Most effective diety is sun gives immediate results: सबसे प्रत्यक्ष देवता सूर्य शीघ्र देते हैं फल। उनकी महिमा का बखान धर्मग्रंथों से लेकर वैज्ञानिकों तक ने किया है। पहले वैदिक युग की बात। वेद में भगवान सूर्य की खूब महिमा का बखान है। वे उस समय के प्रमुख देवता माने जाते थे। उन्हें ऊर्जा का स्रोत और जगत की आत्मा कहा गया है। वे ही संसार के धारक और पालक हैं। पुराणों में भी सूर्य का महात्म्य दिखता है। त्रेता और द्वापर युग भी सूर्य देव को महत्वपूर्ण माना गया है। ज्योतिष शास्त्र बिना सूर्य के अधूरा है। उन्हें ग्रहों का स्वामी कहा जाता है। कलियुग की बात करें तो वैज्ञानिक भी उन्हें ऊर्जा का मुख्य स्रोत मानते हैं। डाक्टर कोरोना से निपटने के लिए सूर्य की सीधी रोशनी में रोज बैठने की सलाह देते हैं। योग शास्त्र में भी सूर्य का बहुत अधिक महत्व है।
भगवान सूर्य का महात्म्य
विभिन्न समस्याओं में सूर्य को अर्घ्य देने का सुझाव दिया जाता है। यह कारगर भी होता है। सूर्य अनुकूल हों तो व्यक्ति की प्रतिष्ठा बहुत अधिक होती है। वह यशस्वी बनता है। इसलिए सूर्य की उपासना हर व्यक्ति को करनी चाहिए। सूर्य उपासक के यश और प्रभाव को देखना हो तो महाभारत काल के कर्ण को देखें। पापियों के साथ रहने के बाद भी उनकी प्रतिष्ठा आज भी बरकरार है। त्रेता युग में भगवान राम ने उनकी उपासना की थी। रावण को मार पाने में विफल रहने पर अगस्त्य ऋषि ने उन्हें यह उपाय बताया था। उसके बाद उन्होंने आदित्य हृदय स्तोत्र के माध्यम से भगवान सूर्य को प्रसन्न किया और विजयश्री प्राप्त की।
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जानें कैसे होती है सूर्य की उपासना
सबसे प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल चढ़ाना अत्यंत कल्याणकारी होता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे अत्यंत प्रभावी माना जाता है। महापर्व छठ तो इन्हें ही समर्पित है। संतान, स्वास्थ्य सहित सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भगवान सूर्य करते हैं। इनके भक्तों की संख्या करोड़ों में है। छठ के अवसर पर उनकी भक्ति को सहज ही देखा जा सकता है। श्रद्धालु पांच दिन के महा पर्व को कठिन प्रक्रिया से गुजरते हुए मनाते हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, सूर्य के मंत्र का जप, रविवार का व्रत आदि भी इन्हें प्रसन्न करने का प्रमुख माध्यम है। सूर्य नमस्कार, सूर्य त्राटक आदि से भी शीघ्र फल मिलता है। अच्छा स्वास्थ्य और यश चाहने वाले को इनकी उपासना को दिनचर्या में ही शामिल करना चाहिए। पाठ, मंत्र जप और व्रत की विधि भी प्रचलित हैं। इस बार उस पर अधिक चर्चा नहीं कर रहा हूं।
सबसे महत्वपूर्ण है जल अर्पित करना
सूर्य देव को जल अर्पित करना उनकी उपासना की सबसे प्रभावी और प्रचलित तरीका है। उन्हें जल चढ़ाने वाले में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो इसकी विधि ही नहीं जानते हैं। यही कारण है कि उन्हें अपेक्षित फल भी नहीं मिलता है। पूरे विधि-विधान से जल चढ़ाने पर निश्चय ही फायदा मिलता है। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। अतः उन्हें नियमित जल अर्पित करने से आत्मा शुद्ध होता है। इससे मनोबल बढ़ता है और मन व शरीर निरोग और ऊर्जावान होता है। रोजगार में आने वाली समस्याओं को भी भगवान भास्कर दूर करते हैं। छठ पर्व को देखें तो सूर्य के और विराट रूप का दर्शन होता है। वे संतान, स्वास्थ्य समेत हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। जाने भगवान भास्कर को जल अर्पित करने के बारे में संक्षिप्त पर आवश्यक जानकारी।
इस तरह चढ़ाएं सूर्य देव को जल
सूर्य को जल चढ़ाना हर तरह से कल्याणकारी होता है। सबसे प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल चढ़ाने में विधि भी शामिल हो तो महत्व और बढ़ जाता है। पढ़ें जल चढ़ाने की विधि। सूर्योदय के समय जल चढ़ाना सबसे अच्छा होता है। तांबे के पात्र में दोनों हाथों को सिर से ऊपर कर जल अर्पित करें। इस दौरान सूर्य सामने हों तो सर्वश्रेष्ठ है। इससे उनकी किरणें उन्हें अर्पित जल से छन कर आप पर पड़ती है। कई बार मौसम की खराबी या शहरी इलाकों में मकानों की बनावट से ऐसा संभव नहीं होता है तो चिंता न करें। ऐसे में मानसिक रूप से सूर्य देव का स्मरण कर जल अर्पित करें। यदि जल में रक्त चंदन और लाल फूल भी डालें तो और अच्छा रहेगा। जल चढ़ाते समय सूर्य मंत्र का जप अवश्य करते रहें। ध्यान रखें कि उन्हें चढ़ाया जल पैरों में न लगे।
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