रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार उचित

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रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार उचित
रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार उचित।

Learn from Ramayana that how to behave properly : रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। रामायण को महान धर्मग्रंथ माना जाता है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान के आदर्श आचरण की भरमार है। इस आधार पर रामायण को आदर्श जीवनशैली का ज्ञान देने वाला ग्रंथ भी कह सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसमें अलग-अलग तरह के लोगों से बातचीत और व्यवहार करने की अलग-अलग विधि की जानकारी दी गई है। संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसे बड़े सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। अधिकतर संदेश भगवान राम के मुंह से अलग-अलग समय में निकले हैं। इनमें अधिकतर बातें उन्होंने लक्ष्मण को कही हैं। आइए इन पर बारी-बारी से नजर डालते हैं।

कुटिल से प्रेम व कंजूस से दान की बात नहीं करें

रामचरित मानस का साफ संदेश है कि कुटिल से प्रेम की बात या आशा नहीं करनी चाहिए। वे प्रेम के लायक नहीं होते हैं। उन्हें हमेशा दूसरे को कष्ट में देखकर आनंद मिलता है। वे स्वभाव से कपटी होते हैं। अपने छोटे से फायदे के लिए भी दूसरे को संकट में डाल देते हैं। तुलसीदास जी ने ऐसे व्यक्ति के लिए कहा है कि वे प्रेम के हकदार नहीं होते हैं। उन्होंने कंजूस से दान की अपेक्षा नहीं करने की भी बात कही है। सुझाव दिया है कि कंजूस से इसके लिए कहें भी नहीं। वह किसी भी स्थिति में दान नहीं कर सकता है। उससे इसके लिए बात करना समय की बर्बादी है। यह बात श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कही।

मूर्ख और जड़ बुद्धि वाले से प्रार्थना अनुचित

रामायण से सीखें कि मूर्ख व जड़ बुद्धि वाले से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। इसे रामचरित मानस में बड़े अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया गया है। प्रसंग लंका जाने के क्रम में भगवान राम का सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचने का है। श्रीराम तीन दिन तक समुद्र की प्रार्थना कर मार्ग मिलने का इंतजार करते रहे। लेकिन समुद्र ने उनकी प्रार्थना पर मार्ग देना तो दूर कोई उत्तर तक नहीं दिया। तब भगवान क्रोधित हो गए। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।

सन सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।

अर्थात- लक्ष्मण मेरे धनुष-बाण लेकर आओ। मैं अग्नि बाण से समुद्र को सुखा डालूंगा। मूर्ख विनय और कुटिल प्रेम को नहीं समझता है। कंजूस से दान की अपेक्षा सही नहीं है। उन्होंने कहा कि मूर्ख और कुटिल से डराकर ही काम लेना चाहिए। वे यही भाषा समझते हैं।

मोह में फंसे व अति लोभी से ज्ञान व वैराग्य की बात नहीं

श्रीराम ने कहा-

ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।

अर्थात- भगवान कहते हैं कि ममता में फंसे हुए लोगों से ज्ञान की बातें नहीं करें। क्योंकि मोहग्रस्त व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। उसका चित्त ममता में फंसकर सिर्फ प्रिय के ध्यान में उलझा रहता है। अन्य बातें उसे समझ ही नहीं आती है। यही स्थिति अति लोभी के साथ होता है। उसके चित्त में निजी हित और धन ही रहता है। वह उसे ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य मानता है। उससे अलग वह कुछ सोच ही नहीं सकता है। ऐसे में उससे वैराग्य की बात करना बेकार है। यह समय और श्रम दोनों को बेकार करना होगा। तुलसीदास जी के रामायण से सीखें कि किन लोगों के कैसा व्यवहार करना चाहिए।

कामी से भगवान और क्रोधी से शांति की अपेक्षा व्यर्थ

श्रीराम ने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा कि कामी के मन में विषय-वासना गहरे तक भरा रहता है। वासना पूर्ति के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं सूझता है। वह उसी में रत रहकर स्वयं को आनंदित महसूस करता है। जिनसे उसके रक्त संबंध होते हैं, उन संबंधों की मर्यादा का भी उसे ध्यान रहता है। ऐसे लोगों से भगवान की बात भी नहीं करनी चाहिए। यही हालत क्रोधी की होती है। क्रोधी व्यक्ति से शांति की बात करना समय और श्रम को बेकार करना है। क्रोध के आवेश में उसे अच्छे-बुरे का भेद समझ नहीं आता है। चाहे कितना भी प्रयास कर लें, उसे उस समय शांत करना अत्यंत कठिन होता है। अतः उस समय उससे शांति की अपेक्षा भी नहीं करें। इसका प्रयास करना बंजर भूमि में बीज बोने के समान व्यर्थ जाएगा। इसलिए रामचरित मानस में भगवान ने कहा-

क्रोधहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएं फल जथा। 

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