मनुष्य का जीवन अनमोल है, व्यर्थ नहीं गंवाएं

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प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए करें ये उपाय
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Human life is precious, don’t waste it : मनुष्य का जीवन अनमोल है, व्यर्थ नहीं गंवाएं। अधिकतर लोग अपने जीवन का मोल स्वयं ही नहीं समझते हैं। वे इसे बेकार गंवा देते हैं। सफलता-असफलता, सम्मान-अपमान से किसी का महत्व कम नहीं होता है। वह कम मात्र तभी होता है जब व्यक्ति अपनी ही नजरों में गिर जाए। यदि वह स्वयं को कम आंकेगा तो दूसरे उसे छोटा समझेंगे ही। सच एकदम अलग है। कोई भी परिस्थिति किसी भी मनुष्य को बदल नहीं सकती है। वह क्षमतावान बना रहता है। जब वह स्वयं को कम आंकने लगता है, तब उसका महत्व कम होता है। क्योंकि तभी वह निष्क्रियता की ओर कदम बढ़ता है। इस बारे में एक बहुत सुंदर प्रसंग है। एक मैनेजमेंट गुरु ने इसे साझा किया है। उन्होंने नोट के माध्यम से इसे सरल तरीके से समझाया है। पढ़ें और स्वयं समझें कि मनुष्य का जीवन अनमोल है।

गुरु ने पूछा- कौन 500 के नोट लेना चाहता है

एक नामी कंपनी के कर्मचारी हाल में एकत्र थे। उन्हें एक मैनेजमेंट गुरु उन्हें संबोधित कर रहे थे। गुरु के हाथ में 500 रुपये का नया नोट था। उन्होंने उसे लहराना शुरू किया। फिर पूछा कि इस नोट को कौन लेना चाहता है? हाल में उपस्थित सभी के हाथ ऊपर उठ गए। उसने कहा कि मैं किसी एक को इसे दूंगा। पहले मुझे इसके साथ कुछ करने दें। उन्होंने नोट को मोड़ना शुरू किया। पूरी तरह मोड़ने के बाद पूछा कि अब कौन लेना चाहेगा? फिर लोगों के हाथ ऊपर उठने लगे। उसने कहा कि मोड़ने का बाद भी इसका महत्व यथावत बना हुआ है। जरा ठहरें, यह कहकर उसने नोट को नीचे गिरा दिया। फिर पैर से कुचलने लगा। अब नोट एकदम गंदा और मुड़ा-तुड़ा हो गया था। उसने उसे उठाया और सभी को दिखाया। फिर पूछा कि अब इस नोट को कौन-कौन इसे लेना चाहेगा?

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गंदे नोट लेने के लिए भी उठने लगे हाथ

मुड़े-तुड़े गंदे नोट को लेने के लिए भी हाथ उठने लगे। उसने फिर कहना शुरू किया। मित्रों, क्या आपने कुछ ध्यान दिया? नोट पहले बिल्कुल नया था। तब सभी उसे लेने के लिए इच्छुक थे। मैंने उसे मोड़ दिया। तब भी लेने वाले की रुचि कम नहीं हुई। फिर मैंने जमीन पर गिरा दिया। पैर से कुचल दिया। उसके बाद भी नोट की मांग बनी रही। सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों हुआ? लोगों ने उत्तर दिया कि क्योंकि नोट की कीमत यथावत थी। उसके महत्व में कोई अंतर नहीं आया। गुरु ने कहा कि सही कहा आपने। आप आपने बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ सीखा है। मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया। फिर भी सभी इसे लेना चाहते थे। क्योंकि इतना सब होने के बाद भी उसका मूल्य पहले की तरह 500 ही था। ऐसा ही मनुष्य के जीवन में होता है। मनुष्य का जीवन अनमोल है।

असफलता या अपमान से कम नहीं होता महत्व

उन्होंने अपनी बात स्पष्ट करनी शुरू की। कहा कि कई बार गलत निर्णय से हम असफल हो जाते हैं। हमारी स्थिति कमजोर हो जाती है। कई बार दूसरे हमारा अपमान कर देते हैं। हमें नीचा दिखाते हैं। लगता है कि हमारी छवि और स्थिति कमजोर हो गई। अब हमारी कोई कीमत नहीं है। वस्तुतः यह भ्रम है। तब हम मुड़े-तुड़े और गंदे नोट की तरह दिखते हैं। स्वयं को या दूसरे हमें उस तरह से देखते हैं। लेकिन उससे हमारा महत्व कम नहीं होता है। हमारी काम करने की क्षमता घटती नहीं है। मनुष्य में अद्भुत क्षमता और संभावना है। वह कभी भी किसी लक्ष्य को पा सकता है। आवश्यकता निराशा के दलदल से निकलने की है। उत्साह से निरंतर परिश्रम कर लक्ष्य पाना संभव है। किसी स्थिति में निराशा को स्वयं पर हावी न होने दें। अपने सपनों को मरने नहीं दें। सबसे मूल्यवान है हमारा जीवन।

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