महाशिवरात्रि विशेष : महाशिवरात्रि की कथाएं और पूजन व जप के शुभ मुहूर्त

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इस वर्ष अर्थात सन 2019 में 4 मार्च को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष इस पर्व का महत्व इस वजह से और बढ़ गया है कि महाशिवरात्रि सोमवार को ही है। इस दिन भक्तजन मंदिरों में देवादिदेव महादेव की पूजा अर्चना करेंगे। इस दौरान शिवलिंग पर बेल पत्र, भांग, धतूरा चढ़ाएंगे। इस दौरान कई भक्त दिनभर उपवास रखेंगे और भोलेनाथ के मंत्र का जप कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करेंगे।


कुंभ में अंतिम शाही स्नान

महाशिवरात्रि के दिन प्रयागराज में चल रहे कुंभ में भी आखिरी शाही स्नान होगा और इसी के साथ कुंभ मेले का समापन हो जाएगा।


पूजन व जप के लिए शुभ मुहूर्त

4 मार्च की शाम 04:28 से 5 मार्च की सुबह 07:07 बजे तक।


ऐसे करें पूजन

चतुर्दशी तिथि को रात के चारों प्रहर में भगवान शंकर की पूजा 108 नाम मंत्रों से करें। रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करना भी शुभ है। बेलपत्र, भांग-धतूरा, आक शिव जी को चढ़ाएं। दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गन्ने का रस, जड़ी-बूटियों के रस से भगवान का अभिषेक करें। इस वर्ष शनि का धनु राशि पर भ्रमण एवं शुक्र का उच्च राशि पर भ्रमण होने के साथ ही सोमवार को शिव रात्रि है। 


शिवरात्रि का पूजन क्यों

इस त्योहार के बारे में एक कथा भी प्रचलित है, कहा जाता है कि भोले शंकर से एक बार मां पार्वती ने पूछा था कि ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? जिसके उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का उपाय बताया था। इसलिए इस दिन व्रत रखने का बड़ा मान है। शिवरात्रि का व्रत परम फलदायी माना जाता है कि शिवरात्रि का व्रत परम फलदायी होता है, वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना वैसे ज्योतिष विद्या में भी इस दिन का काफी महत्व है। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण में आ चुके होते हैं जो कि काफी शुभ लक्षण माना जाता है। शिव का अर्थ है ‘कल्याण’ अर्थात शिव ही सबका कल्याण करने वाले हैं, अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है और इंंसान को मोक्ष मिलता है।


शिवरात्रि पर प्रचलित कथा

मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।  हिंदू पुराणों में महाशिवरात्रि मनाने के कई कारण बताए गए हैं। एक प्रसंग के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जन्म हुआ था। हालांकि बड़ी संख्या में भक्त शिव को अजन्मा और अविनाशी मानते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव का लिंग रूप में प्राकट्य हुआ था। एक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान के रुद्र रूप का अवतरण हुआ था।  प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। हालांकि कई लोग इसे शिव विवाह से जोड़ते हैं। माना जाता है कि इस दिन भोलेनाथ का विवाह हिमालय पुत्री मां पार्वती से हुआ था इसलिए इस दिन रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है।


मंत्र सिद्धि का उत्तम योग

महाशिवरात्रि के दौरान किसी वैदिक या तांत्रिक मंत्र का जप शीघ्र फल देने वाला होता है। अतः यह उपयुक्त समय है कि किसी मंत्र का पहले से चयन कर दिन भर के लिए किसी जप का निर्धारित संख्या में जप कर लें। एक दिन वाले जप में साबर मंत्र सबसे उपयोगी होते हैं जो न सिर्फ शीघ्र सिद्ध होते हैं, बल्कि उसी दिन से उनका प्रयोग भी किया जा सकता है। हालांकि पहले से सिद्ध या उपयोग में आ रहे  वैदिक और तांत्रिक मंत्र का भी जप कर उन्हें जागृत कर सकते हैं। दिन भर का ही मंत्र जप साधक की दूरगामी साधना में भी उपयोगी साबित होगा। निर्धारित संख्या में जप के बाद उसके दसवें हिस्से की जप संख्या से हवन कर लें।



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