खुद ही करें व्रत और त्योहार की तिथियों की गणना

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मात्र संयोग नहीं किसी से मिलना, इसके पीछे होते हैं कारण
मात्र संयोग नहीं किसी से मिलना, इसके पीछे होते हैं कारण।

Calculate the fast and festival dates on your : खुद ही करें व्रत और त्योहार की तिथियों की गणना। हाल के वर्षों में इसे लेकर लगातार भ्रम का माहौल रहा है। एक ही पर्व भिन्न इलाकों में अलग तिथि में लोग मनाते हैं। इसके साथ ही व्रत-उपवास के तरीके में भी मतांतर बढ़ रहा है। यह धर्म और व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है। पंडितों के खुद को श्रेष्ठ साबित करने की अंधी होड़ का यह कुपरिणाम है। मैं इस लेख में स्पष्ट करूंगा कि तिथियों की गणना का मूल आधार क्या है। इससे आप खुद ही अपने लिए सही तिथि का पता लगा सकते हैं।

तिथि गणना की संक्षिप्त विधि

तिथि निर्धारण में सूर्य व चंद्रमा को आधार माना जाता है। प्रचलित मान्यता सूर्योदय से गणना की है। जिस तिथि को सूर्योदय होगा, वही दिन भर मानी जाएगी। भले ही दिन में या शाम को तिथि बदल जाए। पर्व-त्योहार भी सूर्योदय के आधार पर उसी दिन मनाना चाहिए। इसके अपवाद हैं। रात्रिकालीन व्रत-त्योहार में चंद्रमा की गणना मानी जाती है। विद्वानों ने इसमें कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं। साधना करने वाले इसका ध्यान रखें। यदि व्रत कर रहे हों तो ध्यान दें कि सूर्योदय के बाद वह तिथि दोपहर तक रहे। अन्यथा उस तिथि को खंडा कहा जाता है। इसमें व्रत का आरंभ और पारण वर्जित है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि वह तिथि रही तो उसे श्रेष्ठ माना जाता है। उस समय गुरु व शुक्र अस्त न हुए हों तो वह उत्तम समय है। इसके आधार पर आप खुद ही करें व्रत व त्योहार के तिथि की गणना।

निश्चित व्रत समय में बाकी बातों का विचार जरूरी नहीं

किसी व्रत के लिए कोई समय निश्चित है। उस समय वह तिथि भी है तो बाकी बातों का विचार नहीं करें। अर्थात ऐसे में तिथि के क्षय या वृद्धि पर ध्यान देना जरूरी नहीं है। जन्म, मत्यु व व्रत के पारण के दौरान तात्कालिक तिथि ही ग्राह्य है। कुछ मौके पर विशेष निर्णय की व्यवस्था है। वह भी अब अपनी प्रासंगिकता खो रहा है। स्नान, ध्यान एवं जप के लिए अभीष्ट तिथि में सूर्य के उदय या अस्त से भी काम चल सकता है। इसमें ज्यादा गणना के फेर में पड़ऩे की जरूरत नहीं है। शास्त्र में एक और विधान है। पूर्वाह्न का समय देवों का, मध्याह्न मनुष्यों का, अपराह्न पितरों व शाम राक्षसों का होता है। संबंधित समय में यदि इच्छित तिथि हो तो कर्म में संकोच नहीं करें। इस तरह आप खुद ही करें व्रत व त्योहार के तिथि की गणना।

व्रत व उपवास करने वाले को पात्र होना जरूरी

शास्त्रों में व्रत करने वालों की पात्रता स्पष्ट है। जो व्यक्ति वर्णाश्रम के आचार-विचार में रत है। इसका मतलब जातिवादी व्यवस्था नहीं, अपने कर्मों को ईमानदारी से करता है। निष्कपट, निर्लोभ व प्राणियों का हित चाहने वाला है। वह व्रत करने का अधिकारी है। यह भी स्पष्ट करना प्रासंगिक होगा कि व्रत व उपवास एक नहीं हैं। कई लोग इनमें अंतर नहीं कर पाते। उनके क्रियारूप में अंतर है। व्रत के दौरान सात्विक भोजन किया जा सकता है। उपवास में निराहार रहना पड़ता है। दोनों में ही व्यक्ति को हर तरह की हिंसा का त्याग करना चाहिए। मन को शांत व सात्विक विचारों से परिपूर्ण रखना जरूरी है। दोनों तन और मन को पवित्र करते हैं। इससे पुण्य संचय में मदद मिलती है। हालांकि व्रत और उपवास कई तरह के होते हैं। उसके बारे में फिर कभी लिखूंगा। यह भी पढ़ें- शुक्र, शनि, राहु और केतु हो जाएंगे अनुकूल

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