Warning: Invalid argument supplied for foreach() in /home/m2ajx4t2xkxg/public_html/wp-includes/script-loader.php on line 288 संघर्ष से तपता है इंसान - Parivartan Ki Awaj
हममें से अधिकतर लोग अपनी असफलता और समस्या के लिए परमात्मा को दोष देते हैं कि उन्होंने परिस्थितियों को हमारे अनुकूल नहीं बनाया। इस वजह से हमें उनसे ढेरों शिकायत रहती है। सच यह है कि यदि जीवन में चुनौतियां न हों तो वह नीरस हो जाती हैं। वही व्यक्ति महान और बड़ा बन पाता है जिसने प्रतिकूल स्थिति के बावजूद संघर्ष कर खुद को स्थापित करता है। परमात्मा को दोष देने वालों के लिए निम्न कहानी उपयोगी है, इसे पढ़ें और विचार करें।
एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाएं, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जायें! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी खऱाब हो जाती थी! उसे अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पाता था। एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा, देखिये प्रभु, आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेतीबाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है। आपसे प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मै चाहूं वैसा मौसम हो। फिर आप देखना मैं कैसे अन्न के भंडर भर दूंगा और सारे लोग सुखी हो जाएंगे! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं दूंगा।
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी चाहा तब पानी मिला! तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी। समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी! किसान ने मन ही मन सोचा- अब पता चलेगा परमात्मा को, कि फ़सल कैसे उगाई जाती है। बेकार ही इतने बरस हम किसानों को परेशान करते रहे। फ़सल काटने का समय भी आया तो किसान बड़े गर्व से फसल काटने गया। लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा, एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अंदर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अंदर से खाली थी।
किसान बड़ा दुखी हुआ। हताशा में उसने परमात्मा से कहा, प्रभु ये क्या हुआ? तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का जऱा सा भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उनको तपने दिया और ना आंधी ओलों से जूझने दिया। उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया। इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। भगवान ने कहा कि जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है और ओले गिरते हैं, तब पौधा अपने बल पर ही खड़ा रहता है। वह अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वही उसे शक्ति देती है, उर्जा देता है और उसकी जीवटता को उभारता है।
सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है और उसे अनमोल बनाती है!” उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है। उसके अंदर कोई गुण विकसित नहीं हो पाता है। चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं। अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियाँ स्वीकार करनी ही पड़ेंगी। अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे। अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा।