
वसंत पंचमी के दिन सर्व सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर घर में साफ-सुथरे स्थान पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाएं। उसके अग्रभाग में गणेश जी को और पृष्ठभाग में वसंत (जौ-गेहूं की बालका पुंज को जल से भरे कलश में में डंठल सहित रखकर) बनाकर स्थापित करें। इसके बाद पहले गणेश जी का फिर रति-कामदेव का पूजन करें तथा उन पर अबीर आदि पुष्पोम छींटे लगाकर वसंत सदृश बनाएं। इसके बाद रति का– शुभा रति: प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्वलभूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता। वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता।— मंत्र से ध्यान करें। कामदेव के ध्यान के लिए– कामदेवस्तु कर्तव्यो रूपेणाप्रतिमो भुवि। आष्टबाहु: स कर्तव्य: शंखपद्मविभूषण:। चापबाणकरश्चैव मदादचिंतलोचन:। रति: प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्तिस्तथोज्ज्वला। चतस्रस्तस्य कर्तव्या: पत्न्यो रूपमनोहरा:। चत्वराश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगा:। केतुश्च मकर: कार्य: पंचबाणमुखो महान्।–मंत्र का प्रयोग करें।
इसी दिन मंदारषष्ठी के नाम से तीन दिन के व्रत की शुरुआत की जाती है। इस दिन समस्त कामना का त्याग करके जितेंद्रिय होकर थोड़ा सा भोजन करके एकभुक्त व्रत करें। तीन दिन के इस व्रत में मुख्य रूप से भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। इस व्रत को करने वालों के पाप नष्ट हो जाते हैं और उनके स्वर्ग में जाने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
मां सरस्वती का पूजन
सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए। इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें। सरस्वती के पूजन के दौरान सबसे पहले उन्हें आचमन और स्नान कराएं। इसके बाद फूल, माला चढ़ाएं। फिर माता को सिंदूर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। वसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है। देवी सरस्वती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। पूजन के अवसर पर माता को पीले रंग का फल चढ़ाएं। प्रसाद में मौसमी फलों के अलावा बूंदियां अर्पित करनी चाहिए। इस दिन सरस्वती माता को मालपुए और खीर का भी भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद हवन करना श्रेयस्कर होता है। हवन करते समय भी पहले गणेश जी एवं नवग्रह के नाम से हवन करना उचित होता है। इसके बाद सरस्वती माता के नाम से ‘ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वाहा” या अन्य किसी मंत्र से कम से कम एक सौ आठ मंत्रों से बार हवन करना चाहिए। हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और अपने मस्तक पर हवन का भभूत लगाएं। यदि प्रतिमा पूजन किया हो सरस्वती की पूजा के बाद अगले दिन षष्ठी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए और सामान्य स्थिति में संध्या काल में मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
पौराणिक मान्यताएं
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजायुक्त और आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जूटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली व तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौम्य वर्णन मिलता है। ‘दुर्गा सप्तशती’ में भी सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन ही शिव जी ने मां पार्वती को धन और सम्पन्नता की अधिष्ठात्री देवी होने का वरदान दिया था। उनके इस वरदान से मां पार्वती का स्वरूप नीले रंग का हो गया और वे ‘नील सरस्वतीÓ कहलायीं। दस महाविद्या में दूसरे नंबर पर प्रतिष्ठित मां तारा को भी नील सरस्वती कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन नील सरस्वती का पूजन करने से धन और सम्पन्नता से सम्बंधित समस्याओं का समाधान होता है। वसंत पंचमी की संध्याकाल में सरस्वती पूजा करने से और गौ सेवा करने से धन वृद्धि होती है।