भारतीय धर्म-संस्कृति में यह वाक्य काफी चर्चित है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। यही सच भी है कि किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती है। वह चीज चाहे धन हो या सबसे कीमती माना जाने वाला जीवन, अति होने पर बोझ ही साबित होता है। बहुत ज्यादा धन भी कई तरह की समस्याओं को जन्म देता है। इसी तरह लोग अमरत्व की इच्छा करतेे हैं लेकिन यदि अंतहीन जीवन मिल जाए तो फिर मौत मांगते नजर आएंगे।
संतुुुुलन मेें ही जीवन का आनंंद हैैै। जो इस मर्म को समझ गया, उसे आत्मसात कर लिया, वह प्रकृति के रहस्य का ज्ञाता हो जाता है। वही ऋषि है, वही ज्ञानी है और वही सुख-दुख से ऊपर है। समस्या यही है कि लोग बातों में तो इसे स्वीकार कर भी लेते हैं, लेकिन आत्मसात नहीं कर पाते और जीवन भर उलझे से भटकते रहते हैं।
उपरोक्त सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाली सिकंदर की एक कथा काफी प्रचलित है। कथा कितनी सच और प्रमाणिक है, उस पर विवाद हो सकता है लेकिन उस विवाद को छोड़ दें तो यह आंखें खोलने वाली अवश्य है। इसमें जीवन के उस अति गंभीर रहस्य को अत्यंत सरल तरीके से समझाया गया है कि अति से बचना चाहिए। इसे आमजन के लिए उपयोगी जानकर आप सभी से साझा कर रहा हूं।
कथा के अनुसार सिकंदर अमरत्व की तलाश में ही विश्व विजय के लिए निकला था। उसे बताया गया था कि पृथ्वी पर ऐसा जल मौजूद है जिसे पीने से इंसान अमर हो जाता है। उसे उसके बारे में जगह की भी थोड़ी-बहुत जानकारी दी गई थी। अत: विश्वविजय के क्रम में भी सिकंदर उस जल की तलाश में था, जिसे पीने से अमर हो जाते हैं। दुनिया भर को जीतने के जो उसने आयोजन किए, वह अमृत की तलाश के लिए ही थे। काफी दिनों तक देश दुनिया में भटकने के पश्चात आखिरकार सिकंदर ने वह जगह पा ही ली, जहां उसे अमृत की प्राप्ति होती। वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहां अमृत का झरना था। वह आनंदित हो गया।
जन्म-जन्म की आकांक्षा पूरी होने का क्षण आ गया। उसके सामने ही अमृत जल कल-कल करके बह रहा था। वह अंजलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि तभी एक कौआ जो उस गुफा के भीतर बैठा था, जोर से बोला, ‘ठहर, रुक जा, यह भूल मत करना।’सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। बड़ी दुर्गति की अवस्था में था वह कौआ। पंख झड़ गए थे, पंजे गिर गए थे, अंधा भी हो गया था, बस कंकाल मात्र था।
सिकंदर ने कहा, ‘तू रोकने वाला कौन/’कौवे ने जवाब दिया, ‘मेरी कहानी सुन ले। मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गई थी। मैंने यह अमृत पी लिया। अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूं। देख मेरी हालत। अंधा हो गया हूं , पंख झड़ गए हैं, उड़ नहीं सकता। पैर गल गए हैं। एक बार मेरी ओर देख ले फिर मर्जी हो तो अमृत पी ले।
देख अब मैं चिल्ला रहा हूं, चीख रहा हूं कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता। अब प्रार्थना कर रहा हूं परमात्मा से कि प्रभु मुझे मार डालो। एक ही आकांक्षा है कि किसी तरह मर जाऊं। इसलिए सोच ले एक दफा, फिर जो मर्जी हो सो करना।Ó कहते हैं कि सिकंदर सोचता रहा। फिर चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया, बगैर अमृत पिए।
सिकदंर समझ चुका था कि जीवन का आनंद उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उस आनंद को भोगने की स्थिति में होते हैं। उसने काफी हद तक जीवन के असली रहस्य को जान लिया था।