प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों

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प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों
प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों।

Onion and garlic are like nectar, then why abstain from fasting : प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों? कथा के अनुसार इसकी उत्पत्ति भी अमृत से हुई है। यह अन्य शाक-सब्जियों की तरह ही भूमि से निकलती है। इसमें रोगनाशक क्षमता के साथ ही आरोग्य बढ़ाने वाले गुण भी हैं। यहां तक कि आयुर्वेद में भी इसके गुण को स्वीकार किया गया है। इसके बाद भी इसे राक्षस भोजन कहने का कारण क्या है? कुछ तर्कवादी इसे पोंगा पंथ से जोड़ते हैं। अतः आइए इस रहस्य को जानें। यह भी समझें कि इसे शाकाहार में क्यों वर्जित किया गया है।

तामसिक और राजसिक गुणों को बढ़ाने वाला

आयुर्वेद के अनुसार प्याज और लहसुन में कई जीवनदायक तत्व है। साथ ही यह तामसिक और राजसिक गुणों से युक्त है। इसलिए लोगों को इसके सेवन से बचने की सलाह दी गई है। मान्यता है कि इससे उत्तेजना बढ़ती है। विशेष रूप से यौन उत्तेजना बढ़ाने वाला माना जाता है। हालांकि इसके अर्क का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने इसके गुणों को अधिक स्वीकार किया है। उसके अनुसार दोनों में एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी आक्सीडेंट जैसे गुण हैं। इस कारण से यह वायरल और फ्लू से बचाने में प्रभावी है। दिल के लिए उपयोगी है। मधुमेह के रोगियों को भी फायदा होता है। इसके नियमित सेवन से इम्यूनिटी मजबूत होती है। स्वाद के मामले में भी यह गुणों से भरपूर है। यही कारण है कि यह भारत ही नहीं कई देशों के भोजन का हिस्सा बन गया है।

गुणों से भरपूर होने के बाद भी इससे दूरी क्यों

प्याज और लहसुन अमृत समान हैं। फिर भी इससे दूरी कई लोगों की समझ में नहीं आता है। उन्हें बता दूं कि इसका मुख्य कारण इसमें तामसिक और राजसिक गुणों का होना है। स्वाद के कारण अब प्याज और लहसुन का उपयोग आम हो चला है। बावजूद इसके व्रत, त्योहार एवं अन्य शुभ कार्यों में इससे बचा जाता है। इसका मुख्य कारण इसके गुणों में ही निहित है। ये दोनों भारी और उत्तेजना बढ़ाने वाले माने जाते हैं। इनके सेवन से मुंह से अलग तरह की गंध निकलती है। शुभ कार्य के दौरान व्यक्ति से पूर्ण सात्विक रहने की अपेक्षा रहती है। निराहार रहना सर्वोत्तम माना जाता है। कुछ लोग विकल्प में फलाहार भी कर लेते हैं। कम और सुपाच्य भोजन तक की स्वीकृति होती है। भारी भोजन से नींद आने लगती है। इससे पूजा-पाठ, साधना में विघ्न आता है। इसलिए इससे परहेज किया जाता है।

कथा के अनुसार अमृत व राक्षस के बूंद से हुई उत्पत्ति

कथा के अनुसार मोहिनी रूप धरे विष्णु देवताओं को अमृत बांट रहे थे। तभी राक्षसों में से राहु वेष बदल कर उस पंक्ति में शामिल हो गया। भगवान विष्णु उसे पहचान नहीं पाए। उसे भी अमृत दे दिया। तभी सूर्य और चंद्रमा ने पहचान कर शोर मचा दिया। तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया। तब तक राहु ने अमृत पी लिया था। अतः मरा नहीं लेकिन सिर और धड़ अलग-अलग हो गया। उस दौरान अमृत की कुछ बूंदें उसके गले में थी, रक्त के साथ पृथ्वी पर गिर पड़ीं। उन्हीं बूंदों से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई। अमृत होने के कारण उसमें जीवनदायी शक्ति है। राक्षस के रक्त का समावेश होने से उससे शरीर मजबूत होता है। साथ ही उत्तेजना, क्रोध और पाप बढ़ाने वाला है। इसलिए प्याज और लहसुन अमृत समान होने के बाद भी देव कार्य में वर्जित है।

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