अकेले भगवान भी अधूरे
सृष्टि पर आए संकट को शक्ति ने दूर किया
जब भी सृष्टि पर संकट आया वे समाने आईं। दुर्गा की कहानी कौन नहीं जानता। देवता डर कर भाग रहे थे। तब दुर्गा ने दुष्टों का वध किया। देवताओं को उन्होंने अभयदान दिया। दस महाविद्या की शक्ति अद्भुत है। वे कुछ भी देने में समर्थ हैं। वे ब्रह्मांड की मूल शक्ति हैं। नारी की महत्ता को स्पष्ट करती हैं। नारी के बिना सृष्टि नहीं चल सकती है।
शक्ति के बिना साधना पूर्ण नहीं
सिर्फ मोक्ष की कामना में भगवान उपयोगी हैं। भोग के साथ मोक्ष चाहिए तो शक्ति की शरण में जाना होगा। हालांकि महादेव दोनों दे सकने में समर्थ हैं। इसका कारण उनका अर्द्धनारीश्वर रूप है। बाकी किसी देव ने नारी को आत्मसात नहीं किया। अतः उनकी सीमा है। वे उनकी खूबी धारण नहीं कर सके हैं। तंत्रशास्त्र में मातृशक्ति की सुंदर व्याख्या है। उनके बिना ब्रह्मांड का कोई कार्य संभव नहीं।
यह भी पढ़ें- अधिमास : धार्मिक कार्य व आध्यात्मिक उत्थान का सुनहरा मौका
सभी देवों को मातृशक्ति से मिलती है शक्ति
शक्ति के बिना सभी देव कमजोर हैं। विष्णु की शक्ति योगमाया हैं। धन के लिए लक्ष्मी की ओर देखते हैं। शिव को तो शक्ति ने घेर ही रखा है। दस महाविद्या व दुर्गा के नौ रूप को सभी जानते हैं। शक्ति पाने के लिए सभी देवों को उपासना करनी पड़ती है। अन्यथा वे कमजोर हो जाते हैं। इंद्रादि देवों के साथ यही होता है। विष्णु की चतुर्मास योगनिद्रा से सभी परिचित हैं। उस दौरान उनकी पूजा तक वर्जित है। शिव भी मौका मिलते ही ध्यानस्थ हो जाते हैं। सोचें- वे किसकी उपसाना करते हैं? दरअसल यह शक्ति प्राप्ति के लिए है। देवता को ऋषियों के यज्ञ से शक्ति मिलती है। बदले में वे उनकी रक्षा करते थे। ऋषि को सुरक्षा बेरोकटोक साधना व हवन के लिए देते थे। अर्थात देवता साधना में मदद कर अपरोक्ष साधना करते थे। उससे उनको शक्ति मिलती थी।
मानव उत्थान व सुख देने वाली हैं शक्ति
मानव उत्थान और सुख देने वाली हैं शक्ति। उन्हें ही इसका आधार माना गया है। सारी शक्तियां उन्हीं में निहित हैं। तंत्रसार में उनकी साधना विधि बताई गई है। उनसे सब कुछ पा सकते हैं। शक्ति की अवहेलना से जीवन बेकार होता है। व्यावहारिक जगत में भी देखें। घर की आधार स्त्री ही है। स्त्री नहीं तो घर भूतों का बसेरा होता है। गृहस्थ जीवन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। संन्यासी, योगी, मंदिर, मठ के सुचारु संचालन का गृहस्थ ही आधार होता है। इन सभी को धन की आवश्यकता होती है। कोई संन्यासी और योगी भूखा नहीं रह सकता। पेट भरने के लिए गृहस्थ के द्वार जाना पड़ता है। मंदिर एवं मठों के लिए गृहस्थ ही धन देते हैं।
कल से दस महाविद्या पर विशेष सामग्री पढ़ें।
यह भी पढ़ें- यह भी देखें- महालक्ष्मी व्रत : धन पाने का अवसर