श्री कृष्ण की लीला, सेवा को दिया सर्वाधिक महत्व

119
श्री कृष्णा की लीला
श्री कृष्णा की लीला

magic of Shree Krishna : किसी गाँव में लक्ष्मण नामक एक सीधा-साधा किसान रहता था। अपना खर्च चलाने जितना खेतों से कमा लेता था। दिन भर लगन से खेतों में मेहनत करता और शाम को प्रभु का नाम जपता। लंबे समय से उसके मन में एक ही इच्छा थी। वह उडुपि में स्थित भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना चाहता था। उडुपि दक्षिण कन्नड़ जिले का प्रमुख तीर्थ है। प्रतिवर्ष उसके गाँव से जब तीर्थयात्री वहां जाते तो लक्ष्मण का भी बहुत मन करता। पैसों की तंगी के कारण अपना मन मसोस के रह जाता। इस विश्वास के साथ की एक दिन वो भी जरूर जाएगा।

मन में लगी थी उडुपि जाने की लगन

इसी तरह दिन, महीने, साल बीत गए। लक्ष्मण ने किसी तरह पैसे जमा कर लिए। इस साल उडुपी जाने वाले यात्रियों में वो भी था। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने खाने-पीने का सामान बाँध दिया। यातायात का अभाव था। तीर्थयात्री पैदल ही जाया करते। चलते हुए लक्ष्मण की भेंट एक बूढ़े व्यक्ति से हुई। फटे-पुराने कपड़े और पांव में जूते तक न थे। अन्य तीर्थयात्री उससे छुपते-छिपाते निकल गए। किंतु उसकी हालत देख कर लक्ष्मण से न रहा गया। उसने बूढ़े से पूछा – ‘बाबा, क्या आप भी उडुपि जा रहे हैं?’ बूढ़े की आंखों में आंसू आ गए। उसने रुंधे स्वर में उत्तर दिया – ‘मैं भला तीर्थ कैसे कर सकता हूँ? एक बच्चा बीमार है। दूसरे बेटे ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया।’

यह भी पढ़ें- वास्तु और ग्रहों के संतुलन से एक-दूसरे की कमी दूर करें

तीर्थयात्रा के धन जरूरतमंद को दिया

लक्ष्मण भला व्यक्ति था। उसका मन पसीज गया। उसने निश्चय किया कि वह उडुपि जाने से पहले बूढ़े के घर जाएगा। बूढ़े के घर पहुंचते ही लक्ष्मण ने सबको भोजन कराया। बीमार बच्चे को दवा दी। बूढ़े के खेत, बीजों के अभाव में खाली पड़े थे। लौटते-लौटते लक्ष्मण ने उसे बीजों के लिए भी धन दिया। जब वह उडुपि जाने के लिए निकला तो पाया कि धन तो खत्म हो गया । वह चुपचाप घर लौट आया। उसके मन में तीर्थयात्रा न करने का कोई दुख न था बल्कि उसे खुशी थी कि उसने किसी का भला किया है। लक्ष्मण की पत्नी भी उसके इस कार्य से प्रसन्‍न थी।

भगवान ने कहा कि तुम सच्चे भक्त हो

रात को लक्ष्मण ने सपने में भगवान कृष्ण को देखा। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा – ‘हरिहर, तुम मेरे सच्चे भक्त हो। जो व्यक्ति मेरे ही बनाए मनुष्य से प्रेम नहीं करता, वह मेरा भक्त कदापि नहीं हो सकता। तुमने उस बूढ़े की सहायता की और रास्ते से ही लौट आए। उस बूढ़े व्यक्ति के भेष में मैं ही था। अनेक तीर्थयात्री मेरी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गए, एक तुमने ही मेरी विनती सुनी। मैं सदा तुम्हारे साथ रहूंगा। अपने स्वभाव से दया, करुणा और प्रेम का त्याग कभी मत करना।’ ऐसी है श्री कृष्ण की लीला। हरिहर को बिना गए ही तीर्थयात्रा का फल मिल गया।

यह भी पढ़ें- मां लक्ष्मी की उपासना करें, नहीं होगी धन की समस्या

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here