ऐसा मुगल जिसने कृष्ण भक्ति के लिए नौकरी छोड़ी

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श्री कृष्णा की लीला
श्री कृष्णा की लीला

A Mughal who left a job for devotion to Krishna : ऐसा मुगल जिसने कृष्ण भक्ति के लिए नौकरी छोड़ दी। श्रीकृष्ण को भक्त वत्सल कहा गया है। वे भाव मात्र से ही भक्तों के वश में हो जाते हैं। यही कारण है कि किसी भी अन्य देवी-देवताओं की तुलना में श्रीकृष्ण के भक्तों का ज्यादा नाम है। इनके भक्त जाति-धर्म से परे रहे हैं। हिंदू हों या मुसलमान, पुरुष हों या स्त्री सभी इनके भक्त हैं। इस्कान के माध्यम से दुनिया भर में इनके भक्त फैले हुए हैं। इस लेख में मैं बात कर रहा हूं उनके एक अनोखे भक्त की। मुगलकाल में जब हिंदुओं का तेजी से धर्मांतरण हो रहा था, तब एक मुगल सरदार ने कृष्ण भक्ति में नौकरी तक छोड़ दी। उनकी गिनती महान कृष्ण भक्तों में होती है।

कथा कृष्ण भक्ति की

मुगल शासन के समय की घटना है। एक ब्राह्मण के घर के पास मुगल सरदार रहते थे। ब्राह्मण कृष्ण भक्त थे। रोज तन्मयता से गीत गोविंद गाते थे। स्वर लहरी इतनी मनमोहक थी कि मुगल दरबारी का ध्यान बरबस उस ओर खिंचा रहता था। कई बार ब्राह्मण ने देखा कि मुगल घर के सामने खड़े होकर गीत गोविंद सुनते हैं। ऐसा मुगल जिसने कृष्ण भक्ति की। यह देख ब्राह्मण ने एक बार उनसे पूछा- सरकार, आप रोज इन पदों को सुनते हैं। क्या कुछ समझते भी हैं? सरदार ने कहा कि नहीं, मुझे कुछ भी समझ नहीं आता है। फिर भी पता नहीं क्यों इन्हें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। इच्छा होती है कि हमेशा सुनता रहूं। फिर पूछा कि आखिर यह है क्या? किस किताब में है? ब्राह्मण ने बताया कि यह गीत गोविंद है। यदि आप सीखना चाहते हैं तो मैं सिखा दूंगा।

मुगल सरदार ने सीखा गीत गोविंद गाना

मुगल ने ब्राह्मण का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जल्द ही इसे गाना सीख भी लिया। फिर अक्सर इसे वह गाने लगे। यह देख ब्राह्मण ने उन्हें टोका। कहा कि आप गाते तो अच्छा हैं लेकिन इसे कहीं भी और कैसे भी नहीं गाना चाहिए। गीत गोविंद जहां भी गाया जाता है, श्रीकृष्ण वहां पहुंच जाते हैं। इसलिए कृपया जब आप इसे गाएं तो श्रीकृष्ण के लिए एक आसन बिछा दीजिए। मुगल ने कहा कि यह तो बहुत कठिन है। मैं नौकरी करता हूं। वक्त-बेवक्त कभी भी बुलावा आ जाता है। न खाने का कोई समय है न आराम करने का। कई बार घोड़े पर ही दिन-रात बिताना पड़ता है। ऐसे में आसन का इंतजाम कैसे करूंगा? ब्राह्मण ने कहा कि तो फिर कभी भी और कहीं भी गाना बंद कीजिए। जब घर में हों, तभी गाइए।

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सरदार ने कहा- गीत गोविंद गाए बिना चैन नहीं मिलता

ऐसा मुगल जिसने कृष्ण भक्ति की। उसने कहा कि मुझे गीत गोविंद की आदत पड़ गई है। इसे गाये बिना चैन नहीं पड़ता है। ऐसे में एकांत मिलना मुश्किल है। तब ब्राह्मण ने कहा- आप भगवान के लिए एक छोटा बिछौना अपने साथ रखा करें। जब गीत गोविंद गाने का मन हो उसे सामने बिछा लें। घोड़े पर हों तो जीन के आगे बिछा लें। मन में यह भावना रखें कि भगवान वहां बैठकर सुन रहे हैं। मुगल ने यह मान लिया। वह ऐसा करने लगे। एक दिन उन्हें अचानक कहीं जाने का आदेश मिला। बिछौना छूट गया। घोड़े पर सवार वह रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद ही आदत के अनुरूप गीत गोविंद गाने लगे। मुगल सरदार भाव-विभोर होकर गीत गोविंद गा रहे थे। तभी अचानक घुंघरुओं की आवाज सुनाई पड़ी। ध्यान दिया तो आवाज घोड़े के पीछे से आ रही थी।

श्रीकृष्ण ने दिया दर्शन, अभिभूत मुगल ने नौकरी छोड़ी

सरदार को पहले तो वहम लगा। फिर घोड़े से उतर कर पीछे गए तो सामने अति मनोहर श्रीकृष्ण को खड़े देखा। उन्होंने सरदार से पूछा कि इतना सुंदर गायन बीच में क्यों रोक दिया? श्याम सुंदर को सामने देख मुगल सरदार भाव-विह्वल रह गए। मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी। थोड़ी देर बाद खुद को संयत कर पूछा कि दुनिया के मालिक होकर आप मेरे घोड़े के पीछे क्यों दौड़ रहे थे। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे मधुर गीत सुनकर दौड़ नहीं, नाचता आ रहा था। तुम आज आसन देना भूल गए पर मैं गीत गोविंद पर नाचना नहीं भूल सकता हूं। सरदार को बड़ी ग्लानि हुई। ऐसा मुगल जिसने कृष्ण भक्ति की। उन्होंने अगले ही दिन नौकरी छोड़ दी। फिर पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में डूब गए। वही मुगल बाद में मीर माधव के नाम से विख्यात हुए।

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