Warning: Invalid argument supplied for foreach() in /home/m2ajx4t2xkxg/public_html/wp-includes/script-loader.php on line 288 बोध कथा : राजा परीक्षित को हुआ एहसास जीवन के रहस्य का - Parivartan Ki Awaj
राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनाते हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
उन्होंने कहा, “राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूल अपने दल-बल से बिछड़कर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और मूसलाधार बारिश पड़ने लगी। जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। अकेला राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में सुरक्षित रूप से रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा। माहौल भयानक लग रहा था और दूर-दूर तक कोई सुरक्षित स्थान नहीं दिख रहा था। रात गहराने लगी, तभी घनघोर अंधेरे के बीच दूर उसे एक दीपक टिमटिमाता दिखाई दिया। वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए वहां पहुंचा। वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी। वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोपड़ी की छत पर लटका रखा था। झोंंपडी बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त थी। इतनी गंदी और दुर्गंधयुक्त उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की। बहेलिये ने कहा कि “आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें पहले दया करके ठहरा लेता था, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते थे। इस झोपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती थी कि रात भर ठहरने के बाद फिर वे इस जगह को छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते थे एवं अपना कब्जा जमाने की कोशिश करते थे। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ। इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता हूं। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।” उसकी बातें सुनकर राजा ठठाकर हंस पड़ा और उसे अपना परिचय देते हुए कहा कि वह ऐसा सोच भी नहीं सकता है। इसके बाद भी बहेलिया संतुष्ट नहीं हो सका। उसने कहा कि कई बड़े लोग उसके यहां आकर ऐसा दावा कर चुके हैं लेकिन सुबह मुकर कर बड़ा विवाद खड़ा कर देते रहे हैं। तब राजा ने बहेलिया को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है। बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा। वह बहेलिये से और कुछ समय ठहरने की अनुमति देने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा। उधर राजा को अब वह स्थान इतना प्रिय लगने लगा कि उसे छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित से पूछा,” परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था?” परीक्षित ने उत्तर दिया,” भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।” श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा,” हे राजा परीक्षित! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह (शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आए हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है?” राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
मेरे भाई – बहनों, वास्तव में यही सत्य है। जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन्! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा। और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो (उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया (और पैदा होते ही रोने लगता है)। फिर उस गंध से भरी झोपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है। यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।