सकारात्मक सोच बढ़ने का मतलब सब कुछ आपके हाथ में
यदि आपकी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता ज्यादा है तो फिर दुनिया आपकी मु_ी में होगी। सब कुछ वैसे ही आपके अनुकूल होगा, जैसा आप चाहेंगे। इसलिए सबसे जरूरी है कि आपकी सोच में सकारात्मकता का पुट बढ़े। दैनिक जीवन में आपको कई बार नकारात्मक स्थिति और लोगों से पाला पड़ता है लेकिन उनसे प्रभावित हुए बिना आप अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखें। प्रयास करें कि नकारात्मक स्थितियों व लोगों से बच कर निकल जाएं। याद रखें कि जैसे ही आपके जीवन में और सोच में सकारात्मकता का कांटा 51 फीसद झुका सब अनुकूल हो जाएगा। सुबह उठते समय हमारे हाथ में पूरे दिन का तराजू होता है। सकारात्मकता की ओर झुकाने से पूरा दिन अच्छा और दूसरी ओर झुकाने पर बुरा बीतता है। कालांतर में यही हमारा भविष्य बनता है। प्रति दिन सुबह सकारात्मक चीजों (स्वास्थ्य, जीवन, परिवार, नौकरी आदि) के लिए प्रेम व कृतज्ञता दें और बेहतर दिन की कल्पना करें। अर्थात हर काम से पहले प्रेम की शक्ति को आगे भेजें।
सृजन करें : याद रखें कि हम जिसकी भी कल्पना कर सकते हैं, वह ब्रह्मांड में पहले से मौजूद है। अतः हम जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं, जरूरत है उस पर प्रेम देते हुए ध्यान केंद्रीत कर उसे पा लेने, उसके साथ रहने के अहसास की कल्पना करने की। यह भावना (प्रेम) तार्किकता से परे होनी चाहिए। इसके लिए कोई चीज बड़ी नहीं है। बड़े घेरे में बिंदु वाले चित्र का प्रयोग करें। यानि बड़ें घेरे को ब्रह्मांड मानकर बिंदु को अपना लक्ष्य माने और सोचें कि वह बिंदु उस ब्रह्मांड के सामने कुछ भी नहीं है और ब्रह्मांड आपको अपनी पूरी ताकत से वह बिंदु दे रही है। इसके लिए ब्रह्मांड को यह मानकर वह वस्तु/लक्ष्य आपको हासिल हो गया है, धन्यवाद भी दें।
इसके लिए इंद्रियों का उपयोग करते हुए मनचाही चीज के साथ रहने के हर दृश्य और स्थिति की कल्पना व अहसास करें और यह महसूस करें कि वह हमारे पास आ चुकी है। इसके लिए नाटक भी करें कि मनचाही चीज हमारे पास है। उसके लिए छोटे-मोटे सामान जुटाएं और उससे खुद को घेरें। जैसे छरहरा शरीर चाहते हैं तो वह होने की कल्पना करें और वस्त्र आदि जुटाएं। हर दिन सात मिनट तक ऐसा करें, जब तक कि मनचाही चीज हमें हासिल न हो जाए। हमेशा प्राप्त प्रिय वस्तु या जिसे हम प्राप्त करना चाहते हैं, उसे प्राप्त मानकर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते रहें औक धन्यवाद दें, चाहे वह वस्तु कितनी भी छोटी क्यों न हो।
–सृजन उसे साकार करने की कल्पना मात्र है जो पहले से है। ——श्रीमद् भागवतम्
सिर्फ अच्छे को चुनें
