जानें मंत्रों की प्रयोगविधि, खुद करें समस्याओं का हल

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ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता
ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता।

learn the practice of mantras : जानें मंत्रों की प्रयोगविधि और खुद करें समस्याओं का हल। यह अत्यंत सरल है। जानकारी के अभाव में लोग उलझन में रहते हैं। पुरश्चरण के बाद भी मंत्र का उपयोग नहीं कर पाते हैं। अपनी समस्याओं का भी हल नहीं कर पाते। यहां मैं उसी रहस्य को खोल रहा हूं। इस विधि की जानकारी दे रहा हूं। यह निश्चित है कि जप के साथ साधक की शक्ति स्वतः बढ़ने लगती है। पुरश्चरण के बाद उसे जरूरी शक्ति मिल जाती है। मंत्र को बिना गुरु के भी निजी उपयोग में ला सकते हैं। अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। छोटी समस्याओं का खुद हल कर सकते हैं। ध्यान रहे कि बिना गुरु के मार्गदर्शन के इससे आगे न बढ़ें। अन्यथा संकट में फंस सकते हैं।

प्रयोग से पहले मंत्र का पुरश्चरण कर लें

प्रयोग से पूर्व मंत्रों का पुरश्चरण कर लें। हर मंत्र के लिए संख्या तय है। जप के बाद हवन आदि भी कर लें। शाबर जैसे कुछ स्वयंसिद्ध मंत्र में ऐसी बाध्यता नहीं है। फिर भी प्रयोग से पहले 2100 जप कर लेना चाहिए। इसके पश्चात प्रयोग कर सकते हैं। प्रयोग के समय 10 से लेकर 108 मंत्र जप करें। फिर आशीर्वाद, चरणामृत, तिलक आदि विधि का प्रयोग करें। इससे पीड़ित को आराम मिलता है। यह शारीरिक व मानसिक समस्या में प्रभावी है। आध्यात्मिक रूप से जागृत करने में भी प्रयोग कर सकते हैं। दूसरों पर प्रभावित करने में भी उपयोग किया जा सकता है। प्रणाम और आशीर्वाद का प्रचलन इस विधि का ही एक रूप है। हाथ, पैर व सिर अत्यंत संवेदनशील अंग हैं। इससे ऊर्जा का स्थानांतरण अच्छे तरीके से होता है।

चरण स्पर्श व आशीर्वाद के पीछे अहम कारण

जानें मंत्रों की प्रयोगविधि में समझें इसका रहस्य। हमारी सभ्यता में बड़ों के पैर छूने की परंपरा रही है। बड़े सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं। इसमें छोटे के प्रति अगाध प्रेम और सदभाव से बेहतर की कामना रहती है। यही भाव छोटे को ताकत प्रदान करता है। चरण स्पर्श करने से उंगलियों के माध्यम से सकारात्मक भाव व शक्तियां प्रणाम करने वाले के शरीर में प्रवाहित होने लगती हैं। आशीर्वाद देने वाला उन शक्तियों को बढ़ाकर सामने वाले के शरीर में स्थिर कर देता है। पौराणिक कथाओं में भी यह स्पष्ट है। ऋषियों ने आशीर्वाद देकर ही दूसरे के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला दिए। अब प्रणाम करने का तरीका बदल गया है। साथ ही लोगों के देने की क्षमता भी घटी है।

