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प्रचलित कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने बहेलिये के तीर से घायल होकर देह त्याग किया था लेकिन सोमनाथ के पास उनके अपने लोक जाने के बारे में अन्य कथा प्रचलित है। उसके अनुसार भगवान पूर्व नियोजित तरीके से अपने दिव्य शरीर के साथ मेघमाला में विलीन हो गए। सोमनाथ में इस बारे में कई साक्ष्य भी मौजूद हैं। देखरेख के अभाव में उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि वहां कई महात्मा और साधक मौजूद हैं जो गुपचुप तरीके से साधना करते रहते हैं। सोमनाथ के पास स्थित साक्ष्य के आधार पर कही जा रही कथा के अनुसार लीला समाप्ति के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण के धरती को छोड़कर अपने लोक जाने का वक्त आया तो उनकी सोमनाथ में त्रिवेणी नदी के तट पर अपने बड़े भाई बलदेव से बड़ी भावुक वार्ता हुई। त्रिवेणी तट वह जगह है जहां, अरब सागर में समाहित होने से पहले तीन नदियां आपस मिलती हैं। यह हिरण्य, कपिला और सरस्वती का संगम है जिसे त्रिवेणी तीर्थ कहा जाता है। श्रीकृष्ण ने बलदेव से कहा, “इस युग की हमारी सारी लीलाएं खत्म हो चुकी हैं। भैया, अब इस लोक से जाने का वक्त आ गया है।” इसके बाद श्रीकृष्ण का शरीर दिव्य तेज में बदल गया जो विद्युत बनकर मेघमाला में विलीन हो गया। इस तरह उन्होंने धरती छोड़कर बैकुंठ धाम का सफर तय किया। इसके साथ ही बलदेव ने भी अपना असली रुप (शेषनाग का ) धारण किया और नदी के मार्ग से पाताल लोक के लिए प्रस्थान कर गए।
त्रिवेणी का तट और गोलोकधाम तीर्थ
सोमनाथ में त्रिवेणी तट पर तीन नदियों का संगम है। हिरण्या, कपिला और सरस्वती। यहां पर सुंदर घाट बनाए गए हैं। इसका पुनरोद्धार भारत के प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई के प्रयास से हुआ। हालांकि तट देखने में बहुत खूबसूरत नहीं लगता है। इसके और बेहतर रखरखाव की जरूरत महसूस होती है। तट पर साफ सफाई की कमी नजर आती है। इसके पास ही है गोलोकधाम तीर्थ जिसमें गीता मंदिर समेत कई मंदिर हैं। यहां आप लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्रीकृष्ण चरण पादुका मंदिर, श्री गोलोकघाट, काशी विश्वनाथ मंदिर, श्री महाप्रभु जी की बैठक, श्रीभीम नाथ मंदिर और श्री बलदेव जी की गुफा देख सकते हैं। गीता मंदिर में भगवान कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है। यहां पीपल वृक्ष के पास श्रीकृष्ण की चरण पादुका बनी है। यहां पर बलदेव की गुफा भी है। कहा जाता है कि यहीं से उन्होंने पाताल लोक के लिए प्रस्थान किया था।
हिंगलाज गुफा
त्रिवेणी तट पर ही बगल में हिंगलाज गुफा भी है। कहा जाता है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहां भी रहे। वैसे देश के तमाम हिस्सों के कई स्थलों को राम के वनवास या पांडवों के अज्ञात वास से जोड़ा जाता है।
शंकराचार्य जी का आश्रम
मंदिर के बगल में शारदापीठ है। ये शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है। इस आश्रम में एक संस्कृत विद्यालय का संचालन होता है। इस विद्यालय में देश भर से बच्चे संस्कृत और कर्मकांड पढऩे आते हैं पर शर्त है कि वे बच्चे सिर्फ ब्राह्मण कुल के ही होने चाहिए। इसी आश्रम में अध्ययन करने वाले एक कर्मकांड पाठी से मेरी मुलाकात होती है। वे इटावा उत्तर प्रदेश के रहने वाले वाले हैं। यहां पर वे पांच साल का पाठ्यक्रम कर रहे हैं। उम्र होगी कोई 14-15 साल। बता रहे हैं कि पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद गांव में जाकर मंदिर बनवाउंगा। मैंने कहा इससे क्या लाभ होगा। उन्होंने कहा, आपको पता नहीं है मंदिर बनते ही खूब सारा चढ़ावा रोज आएगा और मुझे जीवन भर बिना कमाए उस चढ़ावे कमाई से दाना पानी मिलता रहेगा। मैं उनकी बुद्धिमता के आगे नतमस्तक था।