चीन सीमा पर है बाबा हरभजन सिंह का मशहूर मंदिर (यात्रा वृत्तांत)

366


बाबा मंदिर के नाम से मशहूर है यह जगह, तकरीबन 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर। भारतीय फौज में इंडियन आर्मी की गहरी आस्था है बाबा में। कहते हैं बाबा की आत्मा भारत चीन सीमा पर फौजियो का मार्ग दर्शन करती है। तो चीन के फौजी भी बाबा की शक्ति से कहीं न कहीं डरते हैं।




गंगटोक से नाथुला के मार्ग पर सरथंग से बाबा मंदिर के लिए रास्ता बदलता है। वहां से नाथुला 4 किलोमीटर है जबकि पुराना बाबा मंदिर तकरीबन 9 किलोमीटर आगे है। हालांकि आजकल नया बाबा मंदिर बना दिया गया है, तो बड़ी संख्या में सैलानी वहीं से वापस लौट आते हैं।


रिटायर हो गए बाबा…अब छुट्टी पर घर नहीं जाते…

बाबा हरभजन सिंह की कहानी मैंने पहली बार सन 2000 में सुनी थी जब मैं जालंधर में अमर उजाला में कार्यरत था। हमारे साथी अरविंद श्रीवास्तव ने एक खबर लिखी की बाबा जी छुट्टी पर घर आ रहे हैं। उनके लिए ट्रेन में तीन बर्थ बुक हैं। वे दो महीने गांव में छुट्टी काटेगें फिर वापस सिक्किम में नाथुला सीमा पर जाएंगे। दरअसल बाबाजी तो इस दुनिया में रहे नहीं पर अनूठी आस्था है भारतीय थल सेना उन्हें वेतन भी देती थी और छुट्टी पर घर भी भेजती थी। पर साल 2008 में बाबा जी रिटायर हो गए तो अब उनकी पेंशन लग गई है। अब उनके छुट्टी पर घर जाने का सिलसिला रुक गया है।

बाबाजी पंजाब के कपूरथला जिले के बारंदोल गांव पैदा हुए थे। वे 1966 में पंजाब रेजिमेट में बतौर सिपाही भर्ती हुए। 4 अक्तूबर 1968 को सिक्किम मे नाथुला इलाके में तैनाती के दौरान भयानक प्राकृतिक आपदा आई। भारी बारिश और चट्टान खिसकने से काफी लोगों की जान चली गई। इस समय सिपाही हरभजन सिंह अपने खच्चर कारवां को लेकर जा रहे थे। यह कारवां टुकला से डेंगचुला जा रहा था। इस दौरान हरभजन सिंह एक तेज बहती जलधारा मे बह गए। पांच दिनों तक उनका पता नहीं चला। वे साथी प्रीतम सिंह के सपनों में आए। अपने बारे में बताया कि वे कहां दबे हैं। बाद में तलाशी पर उनका शव वहीं मिला। उन्होंने अपनी समाधि बनाने की इच्छा भी जताई थी। बाद में उनके साथियों ने उनकी इच्छा के मुताबिक चोकियाको में उनकी समाधि बनवाई। तब से बाबा सीमा पर खतरनाक गतिविधियों के बारे में फौजियों को सपने में आकर बताते हैं। उनपर चीनी सैनिक भी विश्वास करते हैं। पूरे सीमा क्षेत्र में एक छाया पेट्रोलिंग करती नजर आती है। अब बाबा को फौज ने मानद कप्तान पद से सम्मानित किया है।

पुराने बाबा मंदिर में बाबा जी की समाधि, बाबा जी का बंकर बना है। बंकर में उनका बिस्तर लगा है। उनके कपड़े, जूते आदि रखे हैं। देश भर से आने वाले लोग श्रद्धा से शीश नवाते हैं। हर शुक्रवार को यहां पर लंगर भी लगाया जाता है। बाबा जी की समाधि पर प्रसाद बांटते मुझे जालंधर के बस्ती मिठू के फौजी गुरप्रीत सिंह मिले। ये जानकर बड़े खुश हुए कि मैं जालंधर में लंबे समय तक रह चुका हूं। 14 हजार फीट पर जिंदगी कितनी मुश्किल होगी मैं इसका अनुमान लगाता हूं। दोपहर के बाद बर्फीली हवाएं चलने लगती हैं पर फौजी मस्त हैं। देश की सेवा भी और आस्था भी।

हम लौटते हुए नए बाबा मंदिर के पास भी रूकते हैं। नए बाबा मंदिर के सामने एक कैफे बना है। यह कैफे 13 हजार फीट की ऊंचाई पर है। यहां पर खाने में मोमोज के अलावा कुछ और चीजें मिलती हैं। यहां पर सोवनियर का स्टाल भी है, जहां से आप यादगारी से जुड़ी कई चीजें खरीद कर ले जा सकते हैं। 

अब इतनी ऊंचाई पर आए हैं तो खाने की हसरत क्यों न पूरी करें। तो मैंने भी कूपन लिया 30 रुपये में शाकाहारी मोमोज की प्लेट का और रेस्टोरेंट में बैठकर मोमोज का स्वाद लिया। रास्ते में रोडेंड्रम (गुरांस) की झाडिय़ां भी दिखाई देती हैं। हालांकि इसमें अभी फूल नहीं लगे हैं। पहाड़ों पर उगने वाले इस फूल को लाली गुरांस भी कहते हैं। खिलने पर इसकी सुंदरता देखने लायक होती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here