शक्ति की पूजा करने वाले होते हैं खास
धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन रूप है शक्ति की पूजा। प्राचीन काल में सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के ज्यादातर हिस्सों में स्त्री शक्ति की पूजा की जाती थी। वहां देवियां होती थीं जिनकी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती थी। कालांतर में देवी पूजा का मतलब मूर्तिपूजा माना जाने लगा। उस समय भी जो लोग देवी पूजा करते थे, उन्हें कुछ हद तक तंत्र-मंत्र का जानकार माना जाता था। चूंकि वे तंत्र-मंत्र जानते थे, इसलिए विशिष्ट क्षमता रखते थे। अत: स्वाभाविक है कि आम लोग उनके तरीके समझ नहीं पाते थे। विदेशों में इस विधा पर काम नहीं हो सका और वहां यह महाज्ञान लगभग लुप्त हो गया। भारत के लोग इस मामले में भाग्यशाली हैं। यहां उन संस्कृतियों और ज्ञान की समझ रखने वाले हमेशा से रहे हैं और उन्होंने उस ज्ञान को बचाए रखा है। हालांकि इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हो सकी है, उल्टे कुछ क्षरण ही हुआ है। बावजूद इसके आंशिक रूप से ही सही ज्ञान बचा रहा है।
अधकचरे ज्ञान वाले पहुंचा रहे नुकसान
अस्तित्व में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे आम आदमी नहीं समझ सकता। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। लोग कई चीजों को पूरी तरह से समझे बिना भी उसके लाभ उठा सकते हैं, जो हर किसी चीज के लिए हमेशा से सच रहा है। जैसे हममें से अधिकतर लोग मोटर साइकिल या कार के इंजन और तकनीकी बारीकियां नहीं जानते लेकिन उसका लाभ उठाते हैं, उसी तरह तंत्र-मंत्र में भी बिना विशेषज्ञता के लोग लाभ उठाते रहे हैं। इसका दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह भी है कि जो सही मायने में इस क्षेत्र के जानकार हैं, वह गोपनीयता बरतते हैं। उनका मानना है कि गलत हाथों में जाने पर यह विद्या अनर्थकारी हो जाती है, अत: इसे सिर्फ सुपात्र को दिया जाए। सुपात्र की तलाश में कई मर्मज्ञ इस ज्ञान को अपने में समेटे ही काल के गाल में समा गए। दूसरी ओर अधकचरे ज्ञान वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है और वह खुद को विशेषज्ञ बता कर लोगों को आधी-अधूरी जानकारी देकर तथा इसका दुरुपयोग कर इस मार्ग को ही बदनाम कर रहे हैं।
मानव व प्रकृति विज्ञान आधारित है तंत्र
वास्तव में तंत्र शास्त्र पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है। ध्वनि और प्राकृतिक शक्तियों का सटीक उपयोग इसका आधार है। इसका मूल सिद्धांत है मनुष्य व प्रकृति में छिपी शक्ति की खोज कर उसे जागृत करना और व्यक्तिगत, सामाजिक और मानव मात्र के उत्थान के लिए उसे सशक्त बनाना। अपने अंदर की शक्तियों को जगाकर हम खुद भी मनोकामना को पूर्ण करने वाले शक्तिपुंज का सृजन कर सकते हैं। यह उतनी ही सटीक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है जितना माता द्वारा बच्चे को जन्म देना। तंत्रशास्त्र और स्त्री शक्ति की उपासना की पद्धति के पास लोगों को देने के लिए बहुत कुछ है, जिन्हें सामान्य तार्किक दिमाग समझ नहीं पाने के कारण खारिज कर देता है। तंत्रशास्त्र वास्तव में मानव और प्रकृति विज्ञान पर आधारित है। आज के भौतिक युग में लोग चिकित्सा विज्ञान समेत विज्ञान के अन्य आविष्कारों के माध्यम से भौतिक सुख-सुविधाओं पर तो पर्याप्त ध्यान देते हैं लेकिन उनका अंतर्मन खोखला होता जाता है। परिणामस्वरूप अवसाद, एकाकीपन, मानसिक विकृति समेत ढेर सारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं। यही कारण है कि भौतिक रूप में चरम पर पहुंचे पश्चिमी देशों से भी वैज्ञानिक, दार्शनिक, कलाकार आदि लोग शांति की तलाश में भारत और आध्यात्म की ओर रुख करने लगे हैं। यहां आकर उन्हें लक्ष्य की प्राप्ति भी होती है।
