इन मंत्रों से करें दुर्गा उपासना

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प्रकृति की मूल शक्ति की उपासना का पर्व

चैत्र नवरात्र के दौरान मां भगवती की विशेष पूजा का समय फिर शुरू हो गया है। इसके साथ ही एक बार फिर उनके स्वरूप, महिमा एवं मंत्रों पर चर्चा प्रासंगिक होगी। यूं तो आदि महाशक्ति की उपासना हर समय कल्याणकारी होती है लेकिन नवरात्र के दौरान उसका विशेष महत्व होता है। आदिमहाशक्ति ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में जानी जाती हैं। वही इस ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति यही हैं। क्योंकि भगवान विष्णु में सात्विक, ब्रह्मा में राजसी और शिव में तामसी शक्ति के रूप में विद्यमान रहने वाली यह आद्याशक्ति है। इनके प्रभाव और महत्व का वर्णन करना मनुष्य तो क्या देवताओं के भी सामर्थ्य के बाहर है।


मां भगवती की पूजा के तीन विधान हैं – 1-सात्विकी  2-राजसी और  3-तामसी। इन तीनों में सात्विक पूजा का विशेष महत्व है। गृहस्थ जन को सात्विक पूजा ही करनी चाहिए। इसीलिए तो गृहस्थों के लिए मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती में कुछ विशेष याचना और इच्छा रूपी फल की प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र के अनुष्ठान की बात कही गई हैं। जिसका जप और हवन नियमानुसार करने से उसकी प्राप्ति हो जाती है। नीचे उनमें से कुछ प्रमुख मंत्रों को दिया जा रहा है। उपासक इनमें से किसी का सुविधा और आवश्यकतानुसार अनुसार अनुष्ठान कर मनोवांछित फल की प्राप्ति कर सकता है। यदि अनुष्ठान को ज्यादा मजबूत और प्रभावी बनाना हो तो मंत्र के पहले और बाद में ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै लगा के जप व और तदनुसार दसवें हिस्से का हवन करें। यदि चाहें तो खुद भी दुर्गा सप्तशती से अन्य इच्छित मंत्र का चयन का अनुष्ठान कर सकते हैं।


1-आदिशक्ति की माता के रूप में कृपा हासिल करने के लिए——-या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

2-बाधा दूर करने तथा दुश्मन के प्रकोप को समाप्त करने के लिए—– सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यम स्मद्वैरि विनाशनम्।।

3-विपत्ति नाश के लिए—–शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते।।

4-बाधा मुक्ति एवं धन, धान्य एवं संतान के कल्याण के लिए—-सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

5-लक्ष्मी प्राप्ति के लिए——या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

6-रोग व शोक नाश के लिए——रोगान शेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नाराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

7-भय नाश के लिए—-ज्वालाकराल मत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्मद्रकालि नमोऽस्तु ते।।

8-सामूहिक कल्याण के लिए—–देव्या यथा ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शोवदेवगणशक्ति समूहमूर्त्र्या। तामम्बिकांखिलदेवमहर्षि पूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि स न:।।

9-पाप नाश के लिए—-हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्ण या जगत। सा घंटा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव।।

10-विवाह में बाधा दूर कर सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए—-पत्नी मनोरमां देहि मनोवृतानुसारिणीम्। तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भाम।।

11-आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति के लिए—-देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

12-शक्ति प्राप्ति के लिए—-सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तुते।।

13-दारिद्र व दु:ख निवारण के लिए—-दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरयणाय सदाऽऽर्द्रचिता।।

14-सभी तरह के कल्याण के लिए—सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।



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