जीवन हमारे सामने हर पल अच्छे व बुरे का विकल्प पेश करता है और वह हमारी सोच व अहसास का अनुसरण करता है। यह हम पर निर्भर है कि हम किसका चुनाव करते हैं और किसे प्रेम देते हैं। अपनी इस भावना को समझने के लिए सबसे आसान तरीका है कि हम ध्यान दें कि उसे देखकर हम कैसा महसूस कर रहे हैं। यदि अच्छा व खुशी महसूस कर रहे हैं, मतलब हम उसे प्रेम दे रहे हैं। यदि दुख व ईर्ष्या महसूस कर रहे हैं तो नकारात्मकता दे रहे हैं। दूसरों को मिली मनचाही खुशी पर वैसे ही खुश व रोमांचित हों जैसे वह आपको मिली हो। संतान चाहते हैं तो बच्चों से प्रेम करें। कार व मकान चाहिए तो उसे प्रेम दें व आकर्षण महसूस करें। आकर्षण का नियम का एक ही सूत्र है। हां कहना सिर्फ हां।
—-बुरा मत देखो—बुरा मत सुनो—बुरा मत कहो।—- महात्मा गांधी
—-हमारी शंकाएं ही गद्दार हैं। उसकी वजह से हम उस अच्छी चीज से वंचित रह जाते हैं जिसे हासिल कर सकते हैं। ——–विलियम शेक्सपियर
असंभव की कल्पना करने वालों ने ही सीमाएं तोड़ीं
इतिहास गवाह है कि असंभव की कल्पना करने वालों ने ही इतिहास रचा व मानवीय सीमाएं तोड़ीं। आशंकित लोग खुद अपने दुश्मन बन जाते हैं। प्रेम की शक्ति के लिए कुछ भी कल्पना करने योग्य को पाना बाएं हाथ का खेल है। अत: मनचाही चीज को पाने के लिए प्रेम की शक्ति का बड़ा घेरा बनाकर इच्छित वस्तु को बिंदु के रूप में दर्ज कर रोज देखें। वस्तुत: उसे पाना भी उतना ही आसान है।
खुद को कभी कमतर न आंकें
अगर कोई कहता है कि आप दूसरों से कमतर हैं, किसी मायने में सीमित हैं, अपना प्रिय काम नहीं कर सकते या उससे आजीविका नहीं कमा सकते, आप अभी पर्याप्त अच्छे नहीं हैं या आप पुराने महानतम लोगों जैसे नहीं हैं तो उनकी बात न सुनें। यदि आपसे कोई गलती हो गई तो उसका अहसास करने व उसे मान लेने भर से आकर्षण का नियम उसे क्षमा कर देता है।
मनचाही चीजों को भरपूर प्रेम दें
मनचाही चीज, घटना, व्यक्ति आदि को समर्पित प्रेमी की तरह भरपूर प्रेम दें। अर्थात उसमें सिर्फ और सिर्फ अच्छाई देखकर अभिभूत हों। जहां जाएं प्रिय चीज (पेड़, फूल, सुगंध, प्रकृति के रंग, व्यक्ति, वस्तु आदि) की तलाश करें और उसे भरपूर प्रेम दें। केवल उसे ही देखें, उसे ही सुनें और उसी की बात करें। हमेशा खुद से सवाल करें कि मैं आसपास ऐसा क्या और कितनी चीजें देख सकता हूं, जो मुझे प्रिय हैं। आसपास पर सतर्क व स्पष्ट नजर रखें और उनमें प्रिय चीज खोजकर उसे प्रेम दें। इससे मन सतर्क व स्पष्ट होगा तथा प्रिय चीजों के प्रति जोश बढ़ेगा।
–मन की स्पष्टता का अर्थ जोश की स्पष्टता है। इसलिए महान और स्पष्ट मन जोश के साथ प्रेम करता है और अपनी प्रिय चीजों को साफ देखता है। –ब्लेज पास्कल (गणितज्ञ और दार्शनिक)
कृतज्ञता का प्रयोग करें
प्रेम की शक्ति को कृतज्ञता कई गुना कर देती है। सभी मसीहाओं ने कृतज्ञता का प्रयोग किया। ईसा मसीह हर चमत्कार से पूर्व धन्यवाद कहते थे। जब भी जीवन में कोई अच्छी चीज हो (चाहे कितनी भी छोटी हो) धन्यवाद अवश्य कहें। ट्रैफिक लाइट हरी मिल जाए, अच्छे गाने सुनाई पड़े या कुछ अन्य अच्छा हो। हर वस्तु, व्यक्ति, घटना, शरीर, इंद्रियों के लिए धन्यवाद कहने पर वह लौटकर आता है। इसे आजमाने के लिए अपने प्रिय व्यक्ति को बैठाकर या उसकी अनुपस्थिति में भी उसे सामने मानकर उसके हर गुण को याद करते हुए कृतज्ञता व्यक्त कर उसे कहें, जिसके लिए उसे प्रेम करते हैं। जैसे खास घटनाओं व पलों को याद कर कह सकते हैं कि आपको याद है जब…… ऐसा कहते-कहते महसूस करें कि कृतज्ञता की भावना आपके शरीर और हृदय में भर रही है।
