जानें कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला

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जानें कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला
जानें कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला

know when and who started the kumbh mela : जानें कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला। कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। हर हिंदू का सपना होता है कि इसमें कम से कम एक बार शामिल हो। आस्था का बड़ा केंद्र है। दुनिया भर से लोग इसे देखने आते हैं। इसमें इसके बारे में जानना महत्वपूर्ण है। इससे संबंधित कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। मैं उनमें से प्रमुख और अधिक मान्य की ही चर्चा करूंगा। वैसे आधुनिक इतिहास में इसके शुरू होने के बारे में जानकारी नहीं है। एक मत के अनुसार इसे शंकराचार्य ने शुरू करया था। दूसरे मत के अनुसार ईसा पूर्व 664 में राजा हर्षवर्द्धन ने इसे शुरू कराया था। प्रयाग में आमतौर पर जनवरी में शुरू होता है। यह हर 12 साल में लगता है। छह साल में अर्द्ध कुंभ लगता है। कुंभ का आयोजन 48 दिन का होता है।

माघ में सूर्य के मकर में प्रवेश के समय लोग त्रिवेणी में करते हैं स्नान

माघ माह में सूर्य मकर राशि पर जाते हैं। तब लोग तीर्थराज प्रयाग में जुटते हैं। इस समय त्रिवेणी में स्नान का विशेष महत्व है। कुंभ के बारे में प्रमुख कथा इस प्रकार है। एक बार इंद्र कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात महर्षि दुर्वासा से हुई। इंद्र ने उन्हें प्रणाम किया। दुर्वासाजी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी माला दी। इंद्र ने उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। उसने उसे सूंड से घसीट पैरों से कुचल डाला। दुर्वासाजी ने कुपित हुए। उन्होंने इंद्र को श्रीविहीन होने का शाप दिया। श्रीविहीन इंद्र ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए। भगवान ने कहा कि असुरों का आतंक है। तुम उनसे संधि कर लो। फिर देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर अमृत निकालें। जब अमृत निकलेगा तो मैं तुम लोगों को वह दे दूंगा। इससे देवता पुनः श्रीयुक्त हो जाएंगे।

समुद्र मंथन में निकला अमृत, देवता लेकर भागे

देवता और दानवों ने समुद्र का मंथन किया। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। इससे अमृत के साथ अप्सरा रंभा, कल्पवृक्ष, कामधेनु आदि निकलें। अमृत कलश के लिए असुरों और दैत्यों में संघर्ष हो गया। इंद्र के पुत्र जयंत देवताओं की सहायता से उसे लेकर भागे। यह देख दैत्यों ने उनका पीछा किया। यह पीछा बारह दिनों तक होता रहा। इस भागमभाग में देवताओं ने अमृत कलश को हरिद्वार, प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन नामक स्थानों पर रखा। इन चारों स्थानों में कलश से अमृत की कुछ बूंदे छलक पड़ीं। कलह को शांत करने के लिए देव-दानव में उसके बंटवारे का समझौता हुआ। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। वह अमृत बांटने लगे। उनके सौंदर्य ने दैत्यों को भरमाए रखा। भगवान ने अमृत को इस प्रकार बांटा कि दैत्यों का नंबर आने तक कलश खाली हो गया।

जहां अमृत छलका वे मोक्ष के मार्ग बने

जहां-जहां अमृत छलका वहां कुंभ शुरू हुआ। वे सभी स्थान मोक्ष के द्वार माने जाते हैं। सामान्य दिनों में भी इन स्थानों पर स्नान का विशेष महत्व है। माघ मास में प्रयाग में स्नान का अपार महत्व है। यदि कुंभ भी हो तो वर्णन ही कठिन है। कूर्म पुराण के अनुसार इससे सभी पाप नष्ट होते हैं। मनोवांछित उत्तम भोग प्राप्त होता है। साथ ही देवलोक भी प्राप्त होता है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और अग्निपुराण में भी इसके जबर्दस्त फल का विवरण है। इससे हर मनोकामना पूरी होने का भी जिक्र है। महाभारत में भी इसके असीम पुण्य फल की चर्चा की गई है। कहा गया कि ब्रह्मा भी उसके तत्व को बताने में असमर्थ हैं। आपने समझ लिया होगा कि जानें कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला।

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