तंत्र को अधकचरे तांत्रिकों ने बदनाम किया
पहले तंत्र शास्त्र को समाज में सहर्ष स्वीकार भी किया जाता था। लेकिन बाद में अधकचरे तांत्रिकों के क्रियाकलाप ने बदनाम किया तो तर्कवादियों के कुतर्क ने आम लोगों के मन में संदेह पैदा कर उनके लिए ज्ञान का बड़ा मार्ग बंद कर दिया है। बहुत से ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिन्हें हम सामान्य बुद्धि से नहीं समझते मगर उसका फायदा उठाते हैं। हम बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं। वह हमारी बीमारी के आधार पर हमें दवा देता है, हमें पता नहीं होता कि छोटी सी सफेद गोली या लाल रंग का सिरप किस तरह हमको स्वस्थ कर सकते हैं मगर जब वह उसे खाने या पीने के लिए कहता है तो हम विश्वास कर ले लेते हैं। जबकि वह जहर भी हो सकती है। इसके बावजूद हम उसे विश्वासपूर्वक निगल जाते हैं और उसका फायदा भी होता है, लेकिन यह भी सच है कि हर बार डॉक्टर की दवा फायदा नहीं करती। सभी डॉक्टर हर मरीज को ठीक नहीं कर पाता। कई बार तो मरीज की जान पर बन जाती है। मगर वह बहुत से लोगों पर असर करती है। इसलिए जब वह गोली निगलने के लिए कहता है, तो हम उसे निगल लेते हैं। ऐसा ही काम धर्म या तंत्र का कोई जानकार कहता है तो कई लोग संगठित तरीके से उसका मखौल उड़ाने लगते हैं, उसे फर्जी करार देने लगते हैं। ऐसे लोगों ने देवी पूजा और तंत्रशास्त्र के साथ मनुष्यों के कल्याण की राह में बड़ी बाधा खड़ी कर दी है। सच तो यह है कि हर चीज तर्क पर नहीं कसी जाती, उसे महसूस करके स्वीकार किया जाना चाहिए। हालांकि तंत्र के साथ यह समस्या नहीं है लेकिन उसका परीक्षण करने की क्षमता फिलहाल विज्ञान के पास भी नहीं है।
हम भी कर सकते हैं शक्ति का निर्माण
दुनिया में हर कहीं पूजा का सबसे बुनियादी रूप देवी पूजा या कहें स्त्री शक्ति की पूजा ही रही है। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है जिसने अब भी उसे संभाल कर रखा है। हालांकि हम शिव की चर्चा ज्यादा करते हैं, मगर हर गांव में एक देवी मंदिर जरूर होता है। और यही एक संस्कृति है जहां आपको अपनी देवी बनाने की आजादी दी गई थी। इसलिए आप स्थानीय एवं अपनी जरूरतों के मुताबिक अपनी देवी बना सकते थे। प्राण-प्रतिष्ठा का विज्ञान इतना व्यापक था, कि यह मान लिया जाता था कि हर गांव में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा होगा जो ऐसी चीजें करना जानता हो और वह उस स्थान के लिए जरूरी ऊर्जा उत्पन्न करेगा। फिर लोग उसका अनुभव कर सकते हैं। कृत्या का प्रयोग तो आज भी आम है। पुराणों का अवलोकन करें तो पाएंगे कि माता गायत्री और महाविद्या मातंगी जैसी महाशक्ति की उत्पत्ति/ खोज में क्रमश: विश्वामित्र और मतंग ऋषि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। फिर हम आज वैसा क्यों नहीं कर सकते हैं?