विवेकानंद व परमहंस के जीवन से इसे समझें

इसे समझने के लिए स्वामी विवेकानंद का प्रसंग जानें। कालेज जमाने में विवेकानंद की अध्यात्म में रुचि नहीं थी। उन्हें साधु-संन्यासी वेश वाले ठग लगते थे। वे ऐसे लोगों की परीक्षा भी लेते रहते थे। इसी क्रम में एक मंदिर में पहुंचे। वहां रामकृष्ण परमहंस भक्तों को ज्ञान रस से सराबोर कर रहे थे। विवेकानंद मंदिर के दरवाजे पर खड़े हो गए। परमहंस जी ने उन्हें थोड़ी देर देखा। फिर उठकर उनके पास आ गए। उनका हाथ पकड़ खींचते हुए उन्हें अपने कक्ष में ले गए। फिर उनसे पूछा कि चमत्कार महसूस करना चाहते हो? विवेकानंद ने जवाब दिया-जरूर। परमहंस ने उनके सिर पर अपना हाथ रखा। विवेकानंद को लगा कि पूरे शरीर में विद्युत तरंग दौड़ पड़ी। उन्होंने सुध-बुध खो दिया। क्षण भर में ही उन्होंने पूरा ब्रह्मांड देख लिया। उन्हें परमानंद की अनुभूति हुई।

विवेकानंद ने जाना शक्ति के स्थानांतरण का रहस्य

परमहंस ने विवेकानंद चेहरे पर पानी के छींटे मारे। वे चैतन्य हुए। उन्होंने परमहंस से अनुरोध किया कि पुनः उस अनुभूति को महसूस करना चाहते हैं। परमहंस ने कहा कि उनकी आत्मा उच्चकोटि की है। वह उस स्थिति को स्थाई रूप से धारण कर सकते हैं। लेकिन मौजूदा शरीर में फिलहाल उसे धारण करने की ताकत नहीं है। वह उसे देर तक बर्दाश्त कर सकते। इसके लिए उसे तपाना होगा। इसमें शक्ति अस्थाई रूप से एक से दूसरे शरीर में जाती है। जानें मंत्रों की प्रयोगविधि का यह सटीक उदाहरण है।

इस तरह दें दूसरे को शक्ति

कम ताकत वाले भी दूसरे को शक्ति दे सकते हैं। अर्थात कम जप करने वाले भी इसे कर सकते हैं। यह ध्यान रखें कि आपकी शक्ति खत्म न हो जाए। जैसे- यदि आपने किसी मंत्र का पांच लाख जप किया है। अब रोज एक हजार जप करते हैं। ऐसे आसानी से 108  मंत्र के माध्यम से दूसरे को शक्ति दे सकते हैं। बेहतर होगा कि देने से पूर्व या बाद में आप अपने लिये भी कम से कम उतना जप कर लें। शक्ति देने का सबसे सशक्त माध्यम हथेली व उंगलियां हैं। शक्ति को देते समय उसी का प्रयोग करें। इसी तरह जल भी अच्छा माध्यम है। जानें मंत्रों की प्रयोगविधि में यह दोनों उपयोगी है।

देने का भाव स्पष्ट होना चाहिए

शक्ति देते समय आपके मन में भाव स्पष्ट हो। फिर उस कामना के साथ संबंधित के सिर या प्रभावित अंग पर हाथ रखें। अपेक्षित संख्या में मंत्र का जप करें। इस दौरान भावना करें कि मंत्र और देवी/देवता की ताकत उस में प्रवेश कर रही है। इससे उस व्यक्ति को फायदा पहुंच रहा है। दूसरा तरीका जल (गंगाजल हो तो सर्वश्रेष्ठ होगा) है। साफ बर्तन में उसे रखकर अपेक्षित संख्या में मंत्र का जप करें। इस दौरान पात्र को सीधे हिलाते रहें। चाहें तो चम्मच का भी प्रयोग कर सकते हैं। मतलब जल हिलता रहना चाहिए। भावना करें कि मंत्र और देवी/देवता की ताकत जल में प्रवेश कर रही है। बाद में उसे संबंधित को एक या अधिक बार में पिला दें। निश्चय ही सकारात्मक असर मिलेगा। दर्द, बुखार, तनाव, अनिद्रा आदि में यह रामबाण है। उम्मीद है कि आपने जानें मंत्रों की प्रयोगविधि समझ ली होगी।

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