही हमेशा संगीत की स्वर लहरियां सुनाते हैं। समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर आस्था के साथ ही पर्यटन के लिहाज से भी अदभुत है। यहां के गांधी स्मारक में राष्ट्रपिता की चिता की राख रखी है। समुद्र में थोड़ा अंदर स्थित विवेकानंद राॅक भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था। वे सागर की प्रचंड लहरों में तैरते हुए वहां पहुंचे थे। अब वहां आने-जाने के लिए स्टीमर की व्यवस्था है। वहां ध्यान लगाने के लिए एक हाल है। वहां की अनुभूति अवर्णनीय है। थोड़ी देर भी ध्यान गाने पर परम शांति की अनुभूति होती है।
महान इतिहास का भी साक्षी रहा यह पर्यटक स्थल
मनमोहक दृश्य और अध्यात्म का यह केंद्र गौरवशाली इतिहास का भी साक्षी है। यह क्षेत्र चोल, चेर व पांड्य राजाओं के शासानकाल को देख चुका है। हजारों सालों की कला, संस्कृति और सभ्यता की झलक अभी भी यहां दिखती है। पर्यटनस्थल के रूप में यह देश का बड़ा केंद्र है। सागर तट पर फैले रंगबिरंगे रेत अत्यंत आकर्षक हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब उसकी किरणें रेतों पर पड़ती हैं तो मनमोहक दृश्य उभर जाता है। तीन सागर के संगम स्थल पर स्थित इस क्षेत्र की छटा निराली है। सागर के जल के विभिन्न रंग अनोखे लगते हैं। गरजती, बल खाती और तट से टकराती लहरों को देखना रोमांच से भर देता है।
रेलवे का अंतिम स्टेशन
त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी की दूरी मात्र 90 किलोमीटर है। रेल और सड़क दोनों ही माध्यमों से करीब दो घंटे में पहुंच सकते हैं। हालांकि चेन्नई सहित देश के कई प्रमुख शहरों से भी सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। यहां पहुंच कर रेलपटरी समाप्त हो जाती है। रेल लाइन के समाप्त होते ही प्लेटफार्म शुरू हो जाता है। रेलवे स्टेशन बड़ा और सुंदर है। लेकिन यहां कम ट्रेनों के आने से स्टेशन में भीड़ कम होती है। शहर करीब तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसलिए पैदल भी घूमा जा सकता है। हालांकि आटो रिक्शा भी आसानी से मिलते हैं। स्टेशन के पास से ही बाजार शुरू हो जाता है। रहने के लिए हर तरह के होटल और रिजार्ट हैं। इसमें अग्रिम आरक्षण करा लेना सुरक्षित रहता है।
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