-मैं हर दिन सैकड़ों बार खुद को याद दिलाता हूं कि मेरा जीवन जीवित व मृत लोगों की मेहनत पर निर्भर है। मुझे जिस अनुपात में मिला उसी अनुपात में देने के लिए मेहनत करनी चाहिए।—अलबर्ट आइंसटीइन
कृतज्ञता देने के नियम
(अ)-जीवन में हमें जो भी मिला है, हर उस वस्तु व व्यक्ति के लिए कृतज्ञ रहें। (अतीत)
(ब)-जीवन में हमें जो मिल रहा है, हर उस वस्तु व व्यक्ति के लिए कृतज्ञ रहें। (वर्तमान)
(स)-जीवन में हम जो चाहते हैं, उसके लिए ऐसे कृतज्ञ हों, जैसे वह मिल चुका है। (भविष्य)
-आपको जो प्रचुरता मिली है, उसे कायम रखने के लिए कृतज्ञता सबसे अच्छी गारंटी है।—-मुहम्मद साहब
बच्चों की तरह नाटक करें
किसी भी चीज को बेहतर महसूस करने के लिए बच्चों की तरह नाटक कर खेलें और उसमें डूब जाएं। आकर्षण के नियम को पता नहीं है कि यह आपकी कल्पना है या वास्तविकता, इसलिए आप जो खेल खेलते हैं, वही वास्तविक बन जाएगा।
-छोटे बच्चों को देखकर प्रेम का नियम सबसे अच्छी तरह समझा और सीखा जा सकता है। ——महात्मा गांधी
-तर्क आपको ए से बी तक ही ले जाएगा लेकिन कल्पना आपको हर जगह ले जाएगी।——–अलबर्ट आइंस्टीन
–विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ संभव है।———ईसा मसीह
हम जैसा सोचते हैं, मिलता है
धन व पैसे को लेकर जैसी हमारी भावना होती है, वैसी ही हमारी स्थिति होती है। यदि पैसे जरूरत से कम हैं तो मतलब धन के प्रति नकारात्मक भावना ज्यादा है। यदि पैसे जरूरत भर या ज्यादा हैं तो सकारात्मक भाव ज्यादा है। कहने को ज्यादातर लोग कहेंगे कि उन्हें धन से प्रेम है और वह अमीर होना चाहते हैं लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी नहीं होती। हम बचपान से सुनते हैं कि- हमारे पास जरूरत से कम पैसे हैं पर हम अच्छे हैं, अधिक पैसे वाले बेइमान होते हैं, पैसा बुरा है, ज्यादा पैसे मतलब आध्यात्म से दूर होना आदि बातें बचपन से हमारे मन में भरी जाती हैं। परिणामस्वरूप हम उसके प्रति नकारात्मक भाव बना लेते हैं। यही कारण है कि किसी को लॉटरी में या किसी अन्य कारण से ढेर सारे पैसे मिलते हैं तो कुछ सालों बाद ही सारे पैसे खत्म हो जाते हैं और वह पहले से भी ज्यादा कर्ज में दब जाता है।
कैसे बदले अहसास
(अ)-कोई भी बिल चुकाते समय अच्छा महसूस करें। सोचें कि आप सुविधा का चेक दे रहे हैं। सुविधा के प्रति कृतज्ञता महसूस करें। धन्यवाद दें। इसी तरह किसी भी खर्च के लिए पैसे देते समय दुखी न हों बल्कि खुश हों।
(ब)-वेतन या धन हाथ में आने पर खुश हों। सोचें कि वह बड़ी व सुविधापूर्ण रकम है। धन्यवाद दें। यह न सोचें कि इतनी रकम से महीना कैसे चलेगा। मुनाफे या वेतन के बराबर अपने कार्य में योगदान दें और उसे करते हुए अच्छा (खुशी) महसूस करें तो शानदार सफलता मिलेगी।
