know the secret of mahamrityunjaya : महामृत्युंजय मंत्र का रहस्य जानें। यह भी जानें कि किसने इसकी रचना की। दो भाग के इस लेख में इसके फायदे व प्रयोग विधि भी देखें। यह मंत्र हर बाधा को दूर करने में संक्षम है। बीमारी व मृत्यु का भय दूर करने और ग्रहों को शांत करने में भी सक्षम है। कई बार इसके प्रयोग से मृत्यु शैया पर पड़े लोगों को भी मैंने ठीक होते देखा है। शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.इस मंत्र की रचना की कथा भी इसकी पुष्टि करती है। आइए पढ़ें इसकी रचना की कथा। अगले भाग में मंत्र, जप विधि और लाभ की जानकारी दूंगा।
महाकाल ने भाग्य बदल कर दिया पुत्र का वरदान
महादेव के परमभक्त मृकंड ऋषि निःसंतान थे। उनके भाग्य में ही संतान सुख नहीं था। उन्होंने सोचा कि महादेव सारे विधान बदल सकते हैं। क्यों न उनको प्रसन्नकर यह भाग्य बदलवाया जाए। उन्होंने घोर तप किया। शिव तप का कारण जानते थे। इसलिए उन्होंने दर्शन देने में देर की। लेकिन अंततः भक्ति के आगे वे झुक ही जाते हैं। उन्होंने ऋषि को दर्शन देकर कहा कि मैं तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं। लेकिन इस हर्ष के साथ विषाद भी होगा। ऋषि को पुत्र हुआ। उसका नाम मार्कंडेय पड़ा। ज्योतियों ने बताया कि वह अल्पायु है। मात्र 12 वर्ष जीवित रहेगा।
ऋषि का हर्ष विषाद में बदला
पुत्र का भविष्य जान ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया। उन्होंने फिर महादेव की शरण में जाने का निर्णय लिया। उधर बालक बड़ा होने लगा। ऋषि ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी। साथ ही अल्पायु होने की बात बता दी। यह भी बताया कि भोलेनाथ इससे बचा सकते हैं। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि वे शिव से दीर्घायु का वरदान लेंगे। उधर, 12 वर्ष पूरे होने को आए थे। सभी चिंतित और भयभीत थे।
मार्कंडेय ने की महामृत्युंजय की रचना
मार्कण्डेय ने पहली बार महामृत्युंजय मंत्र का रहस्य सामने रखा। उन्होंने ही महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। फिर वे इसका अखंड जप करने लगे। समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए। यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है। उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय जी ने तो अखंड जप का संकल्प लिया था। यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस नहीं हुआ। वे खाली हाथ लौट गए। उन्होंने यमराज को सारी बात बताई। कहा कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए। तब यमराज ने कहा कि वे स्वयं जाएंगे। मार्कंडेय ने यमराज को देखा तो महामृत्युंजय का जप करते हुए शिवलिंग से लिपट गए।
यमराज ने जप के दौरान प्राण लेने की कोशिश की तो क्रोधित महाकाल प्रकट आए
यह देख यमराज ने उन्हें खींचकर ले जाने की चेष्टा की। तभी तेज ध्वनि से मंदिर कांपने लगा। एक तीव्र प्रकाश से यम की आंखें चुंधिया गईं। क्रुद्ध महाकाल सामने आ गए। उन्होंने यम से पूछा उनकी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस उन्होंने कैसे किया? महाकाल के प्रचंड रूप से यमराज कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आपका सेवक हूं। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है। भोलेनाथ का क्रोध कुछ शांत हुआ। वे बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं। इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते हो। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का रहस्य विश्व के समक्ष आ गया।
महामृत्युंजय का जप करने वाले को नहीं होगा मृत्यु का भय
तब यमराज ने कहा। हे भगवन, आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आपके भक्त मार्कंडेय को छोड़ रहा हूं। यही नहीं इनके द्वारा रचित महामृत्युंजय का जप करने वाले को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इस तरह शिव की कृपा से मार्केंडेय दीर्घायु हुए। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय काल को भी परास्त करने वाला बना। उन्होंने दुनिया को नई राह दिखाई। महामृत्युंजय का पाठ करने वाले शिव की कृपा मिलती है। यह असाध्य रोगों और मानसिक वेदना से राहत देता है।
नोट- पहले भाग में आपने जाना महामृत्युंजय मंत्र का रहस्य। अगले भाग में मंत्र, जप विधि और लाभ की जानकारी दी जाएगी। उसे पढ़कर अवश्य लाभ उठाएं।
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