तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर, होती है मनोकामना पूरी

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तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर, होती है मनोकामना पूरी
तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर, होती है मनोकामना पूरी।

Kamakhya temple is the centre of tantra : तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर है। यहां होती है हर मनोकामना पूरी। कामरूप-कामाख्या का नाम ही जादू नगरी का अहसास जगता है। जानकार तंत्र-मंत्र से जुड़े इस केंद्र के प्रति श्रद्धा से भरे रहते हैं। कहा जाता है कि तंत्र-मंत्र का ज्ञान वहां गए बिना पूरा नहीं हो सकता है। कामाख्या देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यहां मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर के रूप में स्थित योनि की पूजा होती है। इसलिए इसे शक्ति का बड़ा केंद्र कहा जाता है। श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में ही माता की सशरीर प्रतिमा है। श्रद्धालु प्रतीक रूप में उनकी भी पूजा करते हैं।

माता सती का अंग गिरा था यहां

महादेव सती के शरीर को लादे शोकाकुल होकर भटक रहे थे। तब भगवान विष्णु ने महादेव को उस स्थिति से निकालने के लिए चक्र से शरीर को खंडित कर दिया। इससे माता के शरीर के अंग 51 स्थानों पर गिरे। वे सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाए। वे सभी शक्ति के केंद्र है। तंत्र का केंद्र कामाख्या साधना, भक्ति एवं मनोकामना पूर्ति के लिए अमोघ हैं। उनमें भी कामाख्या का स्थान सर्वोपरि है। इस स्थान पर माता सती की योनि गिरी थी। यहां उनके इसी रूप की पूजा होती है। यहां आने वाले श्रद्धालु माता की शक्ति व जीवंतता महसूस करते हैं। मां का मौजूदा मंदिर वर्ष 1565 ई. का बना हुआ है। इसे कूच बिहार के महाराजा विश्व सिंह और उनके पुत्र नर नारायण सिंह ने बनवाया था। प्राचीन मंदिर को 1564 ई में बंगाल के कुख्यात काला पहाड़ ने तोड़ दिया था।

साधना का बड़ा अवसर अंबुवाची पर्व

कामाख्या मंदिर में साल भर तंत्र साधना कर जबरदस्त सफलता हासिल की जा सकती है। लेकिन दशहरा, दीपावली सहित विभिन्न पर्व-त्योहार साधना के लिए उपयुक्त समय होते हैं। अतः इन अवसरों पर सिद्धि की संभावना और बढ़ जाती है। इनमें अंबुवाची पर्व महान अवसर माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान माता रजस्वला होती हैं। मंदिर स्थित अंत:स्रावी कुंड रक्तिम हो जाता है। कहा जाता है कि पहले उसमें से खून निकलता था। अब भी वह रक्तिम हो जाता है। इस दौरान उसे लाल रंग के वस्त्र से ढक दिया जाता है। इस वस्त्र के टुकटे का बहुत महत्व है। इसे पास रखने पर ही जादू-टोने का असर नहीं होता है। भूत-प्रेत बाधा निवारण में यह अत्यंत उपयोगी है। पर्व के बाद श्रद्धालुओं को यह प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

मंदिर के कपाट बंद, बाहर होती है साधना

तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर के कपाट पर्व के दौरान तीन दिनों तक आम श्रद्धालु के लिए बंद रहते हैं। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो कपाट बंद होने के बाद भी साधना और मनोकामना पूर्ति के लिए सबसे प्रभावी माना जाता है। इस समय मंदिर परिसर में बड़ा मेला लगता है। चार दिवसीय मेले के दौरान हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं।​ इसे पूर्वी भारत का महाकुंभ कहा जाता है। उस समय तांत्रिक, साधक एवं सामान्य श्रद्धालुओं सहित दृश्य/अदृश्य रूप में रहने वाले साधक-महात्मा यहां आकर साधना करते हैं। इस दौरान वहां मंत्र जप करना भी अत्यंत प्रभावी होता है। कम समय मंत्र सिद्ध हो जाता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर का कपाट खुलते ही साधना का यह अवसर समाप्त हो जाता है।

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कन्या पूजन की अत्यंत प्रभावी परंपरा

यहां कन्या को देवी रूप में पूजा करने की अत्यंत प्रभावी परंपरा है। कन्या को प्रत्यक्ष देवी माना जाता है। विधिपूर्वक पूजा कर देवी रूप में प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद कन्या भोजन कराया जाता है। श्रद्धालु और साधक इस परंपरा के अनुसार कन्या पूजन कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। मेरा अनुभव है कि यह विधि अत्यंत प्रभावी और सफल है। माना जाता है कि यहां कन्या पूजन के माध्यम से पूजन का तत्काल फल प्राप्त होता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए इस विधि का प्रयोग करते हैं। मंदिर के पास ही शमशान घाट है। वहां तांत्रिक साधना के लिए आते रहते हैं।

मां कामाख्या के मंत्र

नीचे माता कामाख्या के मंत्र दिए जा रहे हैं। ये मंत्र जाग्रत एवं अत्यंत प्रभावी है। तंत्र का केंद्र कामाख्या मंदिर परिसर में उनका जप अत्यंत प्रभावी होता है। बाहर भी जप फल देने वाला है।
1-कामाख्ये वरदे देवी नील पर्वत वासिनी।
त्वं देवी जगतं माता योनि मुद्रे नमोस्तुते।।
2-ऊं ह्रीं आगच्छ आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा

ऐसे पहुंचें मंदिर

मां कामाख्या मंदिर कामाख्या स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर है। गुवाहाटी से एक स्टेशन पहले पड़ता है। गुवाहाटी (दिसपुर) देश के सभी प्रमुख शहरों से ट्रेन व विमान सेवा से जुड़ा है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूर छह किलोमीटर है। यह नील पर्वत पर स्थित है। मां का मंदिर कामाख्या रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। आवागमन में सुविधा के लिए बाहर के श्रद्धालुओं को गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पहुंचना चाहिए। वहां से मंदिर के लिए सीधी बस व टैक्सी दिन में लगातार चलती रहती है। स्टेशन के पास ही हर स्तर के होटल व लाज हैं। कुछ लोग मंदिर के पास ही रुकते हैं। वहां भी रुकने की व्यवस्था है लेकिन वह साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त है।

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