Wellness seekers keep this things in mind : कल्याण चाहने वाले इन बातों का ध्यान रखें। सुविधाभोगी सोच और बदलती जीवनशैली ने भारतीय परंपरा और अच्छी आदतों को भारी नुकसान पहुंचाया है। परिणामस्वरूप कई तरह की समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। सच तो यह है कि प्राचीन भारतीय जीवनशैली पूरी तरह से वैज्ञानिक और जांची-परखी थी। लेकिन अब वह बीते दिनों की बात होती जा रही है। अधिकतर लोगों को उसकी जानकारी ही नहीं है। जिन्हें जानकारी है, उनमें से भी बड़ी संख्या इसे बेकार की बातें मानते हैं। इसका कुपरिणाम भी सामने आने लगा है। शारीरिक और मानसिक समस्या के साथ ही कई तरह की समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। पहले की तुलना में अब लोगों के पास पैसे काफी हैं। सुख-सुविधा के तमाम साधन उपलब्ध हैं। इसके बाद भी खुशी, संतुष्टि और शांति नहीं है। मैं बता रहा हूं समस्या के कारण और निदान।
पति-पत्नी एक-दूसरे के पूरक
भारतीय परंपरा में विवाह को सात जन्म का बंधन है। आधुनिक समय ने इस विचारधारा को लगभग खत्म कर दिया है। अब विवाह अनुबंध का रूप लेता जा रहा है। उसमें तालमेल की बात की जाती है। इसलिए पारिवारिक कलह और असंतोष की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसी कारण तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं। मनु स्मृति में दंपति के बारे में बहुत सुंदर बात कही गई है। इसके अनुसार जिस कुल में पत्नी और पति एक-दूसरे से संतुष्ट रहते हैं, उसका सदा मंगल होता है। इसमें आगे कहा गया है कि मनुष्य को पत्नी की रक्षा हर स्थिति में करनी चाहिए। उसकी रक्षा से आत्मा, धर्म, आचरण, कुल और संतान की रक्षा होती है। यहां रक्षा का अर्थ सिर्फ शरीर से नहीं है। उसकी आत्मा और भावना से भी है। स्पष्ट है कि संतुष्ट और प्रसन्न स्त्री पति और उसके कुल के प्रति समर्पित होगी।
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जानें किससे कैसा व्यवहार करें
कल्याण चाहने वाले इन बातों का ध्यान रखें। धर्मग्रंथों में मनुष्य के आचरण की भी बात की गई है। सामाजिक समरसता, अनुशासन और एकजुटता के लिए कर्तव्य और भावना को भी स्पष्ट किया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार पिता की मृत्यु होने पर बड़े भाई को वह स्थान और जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। छोटे भाई उन्हें इसी हिसाब से सम्मान दें। शुक्र नीति में स्पष्ट है कि बहन अपने कुल और उसके अधिकार को छोड़कर दूसरे कुल चली जाती है। इसलिए पुत्री एवं बहन के पुत्र को अपने पुत्र से भी बढ़कर मानें। छोटे भाई को भी इसी तरह का स्नेह दें। छोटे भाई की पत्नी, पुत्र वधु और बहन को भी अपनी पुत्री से बढ़कर पुत्री की तरह स्नेह करें। गरुड़ पुराण में गृहस्थों के लिए एक और सलाह है। वे अपने माता-पिता, अतिथि और धनी एवं मजबूत व्यक्ति से विवाद नहीं करें।
दान और अच्छे आचरण की प्रेरणा
धर्मग्रंथों में गृहस्थ के दान और अच्छे आचरण पर जोर दिया गया है। लघु व्यास संहिता में तो यहां तक कहा गया है कि भोजन कभी भी सिर्फ अपने और अपने परिवार के लिए नहीं बनाएं। उसे भूखे, गरीब, साधु-संत समेत पशु-पक्षियों को भी दें। इसी तरह शिक्षा भी अपनी आध्यात्मिक उन्नति के साथ ही समाज के लिए योगदान देने में भी हो। जो सिर्फ आजीविका के लिए शिक्षा ग्रहण करता है, उसका जीव बेकार है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चोरी करने वाले तथा दूसरों के धन हड़पने वाले की वंश वृद्धि नहीं होती है। पितरों के श्राद्धकर्म को भी समान महत्व दिया गया है। श्राद्ध से अर्थ सिर्फ मृत्यु पर होने वाला आयोजन नहीं है। इसमें उन्हें प्रतिदिन स्मरण करना और आभार जताना भी है। उन्हीं की बदौलत हम पृथ्वी पर आए हैं।
विवाह संस्कार है, वासना का माध्यम नहीं
धर्म ग्रंथों में विवाह को संस्कार माना गया है। इसका लक्ष्य प्रकृति के काम में योगदान देना है। अर्थात वंश वृद्धि, समाज को संस्कारवान व्यक्ति देना है। साथ ही प्रकृति, देश और समाज के लिए भी अच्छे कार्य करना है। आज विवाह का यह भाव लुप्त हो गया है। लघु व्यास संहिता के अनुसार जो मात्र काम सुख के लिए यौन संबंध बनाता है, उसका जीवन निरर्थक है। ब्रह्म वैवर्त पुराण में लिखा है कि मासिक धर्म के दौरान संसर्ग करने वाला नर्क का भागी होता है। उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है। महाभारत के अनुसार अमावस्या, पूर्णिमा और सूर्य की संक्रांति में संसर्ग करने वाला नर्क जाता है। उसका अगला जन्म नीच योनि में होता है। कारण स्पष्ट है कि इन तिथियों में प्रकृति भी सहज नहीं रहती है। ऐसे में संतति का बीजारोपण शुभ नहीं होगा। कल्याण चाहने वाले इन सभी बातों का ध्यान रखें।
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