(स)-नोट व क्रेडिट कार्ड के एक खास हिस्से को धन की प्रचुरता का प्रतीक मानकर हमेशा उसे ही सामने की तरफ उलट-पुलट कर रखें और उसे देखकर प्रचुर धन होने का अहसास करें।
(द)-किसी जरूरतमंद को धन देते समय खुशी का अनुभव करें और सोचें कि इस से उसे कितनी मदद मिलेगी, उसे कितना आनंद आएगा। यही सोच धन की प्रचुरता का कारण बनता है।
–यह महत्वपूर्ण नहीं कि हम कितना देते हैं, महत्वपूर्ण यह है कि कितने प्रेम से देते हैं।—–मदर टेरेसा
अच्छी कल्पना करें
जिन मनचाही चीजों से प्रेम करते हैं, कल्पना करें कि वह हमारे पास है। हम उसके मालिक हैं। पैसे तो प्रिय चीजों को उपलब्ध कराने का माध्यम है। उन चीजों को अपना महसूस करने से उसके प्रति प्रेम और बढ़ेगा। यह भी कल्पना करें कि मेरे पास बहुत सारे पैसे आ गए और उससे सारी प्रिय चीजों को खरीदकर कृतज्ञता और प्रेम देंगे तो प्रेम और बढ़ेगा।
-सफलता खुशी की कुंजी नहीं, खुशी सफलता की कुंजी है।–अल्बर्ट श्वेट्जर (नोबल पुरस्कार विजेता)
दूसरों को हमेशा प्रेम दें
संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति के प्रति हम कोई न कोई भाव देते हैं। जो देते हैं, वही मिलता है। प्रेम देंगे तो हमें प्रेम मिलेगा, चाहे वह कितना ही मामूली क्यों न हो। दयालुता, प्रोत्साहन, सहयोग, कृतज्ञता या अन्य अच्छी भावना से दूसरों को दिया प्रेम लौटकर हमारे पास आता है।
सभी में सकारात्मकता तलाशें
हर व्यक्ति व वस्तु में नकारात्मकता के बदले सकारात्मकता व प्रिय की तलाश की प्रवृत्ति व्यक्ति में खुद व उसके संपर्क में आने वाले के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन लाता है।
दूसरे को बदलने की कोशिश न करें
सामने वाले को बदलने (कथित रूप से सुधारने) की कोशिश, उसके लिए क्या अच्छा व बुरा है, यह तय करने की कोशिश, आलोचना, दोष मढऩा, शिकायत करना आदि प्रेम नहीं है। व्यक्ति जैसा है, अच्छा और प्रिय है का सिद्धांत ही प्रेम का आधार है।
-घृणा को घृणा से नहीं, प्रेम से जीता जाता है, यह शाश्वत नियम है।——–गौतम बुद्ध
विरोधी को प्रशिक्षक मानें
हमें जीवन में अक्सर कड़े आलोचक, कठिन स्थिति में लाने वाले विरोधी जैसे मिलते हैं। दरअसल ये लोग हमारे व्यक्तित्व के भावनात्मक प्रशिक्षक हैं, जो प्रेम के लिए चुनौतियां पेश कर हमें प्रशिक्षित कर सिर्फ प्रेम के विकल्प का चुनाव करना सिखाते हैं।
दूसरों में हमेशा प्रिय चीज तलाशें
हमेशा सकारात्मक रहने के लिए दूसरों में प्रिय चीजों की तलाश कर हम मनचाही चीज को अपने से चिपका सकते हैं। नकारात्मक बातें सुनते या बोलते समय हमारी भावनाएं अच्छी बनीं रहे ऐसा संभव नहीं है। अत: इन स्थितियों से बचें। जहां नकारात्मक स्थिति या चर्चा हो, वहां से कट कर निकल जाएं या अपना ध्यान बदल कर अपनी फ्रीक्वेन्सी बदल लें।
हमारे सामने हमेशा विकल्प रहता है
