मनुष्य स्वयं अपना दुश्मन बन जाता है। ईश्वर ने उसे अपार सुख, शांति और वास्तविक उत्थान का भरपूर अवसर प्रदान किया है लेकिन वह लोभ, मोह और अमित सुख के लिए खुद अपने आप को समस्याओं के भंवरलाल में उलझा लेता है। भौतिक सुख के लोभ में फंसा आदमी वास्तविक सुख की उपेक्षा करता है। इसे एक बोध कथा से अच्छी तरह से समझ सकता है। तो अब कथा को पढ़ें।
एक सज्जन घने जंगल में भागे-भागे जा रहे थे। शाम हो गयी थी। अंधेरे में उन्हें कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गये गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उनके हाथ में आ गयी। जब उन्होंने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उनकी तरफ ही देख रहे हैं।
उधर, जिस डाल को वो सज्जन पकड़े हुए थे, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक मदमस्त हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। पेड़ से लटके सज्जन घबरा गये और सोचने लगे कि हे भगवान अब क्या होगा? उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता भी लगा था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उनके होठों पर आ गिरी। उन्होंने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूंद में गजब की मिठास का अहसास हुआ। उस अहसास में डूब कर वह कुछ देर के लिए मौजूदा सारी समस्या को भूल गए।
कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उनके मुंह पर टपकी। अब वह इतना मगन हो गये कि अपनी मुश्किलों को ही भूल गये।
तभी उस जंगल से शिव एवं पार्वती अपने वाहन से गुजरे। पार्वती ने एक मनुष्य को इतनी कठिन स्थिति में देखा तो उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने भगवान शिव से उसे बचाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने माता पार्वती को समझने की कोशिश की कि वह मनुष्य इस समय लोभ और मोह के भंवरजाल में फंसा हुआ है। अत: अभी कोई मदद उसे समझ नहीं आएगी, लेकिन माता नहीं मानी। उनके लगातार अनुरोध पर भोलेनाथ उन सज्जन के पास पहुंचे और कहा – मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं, मेरा हाथ पकड़ लो।
उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं। फिर चलता हूं। एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर थक-हार कर शिवजी चले गये। और अंतत: शहद के साथ-साथ मधुमक्खियों ने भी उन सज्जन पर हमला बोल दिया…. और वो कुएं में गिर कर अजगरों का निवाला बन गये।
खुद को पहचानें। वो सज्जन जिस जंगल में जा रहा थे,
वो जंगल है… ये दुनिया। अंधेरा है…अज्ञान। पेड़ की डाली है…आयु। दिन-रात…दो चूहे उसे कुतर रहे हैं। घमंड…मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। शहद की बूंदे…सांसारिक सुख हैं, जिनके कारण हम मनुष्य खतरे को भी अनदेखा कर देते हैं। यानी..सुख की माया में खोए हमारे मन को भगवान भी नहीं बचा सकते…..।
एक सज्जन घने जंगल में भागे-भागे जा रहे थे। शाम हो गयी थी। अंधेरे में उन्हें कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गये गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उनके हाथ में आ गयी। जब उन्होंने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उनकी तरफ ही देख रहे हैं।
उधर, जिस डाल को वो सज्जन पकड़े हुए थे, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक मदमस्त हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। पेड़ से लटके सज्जन घबरा गये और सोचने लगे कि हे भगवान अब क्या होगा? उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता भी लगा था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उनके होठों पर आ गिरी। उन्होंने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूंद में गजब की मिठास का अहसास हुआ। उस अहसास में डूब कर वह कुछ देर के लिए मौजूदा सारी समस्या को भूल गए।
कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उनके मुंह पर टपकी। अब वह इतना मगन हो गये कि अपनी मुश्किलों को ही भूल गये।
तभी उस जंगल से शिव एवं पार्वती अपने वाहन से गुजरे। पार्वती ने एक मनुष्य को इतनी कठिन स्थिति में देखा तो उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने भगवान शिव से उसे बचाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने माता पार्वती को समझने की कोशिश की कि वह मनुष्य इस समय लोभ और मोह के भंवरजाल में फंसा हुआ है। अत: अभी कोई मदद उसे समझ नहीं आएगी, लेकिन माता नहीं मानी। उनके लगातार अनुरोध पर भोलेनाथ उन सज्जन के पास पहुंचे और कहा – मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं, मेरा हाथ पकड़ लो।
उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं। फिर चलता हूं। एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर थक-हार कर शिवजी चले गये। और अंतत: शहद के साथ-साथ मधुमक्खियों ने भी उन सज्जन पर हमला बोल दिया…. और वो कुएं में गिर कर अजगरों का निवाला बन गये।
खुद को पहचानें। वो सज्जन जिस जंगल में जा रहा थे,
वो जंगल है… ये दुनिया। अंधेरा है…अज्ञान। पेड़ की डाली है…आयु। दिन-रात…दो चूहे उसे कुतर रहे हैं। घमंड…मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। शहद की बूंदे…सांसारिक सुख हैं, जिनके कारण हम मनुष्य खतरे को भी अनदेखा कर देते हैं। यानी..सुख की माया में खोए हमारे मन को भगवान भी नहीं बचा सकते…..।