गुरु गोरखनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के लिए असाधारण कार्य किए। नाथ संप्रदाय को अपने जमाने में शीर्ष पर पहुंचाने और बाद की पीढ़ी को सरल व सहज रूप से धर्म, आध्यात्म की प्राप्ति के साथ ही दैनिक जीवन की समस्याओं से मुक्ति के लिए भी अद्भुत मंत्रों व प्रयोगों की रचना की।
गुरु गोरखनाथ के काल में उनके पंथ नाथ संप्रदाय के योगियों से पूरा भारत कांपा करता था। आज भी इनकी सिद्धि और शक्ति का कोई जवाब नहीं है। शाबर मंत्रों की रचना और उन्हें सिद्ध करने का काम नाथ संप्रदाय के योगियों ने ही किया। आज इसी के तहत हम आपको बता रहे हैं कि जब एक परम सिद्ध तांत्रिक सांसारिकता के फेर में पड़ता है तो क्या होता है। गुरु गोरखनाथ के नाम और शक्ति से तो कभी वाकिफ होंगे। उनके गुरु का नाम मत्स्येंद्र नाथ था।
मत्स्येंद्रनाथ उर्फ मछिंदरनाथ आदिदेव शिव का प्रथम शिष्य भी माना जाता है। इससे मत्स्येंद्रनाथ की शक्ति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने गोरखनाथ समेत कई महान योगियों को सिद्ध बना दिया था। गोरखनाथ को अपने गुरु मत्स्येंद्रनाथ से काफी प्रेम था। गुरु भी गोरखनाथ को पुत्र की तरह मानते थे। एक बार मत्स्येंद्रनाथ घूमते हुए पूर्वोत्तर के एक राज्य में चले गए। पूर्वोत्तर के राज्य की महिलाएं काफी मायावी होती थीं। पहले जब कोई काम की तलाश में असम की तरफ जाता था तो महिलाएं रोकती थीं, कहती थीं कि पूरब मत जाओ। यहीं के एक राज्य की रानी मृणावती ने मछिंदरनाथ को अपने रूप जाल में फंसा लिया। रानी मृणावती के पति की मौत हो गई थी और उन्हें कोई संतान नहीं थी। मछिंदरनाथ को रानी पर दया आ गई और वे राजा के मृत शरीर में प्रवेश कर गए। इसके साल भर बाद ही रानी की गोद भर गई। लेकिन, रानी के रूप जाल में फंस कर मत्स्येंद्रनाथ अपने कर्तव्य को भूल गए। रास लीलाओं ने उन्हें घेर लिया।
राजमहल में पुरुषों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया। गोरखनाथ को जब इस बात का पता चला वे अपने गुरु को वापस लाने चल दिए। इधर मत्स्येंद्रनाथ खुद को भूल चुके थे। वे पूरी तरह से सांसारिकता में रम गए थे। स्त्री वेश में कुछ साथियों को साथ लेकर गोरखनाथ मत्स्येंद्रनाथ के महल में पहुंच गए। वहां उन्होंने मृदंग पर धुन छेड़ी, ‘जाग मछिंदर गोरख आया, चेत मछिंदर गोरख आया, चल मछिंदर गोरख आया।’ मत्स्येंद्रनाथ अब अपने शिष्य को पहचान गए। लेकिन, माया-मोह से उनका पिंड नहीं छूटा। इसी बीच मत्स्येंद्रनाथ के बेटे ने शौच कर दिया और मत्स्येंद्रनाथ उसे साफ करने में लग गए। गोरखनाथ ने कहा, गुरुजी, मैं साफ कर ले आता हूं। गोरखनाथ राजकुमार को लेकर चल दिए और उधर से अकेले लौट आए। मत्स्येंद्रनाथ ने जब राजकुमार के बारे में पूछा तो मत्स्येंद्रनाथ ने कहा कि राजकुमार को तो उन्होंने धोकर सूखने के लिए टांग दिया है। गोरखनाथ ने कहा कि बच्चा गंदा हो गया था। धोबी जैसे कपड़ों को साफ करता है उसी प्रकार उन्होंने बच्चे की दोनों टांगें पकड़ कर उसे पत्थर पर खूब पटका और पानी में धोकर सूखने के लिए छोड़ आया। बच्चे में ज्यादा जान नहीं थी, वह तो कब की निकल गई। बाकी उसकी बची हड्डियों को पत्थर पर सूखने छोड़ आया हूं। इतना सुनते ही मत्स्येंद्रनाथ बेहोश हो गए।
तब गोरखनाथ जी ने गुरु को समझाना शुरू किया कि यह सब माया-मोह का चक्कर है। सब छोड़ कर आप मेरे साथ चलिए। लेकिन मत्स्येंद्रनाथ पुत्र वियोग में पागल हुए जा रहे थे। तब गोरखनाथ ने अपना पासा फेंका। कहा, यदि आप मेरे साथ चलने के लिए तैयार हैं तो आपका पुत्र जीवित हो जाएगा। मजबूरी में मत्स्येंद्रनाथ ने गोरखनाथ की बात मान ली। गोरखनाथ ने बच्चे की हड्डियां समेटीं और मंत्र पढ़ कर बालक को जीवित कर दिया। तब राजविलासिता छोड़ कर मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के साथ चलने के लिए तैयार हो गए। उसी समय से ‘गुरु गुड़ ही रहा, चेला चीनी हो गया’ की कहावत चरितार्थ हो गई। रानी भी जानती थी कि गोरखनाथ अपने गुरु को रहने नहीं देंगे। चलते समय एक पोटली में काफी सोना रानी ने मत्स्येंद्रनाथ को दिया। सोचा कि कभी उनके काम आ जाएगा। गोरखनाथ गुरु को लेकर चल दिए। रास्ते में रात होने लगी। गोरखनाथ जी जंगल में रुकने की जिद करते थे तो मत्स्येंद्रनाथ किसी गांव में पास रुकना चाहते थे। उन्हें डर था कि उनकी सोने की पोटली कहीं चोर-डाकू ना लूट लें। थोड़ी देर बाद मत्स्येंद्रनाथ शौच को गए और गोरखनाथ ने पोटली खोल कर देख ली कि इसमें तो सोना है। इसके बाद गोरखनाथ ने पोटली उठा कर फेंक दी। मत्स्येंद्रनाथ के वापस लौटने के बाद उन्होंने कहा कि सोने की पोटली तो मैंने फेंक दी। अब सारी चिंताएं दूर हो गईं। इसके बाद मत्स्येंद्रनाथ का भ्रम टूटा और वे धूनी रमा कर बैठ गए।