प्रकृति हमारे सामने हमेशा विकल्प के रूप में कई स्थितियां व चीजें प्रस्तुत करती हैं। हम उस पर अपनी प्रतिक्रिया देकर उसका चुनाव करते हैं। किसी की खुशी, तरक्की, धन, मकान देखकर उस पर खुद होने की तरह महसूस कर आनंदित होकर हम प्रेम देते हैं तो वह चुंबक की तरह हमसे चिपकता है। इसी तरह आलोचना, निंदा व ईर्ष्या भी हमसे चिपकती है।
-बुरे विचार के साथ बोलने वाले का दुख पीछा करता है। जो अच्छे विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो खुशी छाया की तरह पीछे-पीछे आती है।——-गौतम बुद्ध
प्रेम व अच्छी भावना से मजबूती मिलती है
प्रेम, अच्छी भावना या जबर्दस्त अनुभव देने से हमारी चुंबकीय क्षेत्र उतना अधिक मजबूत होता जाता है और हम प्रिय चीजों को उतना अधिक आकर्षित करते हैं। मजबूत चुंबकीय क्षेत्र वाला व्यक्ति को दूसरे की नकारात्मकता भी नहीं भेद पाती है।
-कीचड़ वाले पानी को यदि शांत रखा जाए, तो यह साफ हो जाता है।—–लाओ त्सू
शक्ति और स्वास्थ्य
(अ)-शरीर का अंदरुनी हिस्सा सौर तंत्र और ब्रह्मांड का सटीक नक्शा है। हृदय तंत्र का केंद्र व सूर्य है तथा अंग ग्रह हैं। यही कोशिकाओं की मदद से शरीर को नियंत्रित व संचालित करते हैं और वे पूरी तरह से हमारी भावना के निर्देश को तार्किकता से परे मानते हैं। हम अपनी धारणाओं व भावनाओं से शरीर को जो देते हैं, शरीर वैसा ही बनता है। हम उसके मालिक हैं। खुद को बूढ़ा मानने पर बुढ़ापे के लक्षण, कमजोर मानने पर कमजोरी महसूस होने लगती है।
(ब)-हम आमतौर पर स्वास्थ्य को लेकर आशंकित रहते हैं और सोचते हैं कि हाजमा कमजोर है, वजन कम करना मुश्किल है आदि। दरअसल इन धारणाओं के माध्यम से हम फैसला कर चुके होते हैं। हमारा शरीर तो सिर्फ उसका पालन करता है। खुद को युवा व फिट महसूस करते हुए हमेशा हर अंग को आदर्श स्थिति में रखने का भाव रखेंगे तो रोग हमें छू भी नहीं सकेगा।
(स)-पानी पर सकारात्मकता का असर वैज्ञानिकों ने साबित किया है। जब शरीर में 70 फीसद पानी है तो उस पर इसका असर समझा जा सकता है। सकारात्मकता, कृतज्ञता, अच्छे स्वास्थ्य व बेहतर शरीर के लिए धन्यवाद के भाव का शरीर पर चमत्कारिक असर पड़ता है। अत: शरीर की नापसंद चीजों को नजरअंदाज कर प्रिय चीजों के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए।
–कोई चीज खाने-पीने से पहले उसके प्रति प्रेम व कृतज्ञता महसूस करना चाहिए। उस दौरान सकारात्मक बातें करें। इलाज के दौरान दवा आदि के सेवन में भी यही करें।
–आपकी भावनाएं आपके शरीर की हर कोशिका पर असर डालती है। मानसिक और शारीरिक पहलू आपस में गुंथे हुए हैं।——थॉमस टटको (खेल मनोवैज्ञानिक व लेखक)
–एक मायने में मनुष्य ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप है। इसलिए मनुष्य से ही ब्रह्मांड का सुराग मिल सकता है।———डेविड बॉम (क्वांटम भौतिकशास्त्री)
हर चीज की अपनी फ्रीक्वेन्सी होती है
हर चीज की अपनी फ्रीक्वेन्सी होती है। आवाज, रंग, स्थान, व्यक्ति, वस्तु, जल, वायु, अग्नि, घटना, स्थिति, अमीरी, गरीबी आदि में से जो हमारे समक्ष आती है, या हम देखते हैं, उस समय हम उसी फ्रीक्वेन्सी पर होते हैं। खुशी व बुरा महसूस करने पर भी वैसा ही होता है।