अनमोल है मानव जीवन, ईश्वर ने सर्वश्रेष्ठ बनाया

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अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक
अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक।

Human life is precious : अनमोल है मानव जीवन, ऐसा सभी महापुरुषों ने कहा है। भगवान ने अपने सारे गुण मानव को देकर उसे सर्वश्रेष्ठ बनाया है। जो इसे समझ लेता है, कमाल करता है। अधिकतर बड़े आविष्कारकों के जीवन को देखें। प्रारंभ में उन्होंने अत्यंत सामान्य और कभी-कभी तो बुरा जीवन जीया। फिर उन्होंने खुद को पहचाना। उसका उपयोग शुरू किया तो शीर्ष पर पहुंच गए। आध्यात्मिक क्षेत्र में देखें। महर्षि वाल्मीकि और परशुराम अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में जन्मे। इसके बाद खुद को न सिर्फ स्थापित किया, बल्कि भगवान के दर्जे को पा लिया। जरूरत है कि पहले खुद को पहचानें। अपनी क्षमता पर विश्वास करें। इसके बाद लगातार प्रयत्न करें। अधिकतर लोग असफलता या आलोचना से निराश हो जाते हैं। कोशिश करना ही छोड़ देते हैं। यही कारण है कि उन्हें सफलता नहीं मिल पाती। इसे स्पष्ट करने के लिए गुरुनानक जी का एक प्रसंग बहुत उपयोगी है।

गुरुनानक देव ने दिखाई राह

गुरुनानक जी के पास जीवन से निराश एक आदमी पहुंचा। उसे नहीं पता था कि अनमोल है मानव जीवन। उसने गुरु जी से पूछा, जीवन का मूल्य क्या है? गुरु जी ने इसका सीधा उत्तर नहीं दिया। उसे एक चमकीला पत्थर दिया। कहा कि जा अलग-अलग व्यवसाय करने वाले को दिखा। उनसे इसका मूल्य पूछ। ध्यान रखना कि इसे बेचना नहीं है। जब तू लौट कर आएगा, तभी मैं तेरे सवाल का जवाब दूंगा। आदमी पत्थर लेकर संतरे वाले के पास गया। उसे दिखाकर कीमत पूछी। संतरे वाला चमकीला पत्थर देख चमत्कृत हुआ। बोला, 12 संतरे ले जा और इसे मुझे दे दे। आदमी बोला कि गुरु जी ने बेचने से मना किया है। आगे उसे एक सब्जी वाला दिखा। उसने उसे पत्थर दिखा कर कीमत पूछी। सब्जी वाले ने कहा, एक बोरी आलू ले जा और इसे मेरे पास छोड़ जा। आदमी ने कहा, मुझे इसे बेचना नहीं है।

रत्न एक पर कीमत सबने अलग-अलग बताई

वह एक सुनार की दुकान पर पहुंचा। सुनार को पत्थर दिखाकर मूल्य पूछा। सुनार ने कहा कि 50 लाख में मुझे बेच दे। उसने मना किया तो सुनार बोला, दो करोड़ तक दे दूंगा। उसने कहा कि यह पत्थर गुरु जी का है। उन्होंने इसे बेचने से मना किया है। आगे वह एक जौहरी के पास पहुंचा। उसे वह पत्थर दिखाया। जौहरी ने उस बेशकीमती रूबी को देखा तो पहले उसने लाल कपड़ा बिछाया। उस पर रूबी के रखा। इसके बाद उसने उसकी परिक्रमा की और माथा टेका। फिर जौहरी बोला, कहां से लाया ये बेशकीमती रूबी। उस व्यक्ति ने जौहरी को सारी बात बताई और कीमत पूछी। जौहरी ने जवाब दिया, मैं अपनी सारी संपत्ति बेच दूं तो भी इसे खरीद नहीं सकता। मेरे लिए इसकी कीमत लगाना भी संभव नहीं है। ये तो बेशकीमती है।

खुद को पहचानने के प्रयास में लगे रहें

हैरान-परेशान आदमी सीधे गुरु के पास लौटा। पूरी आपबीती सुनाई। गुरुनानक बोले, तूने पहले इस पत्थर को संतरे वाले को दिखाया। उसने इसकी कीमत 12 संतरे की बताई। सब्जी वाले ने इसकी कीमत एक बोरी आलू लगाई। सुनार ने दो करोड़ कहा। जौहरी ने इसे बेशकीमती बताया। ठीक ऐसा ही मानव जीवन है। सामान्य मानव एक तरह से मानसिक अंधेरे में रहता है। खुद अपनी क्षमता का अंदाजा नहीं लगा पाता। जबकि हर मानव जीवन को अनमोल माना चाहिए। सबमें अलग-अलग विशिष्ट खूबी है। पहचान लिया तो महान बन जाएंगे। सामने वाला तो हमारा आकलन अपनी औकात, जानकारी, हैसियत और अपने मकसद से लगाता है। घबराएं नहीं, खुद को पहचानने की कोशिश करते रहें। तब दुनिया में आपको पहचानने वाले भी मिल जाएंगे।

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