अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता

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अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता
अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता।

Ajanta is the confluence of tireless labor attractive artwork : अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता। यहां की गुफाओं में पहाड़ को काटकर असाधारण धैर्य से मनमोहक उत्कीर्णन किया गया है। भित्तिचित्रों को भी विशेष स्थान दिया जाना चाहिए। कथित रूप से पिछड़े युग में इस तरह की चित्रकारी और उसे संरक्षित करने की विधा किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को दाँतों तले उँगली दबाने पर मजबूर करता है। इसमें संदेह नहीं कि कालक्रम के लंबे अंतराल इनका बहुत क्षरण हुआ है। इसके बाद भी भित्तिचित्रों को संरक्षित करने का प्रयास सराहनीय है। भित्तिचित्रों वाली गुफाओं में फोटोग्राफी निषिद्ध है। खासकर फ़्लैश चमकाने पर पूरी तरह रोक है। फ्लैश से भित्तिचित्रों को नुकसान पहुंचता है। बिना फ्लैश चमकाए कुछ लोग फोटोग्राफी करते हैं। हालांकि बहुत कम रोशनी में ली गई तस्वीर में बिल्कुल प्रभाव नहीं दिखता है।

विदेशी आक्रांताओं व धर्मांधता की आंधी में भी सुरक्षित रही धरोहर

यहां सभी भित्तिचित्र बौद्धकथाओं पर आधारित हैं। जाहिर है कि तब बौद्ध धर्म के प्रति लोगों में विशेष  रुझान था। कई राजाओं ने उदारतापूर्वक इनके निर्माण में अकूत धन खर्च किया होगा। अजंता गुफाओं के बड़े-बड़े हालों को देखकर सहज समझा जा सकता है कि यहां कितनी मेहनत की गई होगी। किस अथक परिश्रम से ये आग्नेय शैलें काटी गई होंगी। छेनी हथौड़ी की हर चोट पर कितना श्रम, धैर्य, कला व धन खर्च हुआ होगा। यह देख और सोचकर मन अभिभूत हो जाता है। सबसे अहम कि ये गुफाएं लगातार विदेशी आक्रांताओं और धर्मांधता की आंधी में भी सुरक्षित रह सकीं। संभवतः इसका कारण इसके घने व दुर्गम जंगल में अज्ञात रूप में स्थित होना होगा। अन्यथा अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम हम देख नहीं पाते।

भोजनालय में जबरदस्त मोल-भाव

गुफा से बाहर निकलते-निकलते हमें देर हो गई थी। चूंकि रास्ते में कहीं खाने-पीने की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए जोरदार भूख लग गई थी। द्वार पर ही एक अधिकृत भोजनालय है। सो हम उसी में चले गए। कई लोग भोजन कर रहे थे। थाली देखकर भोजन का स्तर ठीक नहीं लगा। रेट पूछा तो प्रति थाली 150 रुपये बताया गया। हमने भूख को जब्त कर कहीं दूर भोजना करना उचित समझा। वहां से निकलते ही दलाल मोल-भाव करने के लिए पीछे लग गए। हम 13 लोग थे, इसलिए भोजनालय वाले एक साथ इतने ग्राहक को हाथ से निकलते नहीं देख सकते थे। दलाल ने बात करनी शुरू की। अंततः वह 150 की थाली 40 रुपये में देने पर राजी हो गए। लेकिन मन खिन्न हो गया था। ऐसा मोल-भाव हमने पहले कहीं नहीं देखा था। अतः हमने बाहर ही भोजन किया।

कब और कैसे जाएं

अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति को देखने के लिए समय का ध्यान अवश्य रखें। यहां गर्मी अधिक पड़ती है। इसलिए ठंड के मौसम में यहां जाना उचित होगा। सुविधानुसार आप अक्टूबर से मार्च तक जा सकते हैं। यहां के लिए प्रमुख स्टेशनों से कोई सीधी ट्रेन नहीं है। आप भुसावल होकर चलने वाली दिल्ली-मुंबई ट्रेन से जलगांव या भुसावल उतरें। फिर बस या टैक्सी से अजंता पहुंच सकते हैं। थोड़ा भी बजट हो तो टैक्सी करना बेहतर होगा। जलगाँव स्टेशन  से अजंता 52 और भुसावल से 62 किलोमीटर दूर है। वैसे महाराष्ट्र में बस सेवा भी अच्छी है। सोमवार को छोड़कर यह रोज सुबह नौ से शाम पांच बजे तक खुला रहता है। इसमें टिकट लेकर प्रवेश कर सकते हैं। इसके लिए भारतीय व दक्षिण एशियाई देशों के नागरिकों को प्रति व्यक्ति 10 रुपये खर्च देने पड़ते हैं।

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