Mahamrityunjaya mantra gives relief from all troubles : महामृत्युंजय मंत्र से मिलती है सभी कष्टों से मुक्ति। इसको महामंत्र कहा जाता है। इसमें अद्भुत शक्ति है। इसका असर चमत्कारिक होता है। यह निश्चित मृत्यु को भी टाल देता है। आवश्यकता है सिर्फ नियमपूर्वक अनुष्ठान करने की। योग्य पंडित से कराएं तो सफलता निश्चित है। इसे खुद भी कर सकते हैं। यह सभी तरह के कष्टों से भी मुक्ति दिलाता है। इसका कारण है कि शिव ही महाकाल हैं। संसार पंचभूतों यानी पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि से बना है। ये पंच तत्व भी कहलाते हैं। हर तत्व के एक देवता हैं। शिव यूं तो जल तत्व के देवता माने जाते हैं लेकिन उनके कुछ मंदिर सभी तत्वों से जुड़े हैं। वे मृत्युजय हैं। उनकी उपासना सभी तत्वों की समस्या दूर करने में संभव है।
सुख के लिए शिव की उपासना सबसे प्रभावी
सुख व किसी भी कामना के लिए शिव सबसे प्रभावी हैं। लिंग पुराण के अनुसार शिव ज्योर्तिलिंग अर्द्धरात्रि के समय प्रकट हुआ था। इसलिए रात के समय शिव साधना बहुत ही असरदार होती है। शिव पुराण के अनुसार महामृत्युंजय से शिव प्रसन्न होते हैं। साधक के धन, सम्मान व ख्याति का विस्तार होता है। मृत्यु तुल्य कष्ट व लंबी बीमारी में यह मंत्र अत्यंत कारगर है। घरेलू समस्या में भी यह रामबाण है। जन्म कुंडली में मारकेश ग्रह हो, आयु रेखा कटी या मिटी हो तो यह जप अवश्य करें। जप की संख्या सवा लाख होनी चाहिए।
मारकेश के लक्षण
कुंडली में मारकेश ग्रह की पहचान अहम है। यदि मन में लगातार बैचनी रहती है। किसी कार्य में मन नहीं लगता है। अक्सर दुर्घटना के शिकार होते हैं। बीमारी से त्रस्त रहते हैं। अपनों से मनमुटाव होता रहता है। शत्रुओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है। कार्य पूरा होते-होते रह जाता है। समाज में मान-सम्मान की कमी हो रही है। ऐसे में समझ लें कि मारकेश ग्रह के प्रभाव में हैं। मारकेश की महादशा व्यतीत होने पर यह मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में महामत्युंजय जप अवश्य कराएं। जप से पहले रुद्राभिषेक कर लें तो विशेष फलदायी होगा। नीचे महामृत्युंजय का मूल मंत्र दे रहा हूं। हालांकि विद्वानों ने इस मंत्र में कुछ शब्दों को जोड़कर इसे और फलदायी बनाने की कोशिश की है। उसे विशेष मानकर फिलहाल छोड़ रहा हूं।
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महामृत्युंजय का मूल मंत्र
ऊं ह्रौं ऊं जूं सः भूर्भुवः स्वः त्रयंबकं यजामहे सुगंन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारिकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात भूर्भुवः स्वः ह्रौं ऊं जूं सः ह्रौं ऊं।
अनुष्ठान के नियम
जप के नियम शुरू में स्वयं तय कर लें। इसके तहक कुल जप संख्या, स्थान, समय और विधि निर्धारित कर लें। जप स्थान और संख्या रोज समान हो। जप के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। सात्विक भोजन करें। मन, वचन व कर्म से सत्य और अहिंसा का पालन करें। वाणी पर नियंत्रण होना जरूरी है। जप अपने घर या शिवालय में करें। महामृत्युंजय मंत्र से मिलती है सभी कष्टों से मुक्ति। जप करते समय मुंह से आवाज नहीं निकालें। जम्हाई आने से बाएं हाथ की उंगली से चुटकी बजाएं। शिव का स्मरण सदैव करते रहें। जप के पूर्ण होने पर हवन करना चाहिए। हालांकि यह अनिवार्य नहीं है। हवन के बाद तर्पण और मार्जन करना चाहिए। तदुपरांत दान एवं ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए।
विभिन्न कार्यों में उपयोगी
महामृत्युंजय मंत्र अनेक कार्यों में उपयोगी है। विभिन्न समस्याओं को दूर करने में कारगर है। ग्रह शांति में भी इसका जवाब नहीं है। भय दूर करने के लिए 110 मंत्र का जप करें। सामान्य रोगों से मुक्ति के लिए 11000 जप करें। बड़े और कठिन कार्य के लिए सवा लाख जप जरूरी है। पुत्र प्राप्ति व असाध्य रोग इसी श्रेणी में आते हैं। रोजगार में प्रगति के लिए सवा लाख जप करें। अकाल मृत्यु टालने के लिए भी सवा लाख जप करें। यदि कोई मृत्युशैय्या पर है। डाक्टर व ज्योतिषी ने जवाब दे दिया है। चिंता न करें। सवा लाख की तीन आवृत्ति से वह भी टल जाता है। मेरा अनुभव है कि इससे रोगी की जान अवश्य बच जाती है। हालांकि वह शारीरिक रूप से परेशान रहता है। इस अनुष्ठान में नियम के साथ श्रद्धा और विश्वास जरूरी है।
लघु मृत्युंजय मंत्र भी अत्यंत प्रभावी
महामत्युंजय का जप कठिन है। इसे करना सबके लिए संभव नहीं होता है। ऐसे लोगों के लिए लघु मृत्युंजय मंत्र है। यह भी अत्यंत उपयोगी है। इसका रोज 108 बार जप करने से शिव की कृपा मिलती है। यह रोग, शोक व बाधा दूर करने में प्रभावी है। इसके लिए किसी पंडित की जरूरत नहीं है। समस्या ज्यादा हो तो जप संख्या बढ़ा दें। अनुष्ठान के रूप में भी कर सकते हैं। विधि महामृत्युंजय वाली होगी।
लघु मृत्युंजय मंत्र भी
ऊं जूं स:
कुछ पंडित ऊं शब्द के बिना ही मंत्र मानते हैं। मेरा अनुभव है कि दोनों उपयोगी हैं। भक्त अपनी सुविधानुसार किसी का भी जप कर सकते हैं। यह मंत्र भी अत्यंत प्रभावी है। लेकिन ध्यान रहे महामृत्युंजय मंत्र से मिलती है सभी कष्टों से मुक्ति।
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